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उत्तराखण्ड में मौसम का मिज़ाज तेजी से बदला… मानसून पहले हफ्ते में 3 गुणा बारिश

उत्तराखण्ड में इस बार मैदानी इलाकों के साथ-साथ पहाड़ी इलाकों में भी जलवायु परिवर्तन का पता चल रहा है। देश के कुछ शोधार्थियों ने एक शोध में दावा किया है कि पिछले 40 वर्षों के दौरान उत्तराखंड के मौसम में व्यापक बदलाव देखने को मिला है। इस बार मानसून की वर्षा में अनियमितता भी दिख रही है।

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का असर उत्तराखंड में व्यापक रूप से दिख रहा है। मैदानी इलाकों के साथ-साथ पहाड़ी क्षेत्रों में भी मौसम के पैटर्न में बदलाव नजर आ रहा है। शीतकाल में कम वर्षा, ग्रीष्मकाल में अत्यंत भीषण गर्मी के बाद अब मानसून में वर्षा के पैटर्न में उतार-चढ़ाव मौसम विज्ञानियों की चिंता बढ़ा रहा है।

देश के कुछ शोधार्थियों ने एक शोध में दावा किया है कि पिछले 40 वर्षों के दौरान उत्तराखंड के मौसम में व्यापक बदलाव देखने को मिला है। इस बार मानसून की वर्षा में अनियमितता भी इस ओर इंगित कर रही है।

मानसून की दस्तक के बाद पहले सप्ताह में उत्तराखंड में अत्यधिक वर्षा हुई। कुमाऊं में तो वर्षों का रिकार्ड भी टूटा। हालांकि, प्रदेश में बीते दो सप्ताहों में सामान्य से कम वर्षा हुई, जिसमें गढ़वाल मंडल के जिलों में वर्षा बेहद कम दर्ज की जा रही है। इसके साथ ही प्रदेश में वर्षा का पैटर्न भी पूरी तरह से बदलने लगा है। कुछ क्षेत्रों में अतिवृष्टि और कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति आने का खतरा है।

जुलाई के शुरूआत में रिकॉर्ड वर्षा की दर्जनी की गई 

बीते 27 जून को मानसून उत्तराखंड पहुंचने के बाद जुलाई की शुरुआत में रिकॉर्ड वर्षा दर्ज की गई। पहले सप्ताह में ही प्रदेश में सामान्य से करीब तीन गुना अधिक वर्षा हुई है। जबकि कुमाऊं में भारी से बहुत भारी वर्षा से एक ही दिन में वर्षा का 34 वर्ष पुराना रिकार्ड टूट गया। ऊधम सिंह नगर, चंपावत और नैनीताल में 400 मिमी तक वर्षा दर्ज की गई। इसके अलावा बागेश्वर और अल्मोड़ा में भी कई गुना अधिक वर्षा हुई है।

इधर, गढ़वाल मंडल में देहरादून, टिहरी और पौड़ी में भी सामान्य से अधिक वर्षा हुई है। इसके बाद अचानक मानसून रूठ गया। खासकर गढ़वाल के ज्यादातर क्षेत्रों में जुलाई के दूसरे और तीसरे सप्ताह में नाम मात्र की वर्षा हुई। दून में कहीं-कहीं वर्षा का क्रम बना रहा।

उधर, कुमाऊं के कुछ क्षेत्रों में भारी से बहुत भारी वर्षा का दौर अब भी जारी है। जुलाई के पहले सप्ताह में प्रदेश में औसत सामान्य वर्षा 94 मिमी के सापेक्ष 228 मिमी दर्ज की गई, जो कि सामान्य से 142 मिमी अधिक है। इसमें भी कुमाऊं के जिलों में सामान्य से पांच से सात गुना अधिक वर्षा दर्ज की गई है। बीते 34 वर्ष में यह सर्वाधिक है। इसके बाद जुलाई में अब तीन सप्ताह में प्रदेश में कुल औसत वर्षा 348 मिमी रिकार्ड की गई है, जो कि सामान्य वर्षा 275 मिमी से 26 प्रतिशत अधिक है। हालांकि, इसमें गढ़वाल के ज्यादातर जिलों में सामान्य से कम वर्षा हुई है।

साइक्लोनिक सर्कुलेशन के कारण वर्षा का क्रम अक्सर तेजी से होता है। जब एक साइक्लोन या चक्रवाती दबाव क्षेत्र में विकसित होता है, तो वह आसपास के क्षेत्रों में वर्षा के प्रवाह को बढ़ाता है। साइक्लोन के केंद्र में गर्मी और नमी की गहरी विभाजन से उत्पन्न वायु संघटन से जुड़े उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है। इसके परिणामस्वरूप, तेज हवाएं और भारी वर्षा के संभावना होती है।

इस प्रकार, साइक्लोनिक सर्कुलेशन के प्रभाव से वर्षा का क्रम तेज हो सकता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में बारिश की मात्रा असामान्य रूप से बढ़ सकती है।

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