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मानसून में भी सुरक्षित हो सकती है आपकी चारधाम यात्रा, इन बातों का रखें ध्यान


देहरादून (किरनकांत शर्मा): उत्तराखंड की प्रसिद्ध चारधाम यात्रा 6 महीने चलती है. इसमें एक महीना अगस्त और एक महीना जुलाई का भी आता है. ये दोनों महीने पूरे प्रदेश में आपदा लेकर आते हैं. इससे चारधाम यात्रा भी अछूती नहीं रहती है. हर साल चारधाम यात्रा मानसून सीजन में धीमी पड़ जाती है. इसके बावजूद कई श्रद्धालुओं की मानसून में भी आस्था नहीं डिगती है. श्रद्धालु बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धामों में दर्शन के लिए पहुंचते हैं. ऐसे में यात्रा पड़ाव की जानकारियां श्रद्धालुओं को सुरक्षित यात्रा के अनुभव दे सकती हैं.

हर साल आपदा मचाती है कहर: गौर हो कि राज्य सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग ने लोगों से मानसून में यात्रा करने से बचने की अपील की है. क्योंकि मानसून सीजन में हर साल आपदा से लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है. मानसून के दिनों में चारधाम यात्रा के कई मार्ग बेहद खतरनाक हो जाते हैं और हर साल बारिश, लैंडस्लाइड और बाढ़ के साथ ही स्वास्थ्य कारणों की वजह से कई लोगों की जान भी जाती है.

मानसून में ऐसे सुरक्षित रखें अपनी चारधाम यात्रा. (Video- ETV Bharat)

यात्रा पर इन बातों का रखें ध्यान: अगर आप चारधाम यात्रा में जा रहे हैं, तो घर से निकलने से पहले यात्रा के दिनों का मौसम जरूर चेक कर लें. यह सुनिश्चित कर लें कि मौसम विभाग ने उत्तराखंड के किन-किन जिलों में बारिश, भूस्खलन या बिजली गिरने की चेतावनी जारी की है. कोशिश करें कि उत्तराखंड में मौसम विभाग के द्वारा अलर्ट जारी करने के बाद पहाड़ों पर यात्रा से बचें. लेकिन अगर आप अपनी तैयारी पूरी कर चुके हैं, या यात्रा मार्ग पर आ चुके हैं, तो कुछ संवेदनशील जगहों का ध्यान जरूर रखें.

गौरीकुंड हेलीकॉप्टर हादसा (Photo-ETV Bharat)

पहले पड़ाव में खतरनाक जोन: चारधाम यात्रा की शुरुआत पारंपरिक रूप से हरिद्वार या ऋषिकेश से होती है. ऋषिकेश को इस यात्रा का प्रमुख केंद्र माना जाता है. यहां से श्रद्धालु सड़क मार्ग से अपनी गाड़ी, टैक्सी या बस से यात्रा की शुरुआत करते हैं. यहां से निकलने के बाद चारधाम में सबसे पहला पड़ाव यमुनोत्री, उत्तरकाशी जिले में समुद्र तल से 3,233 मीटर की ऊंचाई पर है. ऋषिकेश से यमुनोत्री की दूरी लगभग 210 किलोमीटर है. सड़क मार्ग से श्रद्धालु बड़कोट और जानकीचट्टी तक वाहन से पहुंचते हैं. जहां से मंदिर तक 6 किलोमीटर का पैदल रास्ता है. आप गाड़ी से चलते हुए ध्यान रखें कि ऋषिकेश से यमुनोत्री मार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग NH-94 और पैदल मार्ग) पर जब आप चलें, तो कुछ भूस्खलन जोन से बचके और उनकी जानकारी लेकर ही आगे बढ़ें.

Uttarakhand Chardham Yatra

चारधाम यात्रा रूट (Photo-ETV Bharat Graphic)

बारिश में पहाड़ी से गिरते हैं मलबा और बोल्डर: ये जान लें कि कहीं बारिश भूस्खलन से कोई खतरा तो नहीं है. यमुनोत्री मार्ग पर डाबरकोट पिछले 8 वर्षों से सक्रिय भूस्खलन जोन है. यहां हल्की बारिश में भी मलबा गिरता है. इसके अलावा छटांगा और राजतर गांव से 5 किमी दूर आधा किमी का खतरनाक पैच है. यहां भी कई बार यात्रा बाधित रहती है. इसके बाद इसी मार्ग पर स्थित पालीगाड़ पर भी हाईवे बार-बार बाधित होने से यात्रियों के वाहन फंस जाते हैं. यहां से निकलने के बाद बारिश के दिनों में पैदल मार्ग पर आप नौ कैंची (भैरव मंदिर के पास) का भी विशेष ध्यान रखें. हाल ही में पैदल मार्ग पर जून 2025 यहीं पर भूस्खलन की वजह से 3-5 यात्रियों के दबने की घटना हुई है.

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मानसून सीजन में बारिश बरपाती है कहर (Photo-ETV Bharat)

दूसरा पड़ाव और खतरनाक जोन: दूसरा पड़ाव गंगोत्री का है. ये धाम उत्तरकाशी जिले में पड़ता है, जो समुद्र तल से करीब 3,415 मीटर की ऊंचाई पर है और ऋषिकेश से गंगोत्री लगभग 250 किलोमीटर दूर है. सड़क मार्ग से उत्तरकाशी और हर्षिल होकर गंगोत्री मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. बारिश के दिनों में यहां भी कुछ खतरनाक जोन बन जाते हैं. इनमें नेताला, बिशनपुर, लालढांग, और हेल्कूगाड़ आदि जगहें हैं. यहां लगातार मलबा आने से यात्रा बाधित हो जाती है. फिलहाल मानसून सीजन में कोई घटना या यात्रा बाधित नहीं हुई है. इसके अलावा रमोल गांव ऑल वेदर प्रोजेक्ट के कारण भूस्खलन की चपेट में है और यात्रा मार्ग पर ही ये गांव है. चंबा-गंगोत्री हाईवे पर बारिश में भूस्खलन का जोखिम रहता है. अभी यहां कोई वैकल्पिक मार्ग नहीं है और यात्रा यहीं से आगे बढ़ती है. फिलहाल यहां यात्रा भूस्खलन के कारण नहीं रुकी है.

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चारधाम यात्रा रूट (Photo-ETV Bharat Graphic)

तीसरा पड़ाव और खतरनाक जोन: श्रद्धालुओं की भीड़ के लिहाज से तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव में से एक है केदारनाथ धाम. ये रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. केदारनाथ धाम समुद्र तल से 3,583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ऋषिकेश से केदारनाथ की सड़क दूरी लगभग 230 किलोमीटर है. धाम में जाने के लिए आपको गौरीकुंड तक वाहन से जाना पड़ता है. गौरीकुंड से मंदिर तक 16-17 किलोमीटर का पैदल ट्रेक है, जो खड़ी चढ़ाई और ट्रेक वाले रास्ते से होकर गुजरता है. मानसून में विशेष रूप से ये मार्ग कई बार खतरनाक हो जाता है. केदारनाथ मार्ग पर एनएच-7 है, यहां भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां सबसे अधिक भूस्खलन होता है.

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मार्ग बाधित होने से श्रद्धालुओं को होती है परेशानी (Photo-ETV Bharat)

सोनप्रयाग-गौरीकुंड मार्ग: बारिश में मोटरमार्ग मलबा और बोल्डर गिरने बाधित हो जाता है. हाल के दिनों में मुनकटिया के पास लगातार भूस्खलन के कारण मार्ग बंद हो रहा है. इसके अलावा काकड़ा गाड़ पैदल मार्ग पर भूस्खलन का खतरा बारिश के दिनों में हमेशा बना रहता है. इसलिए यहां से गुजरते वक्त विशेष ध्यान रखें. इसके अलावा पैदल मार्ग पर घोड़ा पड़ाव, गौरीकुंड, लिंनचोली, बड़ी लिंनचोली, जंगल चट्टी, भीमबली, छोटी चौड़ी गदेरा, मुनकटिया भूस्खलन जोन हैं.

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चारधाम यात्रा रूट (Photo-ETV Bharat Graphic)

चौथा पड़ाव और खतरनाक जोन: यात्रा का अंतिम पड़ाव वैकुंठ धाम है. बदरीनाथ धाम चमोली जिले में स्थित है. बदरीनाथ धाम समुद्र तल से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ऋषिकेश से बदरीनाथ की दूरी लगभग 300 किलोमीटर है. नेशनल हाईवे से जोशीमठ और गोविंद घाट होकर बदरीनाथ पहुंचा जाता है. बदरीनाथ की यात्रा में भी कई जगहें हैं, जो भूस्खलन के बाद यात्रियों को काफी परेशान करती हैं. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग ने कुल 57 भूस्खलन क्षेत्र चिह्नित किए हैं. इनमें से प्रमुख स्थान जोन में ऋषिकेश से श्रीनगर के बीच 17 भूस्खलन क्षेत्र शामिल हैं. कलियासौंड़, मुयालगांव, बाछलीखाल, कौडियाला, घोलतीर, लामबगड़, बदरीनाथ से 18 किमी पहले, सबसे प्रमुख भूस्खलन जोन हैं. पिनौला गोविंदघाट के पास है. हाल की घटनाओं में कई बार मार्ग बंद हुआ है. सिरोबगड़ में अमूमन बारिश से बार-बार मलबा गिरता है. पातालगंगा में चट्टानें गिरने से मार्ग बाधित होता रहता है. भनेरपानी और पीपलकोटी में लगातार भूस्खलन होता रहता है. चारधाम यात्रा पर भूस्खलन वाली जगह पर आपदा प्रबंधन विभाग ने अपनी टीमें तैनात की हैं.

केदारनाथ और बदरीनाथ के साथ गंगोत्री और यमुनोत्री मार्ग पर एनडीआरएफ एसडीआरएफ की टीम में लगाई हुई हैं. इसके साथ ही पीडब्ल्यूडी और बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन की टीम भी अलर्ट पर हैं. सभी खतरें वाली जगहों पर रोड खोलने के लिए 60 से अधिक मशीनें लगाई गई हैं, ताकि रास्ता बंद होने पर तुरंत खोला जा सके. इसके अलावा मोबाइल की कनेक्टिविटी हमेशा चलती रहे, इसके लिए कुछ पोर्टेबल टावर भी लगाए गए हैं. आपदा की स्थिति में केदारनाथ बदरीनाथ और गंगोत्री क्षेत्र में अगर कुछ होता है तो हेलीकॉप्टर भी तत्काल उपलब्ध कराई जा रही है.
– विनोद कुमार सुमन,आपदा सचिव –

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श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था (Photo-ETV Bharat Graphic)

खाने-पीने और ठहरने की व्यवस्था: आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि अगर कहीं पर भी भूस्खलन से रास्ता बंद होने पर यात्री फंस जाते हैं, तो एनडीआरएफ और एसडीआरएफ टीम यात्रियों के लिए खाने के पैकेट पहुंचाती है. मौसम अगर खुला होता है तो हेलीकॉप्टर का प्रयोग भी कर सकते हैं.

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श्रद्धालुओं की सहायता के लिए हेल्पलाइन नंबर (Photo-ETV Bharat Graphic)

बारिश में क्या करें और कहां रुकें: गर्म कपड़े, कंबल, रेनकोट और छाता साथ रखें. मजबूत जूते पहनें जो फिसलन भरे रास्तों पर पकड़ बनाए रखें. इसके साथ ही मौसम की जानकारी के लिए स्थानीय प्रशासन या मौसम विभाग की वेबसाइट (www.imd.gov.in) चेक करते रहें. यमुनोत्री के यात्री बड़कोट, जानकी चट्टी, या हनुमान चट्टी में रुक सकते हैं. यहां GMVN गेस्ट हाउस और निजी होटल उपलब्ध हैं. जबकि गंगोत्री के यात्री उत्तरकाशी, हर्षिल या गंगोत्री में रुक सकते हैं, यहां भी GMVN और स्थानीय धर्मशालाएं हैं. केदारनाथ यात्री गौरीकुंड, गुप्तकाशी, या सोनप्रयाग में स्टे कर सकते हैं. गौरीकुंड में अस्थायी रहने की व्यवस्था और भोजन की व्यवस्था है. बदरीनाथ के यात्री जोशीमठ, पीपलकोटी और बदरीनाथ में रुक सकते हैं, यहां GMVN गेस्ट हाउस और निजी होटल उपलब्ध हैं.

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