देहरादून:सरकार ने प्रदेश के सभी जिला चिकित्सालयों में पांच प्रतिशत बेड मानसिक रोगियों के उपचार के लिए आरक्षित करने के निर्देश दिए हैं। राज्य में औसतन 11.70 लाख मानसिक रोगी हैं, इनमें 2.34 लाख गंभीर और 6 साल तक मानसिक दुर्बलता से ग्रसित बच्चों की संख्या 1.17 लाख होने का अनुमान है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की 2001 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों का औसत कुल आबादी का 10 प्रतिशत है। इस रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में मानसिक रोगियों की संख्या लगभग 11.70 है। राज्य का एक मात्र मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय, सेलाकुई देहरादून में मानसिक रोग से ग्रस्त रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम में मानसिक रोगी की श्रेणी में नशे की आदत को भी शामिल किया गया है। धामी सरकार ने उत्तराखंड को वर्ष 2025 तक नशा मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए जनजागरूक अभियान चलाया गया है। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य नीति नियमावली में सभी नशामुक्ति केंद्रों का पंजीकरण अनिवार्य किया है। प्रदेश में अवैध संचालित केंद्रों पर सख्त कार्रवाई के आदेश दे दिए गए हैं।।
राज्य के स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर राजेश कुमार ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशों में नशा ग्रस्त व्यक्तियों को मुख्यधारा से जोड़ने व पुनर्वास के लिए सभी जिलाें में नशा मुक्ति केंद्रों को प्रभावी बनाया जा रहा है। वर्तमान में चार इंटीग्रेटेड रिहैबिलिटेशन सेंटर फॉर एडिक्ट्स संचालित किए जा रहे हैं। नशे की गिरफ्त में आए लोगों को काउंसिलिंग और इलाज कर नशे से दूर किया जाएगा।
मानसिक रोगियों के इलाज के लिए 30 डॉक्टरों को प्रशिक्षण
राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। साथ ही पुनर्वास केंद्रों की संख्या भी सीमित हैं। प्रदेश सरकार नशामुक्त भारत अभियान के तहत 30 डॉक्टरों को निम्हांस बंगलूरू से मानसिक स्वास्थ्य का प्रशिक्षण दिया गया।
इसके अलावा गढ़वाल व कुमाऊं में 100 बेड क्षमता का नशा मुक्ति केंद्र बनाने की प्रक्रिया चल रही है। मानसिक स्वास्थ्य संस्थान सेलाकुई को 100 बेड का मानसिक चिकित्सालय में उच्चीकृत किया गया है। इसके अलावा नैनीताल के गेठिया 100 बेड का मानसिक चिकित्सालय बनाया जाएगा।