देहरादून : उत्तराखंड सरकार ने अब तक कई बार ग्रीन बोनस की मांग की है, लेकिन हर बार बात नहीं बन पाई। राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 71.08% हिस्सा जंगलों से ढका हुआ है और यहां की पर्यावरणीय सेवाएं करीब तीन लाख करोड़ रुपये की हैं। हिमालयी राज्य उत्तराखंड इस बार 16वें वित्त आयोग के सामने अपनी मांग को मजबूती से रखने की तैयारी में है।
इसके लिए धामी सरकार ने आंकड़ों के आधार पर एक तार्किक और मजबूत रिपोर्ट तैयार करने का काम शुरू कर दिया है। इस रिपोर्ट को तैयार करने का जिम्मा राज्य सरकार ने अल्मोड़ा स्थित गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान को सौंपा है। वित्त आयोग के अप्रैल तक उत्तराखंड आने की संभावना है और सचिव नियोजन आर मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि संस्थान इससे पहले अपनी रिपोर्ट दे देगा।
राज्य के विशाल वन क्षेत्र और उसकी पर्यावरणीय सेवाओं का फायदा न केवल उत्तराखंड को, बल्कि देश के अन्य हिस्सों को भी हो रहा है। राज्य के जंगलों में उच्च गुणवत्ता के साल, चीड़, देवदार, फर, बांज जैसे पेड़ पाए जाते हैं, जिनमें अनेक वन्यजीव रहते हैं। इसके अलावा, गंगा, यमुना, अलकनंदा और मंदाकिनी जैसी प्रमुख नदियां भी राज्य से निकलती हैं, जो न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि अन्य राज्यों की भी जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत हैं।
राज्य के लिए यह प्राकृतिक संसाधन बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनका संरक्षण और पर्यावरणीय नियमों का पालन करने की जिम्मेदारी भी राज्य पर ही है। इससे राज्य के विकास में कई बार रुकावटें आई हैं। उदाहरण के तौर पर, भागीरथी इको सेंसिटिव जोन के कारण कई पनबिजली परियोजनाएं रुकी हुई हैं और कई प्रस्तावित योजनाओं को लागू नहीं किया जा सका।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी नीति आयोग और अन्य मंचों पर पर्यावरणीय सेवाओं के बदले वित्तीय मदद की मांग कर रहे हैं। अब उनके आदेश पर राज्य सरकार ग्रीन बोनस की राह खोलने के लिए आंकड़ों के विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के जरिये वित्त आयोग के सामने मजबूत पैरवी करेगी।
धामी सरकार का कहना है कि उत्तराखंड पूरे देश को पर्यावरणीय सेवाएं दे रहा है, और इसके एवज में केंद्र सरकार से वित्तीय सहयोग की मांग की जा रही है। राज्य सरकार अब इस मुद्दे को और प्रभावी तरीके से उठाने के लिए आंकड़ों के माध्यम से अपनी स्थिति को मजबूती से प्रस्तुत करेगी।