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लोकसभा का पहला सत्र 18 से शुरू विपक्ष का प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी की उम्मीद

नई दिल्ली :जब भारतीय संविधान के अनुसार नई सरकार का गठन होता है, तो उसे लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों की चुनाव द्वारा स्थापित किया जाता है। लोकसभा के चुनावों के बाद, नए सदस्यों को संसद में शापित किया जाता है।

यहां दी गई घोषणा के अनुसार, 18 जून को 18वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू होगा। इस सत्र की शुरुआत नवनिर्वाचित सांसदों के शपथ लेने के साथ होगी। पहले दो दिनों में, जो कुल मिलाकर 543 सांसद होंगे, प्रोटेम स्पीकर उन्हें शपथ दिलाएंगे। इसके बाद, 20 जून को लोकसभा का अध्यक्ष चुना जाएगा। इसके बाद, 21 जून को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू संसद के दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करेंगी।

अभी तक इस पूरे कार्यक्रम की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन इस घोषणा के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि संसद के कार्यक्रम की तैयारी की जा रही है।

विपक्ष का प्रतिनिधित्व संसद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसका बढ़ाना यह सुनिश्चित करता है कि सरकार के निर्णयों पर निगरानी बनी रहे। विपक्ष को नेता प्रतिपक्ष का पद प्राप्त करना, उनके विचारों को ज्यादा प्रमुखता देने का संकेत हो सकता है।

इस सत्र में भाजपा के लिए स्पीकर का पद बहुत महत्वपूर्ण है। यह नहीं सिर्फ संसदीय कार्यक्रम की सुचारू चलन को सुनिश्चित करता है, बल्कि संसद में महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा को भी निर्देशित करता है। ओम बिरला ने पिछले सत्र में इस पद को सफलतापूर्वक निर्वाह किया है, लेकिन भाजपा क्या निर्णय लेती है इसे देखना महत्वपूर्ण होगा।

जैसा कि आपने उल्लेख किया, बिरला की पूर्व कार्यकाल में उन्हें सत्ता द्वारा विश्वास प्रदान किया गया था, और इसके बाद भी वे अपनी क्षमता को साबित किया। इस संदर्भ में, उन्हें फिर से चुनना एक स्वाभाविक निर्णय हो सकता है, लेकिन नए चेहरों की भी उत्पादनी भूमिका में दिखाई देने की संभावना है।

डिप्टी स्पीकर का पद भाजपा के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संसदीय प्रक्रिया की सुचारू चलन को संबोधित करता है और संसद के कार्यक्रम को संचालित करता है। यह बात हो सकती है कि भाजपा इस बार अपने सहयोगी दल को इस पद को सौंपे, जैसे कि पिछले कार्यकाल में की गई थी।

ऐसा करने से, भाजपा संघ के साथ सहयोग का संदेश भी दे सकती है और संसद में विपक्षी दलों के साथ गहराई से बातचीत करने की क्षमता बनाए रख सकती है। इससे संसद के कार्यक्रम की सुचारू चलन की सुनिश्चितता में मदद मिल सकती है, जो सरकार और विपक्ष दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।

लेकिन, इस पर कथित रूप से सस्पेंस है, क्योंकि अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। इसलिए, कौन इस पद को लेता है और कैसे इसे व्यवस्थित किया जाता है, यह समय के साथ ही प्रकट होगा।

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