केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत के निधन के कारण केदारनाथ विधानसभा सीट खाली हो गई थी। 90 हजार से अधिक मतदाता वाली इस सीट पर आज उपचुनाव आयोजित किए जा रहे हैं। केदारनाथ विधानसभा सीट पर आज मतदान सुबह 8 बजे शुरू हुआ, जो शाम 6 बजे तक जारी रहेगा। सुबह 9 बजे तक 4.30 प्रतिशत मतदान हो चुका था, जबकि 11 बजे तक यह आंकड़ा 17.6 प्रतिशत तक पहुंच गया। मतदाता पोलिंग बूथों पर पहुंच रहे हैं, और बुजुर्ग मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक छात्रों द्वारा पहुंचाया जा रहा है।
मतदाताओं में उत्साह देखने को मिल रहा है। कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत और भाजपा प्रत्याशी आशा नौटियाल ने भी अपना वोट डाल दिया है। इस उपचुनाव में कुल 90,875 मतदाता भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों के 6 प्रत्याशियों के राजनीतिक भविष्य का फैसला करेंगे। इनमें 44,919 पुरुष और 45,956 महिला मतदाता शामिल हैं, जो अपने विधायक का चुनाव करेंगे। मतदान के लिए 173 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं और सभी पोलिंग पार्टियां अपने गंतव्यों पर पहुंच चुकी हैं।
भाजपा की विचारधारा भी दांव पर, कांग्रेस की है यह चाहत
केदारनाथ उपचुनाव केवल एक विधानसभा सीट का चुनाव नहीं है, बल्कि इस सीट पर प्रदेश की सत्तारूढ़ भाजपा की प्रतिष्ठा और विचारधारा दोनों दांव पर हैं। भाजपा के लिए यह चुनाव अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने का अवसर है, जबकि कांग्रेस की कोशिश है कि वह इस उपचुनाव में जीत के साथ 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए एक बड़ा संदेश दे सके।
लोकसभा चुनाव में पांचों सीटें हारने के बाद कांग्रेस का हौसला थोड़ा कम हो गया था, लेकिन बदरीनाथ और मंगलौर विधानसभा उपचुनावों में मिली जीत ने उसकी उम्मीदों को फिर से जगा दिया। इसी जीत से उत्साहित होकर कांग्रेस ने मिशन केदारनाथ को सफल बनाने के लिए प्रचार में पूरी ताकत झोंकी। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने इस मोर्चे की कमान संभाली और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की पूरी कोशिश की।
ऐश्वर्य और कुलदीप की भी असली परीक्षा
केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। खासकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जिस तरह से बगावत को सूझबूझ और रणनीति के साथ संभाला है, उसने न केवल पार्टी संगठन में बल्कि विपक्ष में भी एक मजबूत संदेश दिया है। इस स्थिति में, उपचुनाव में प्रबल दावेदारी करने वाले दो प्रमुख चेहरे – कुलदीप रावत और ऐश्वर्य रावत की भूमिका अब और भी अहम हो गई है, क्योंकि यह चुनाव न सिर्फ पार्टी के लिए, बल्कि इन दोनों नेताओं के राजनीतिक भविष्य के लिए भी निर्णायक साबित हो सकता है।
इस उपचुनाव के परिणाम भाजपा से ज्यादा इन दोनों नेताओं की अस्मिता से जुड़े हुए हैं। जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं, वहीं पार्टी के उम्मीदवारों के अलावा इन उभरते नेताओं की साख भी दांव पर लगी हुई है। यह उपचुनाव उनकी राजनीतिक पहचान और आने वाले समय में उनके करियर के लिए भी एक बड़ी परीक्षा साबित हो सकता है।
मिथक दोहराएगा या फिर टूट जाएगा?
केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव ने एक दिलचस्प सवाल खड़ा किया है: क्या भाजपा महिला प्रत्याशी की जीत का मिथक दोहराएगी, या फिर कांग्रेस इसे तोड़ने में सफल होगी? पिछले तीन महीनों से सियासी दल इस उपचुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं, और प्रत्याशियों के समर्थकों द्वारा लगातार 17 दिनों तक किए गए धुआंधार प्रचार का परिणाम 23 नवंबर को मतगणना के बाद ही सामने आएगा।
इस दौरान, सभी छह प्रत्याशियों ने अपनी जीत के लिए पूरी ताकत झोंकी है, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है। अब यह देखना बाकी है कि इस उपचुनाव का परिणाम किस दल की झोली में जाएगा और क्या केदारनाथ में महिला प्रत्याशी की जीत का मिथक टूटेगा या फिर फिर से दोहराया जाएगा।
भा.ज.पा. की ये ताकत और ये कमजोरी
उपचुनाव में भाजपा की ताकत की बात करें तो कई महत्वपूर्ण पहलू सामने आते हैं। सबसे पहले, प्रदेश और केंद्र में भाजपा की सरकार के समर्थन से पार्टी को मजबूती मिलती है। इसके अलावा, केदारनाथ से सीधे प्रधानमंत्री मोदी का जुड़ाव, मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक और पार्टी पदाधिकारियों का सक्रिय प्रचार भी भाजपा के पक्ष में मजबूत कारण माना जा रहा है। महिला मतदाता बहुल इस सीट पर भाजपा ने दो बार की विधायक रही महिला चेहरे आशा नौटियाल को उम्मीदवार के रूप में उतारा, जो भाजपा की रणनीति का अहम हिस्सा है। इसके साथ ही, केदारनाथ में किए गए विकास कार्य भी भाजपा के पक्ष में जाते हैं, जिनसे पार्टी को उम्मीद है कि महिला प्रत्याशी पर लगाया गया दांव सही साबित होगा और महिला उम्मीदवार की जीत का मिथक एक बार फिर दोहराया जाएगा।
हालांकि, भाजपा की कमजोरी भी कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर नजर आती है। इनमें से एक है नई दिल्ली में केदारनाथ मंदिर का शिलान्यास, जिसे भाजपा के कमजोर पक्ष के रूप में देखा जा रहा है। यह मुद्दा विपक्ष के लिए तंज और आलोचना का कारण बन सकता है, जो भाजपा के लिए एक चुनौती हो सकती है।
1982 के संसदीय उपचुनाव की यादें ताजा हुईं
केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव ने 1982 में गढ़वाल लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव की यादें ताजा कर दी हैं। 42 वर्ष पहले गढ़वाल लोकसभा उपचुनाव पर देश की नजरें टिकी हुई थीं, और आज वही स्थिति केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव की है। यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है, और इस उपचुनाव की गूंज दिल्ली तक सुनाई दे रही है। यह चुनाव दोनों दलों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, जैसा कि 1982 में गढ़वाल लोकसभा उपचुनाव के समय था।