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नैनीताल के चोपड़ा गांव के पत्थरों में छिपी है पौराणिक कहानी, ग्रामीण मानते हैं महाभारत कालीन शिलापट्ट


रामनगर (कैलाश सुयाल): नैनीताल जिले के रामनगर क्षेत्र में स्थित एक छोटा लेकिन रहस्यमयी गांव है चोपड़ा. ये गांव इन दिनों इतिहास प्रेमियों की रुचि का केंद्र बना हुआ है. साल के घने पेड़ों से घिरा यह गांव हाल ही में राजस्व गांव घोषित हुआ है. मगर इसकी पहचान इसके प्राकृतिक सौंदर्य से ही नहीं, बल्कि उन रहस्यमयी पत्थरों से भी है, जो यहां रखे हुए हैं. ग्रामीणों की मानें तो ये पांडवकालीन शिलापट्ट हैं, जिन पर की गई प्राचीन नक्काशी आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

गांव में बिखरा इतिहास: चोपड़ा गांव के बीचोंबीच पत्थरों के कुछ अवशेष रखे हैं. इन पर अद्भुत नक्काशी की गई है. ग्रामीणों का कहना है कि ये मूर्तियां उनके पूर्वजों को खुदाई के दौरान मिली थीं. तब से यहीं पर रखी हुई हैं. इन पत्थरों की भाषा आज तक किसी के समझ में नहीं आई, लेकिन स्थानीय लोगों का दृढ़ विश्वास है कि यह पांडवों के समय की निशानियां हैं.

चोपड़ा गांव के रहस्यमयी शिलापट्ट (Video- ETV Bharat)

ग्रामीण प्रताप चंद्र कहते हैं इन पत्थरों में जो आकृतियाँ बनी हैं, वे भगवान जैसी प्रतीत होती हैं. समय के साथ इनमें बनी नक्काशी अब धुंधली होने लगी हैं. कई बार लोगों ने इन्हें यहां से हटाने की कोशिश की लेकिन उनके साथ कुछ न कुछ अनहोनी घटित हो गई और वह इन्हें वापस यहीं छोड़ गए.

चोपड़ा राजस्व ग्राम रामनगर से 22 किमी दूर है (Photo- ETV Bharat)

पुरातत्व विभाग की चुप्पी: वर्ष 2021 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) की एक टीम ने यहां का दौरा किया था, लेकिन आज तक कोई ठोस जानकारी या रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई. इससे स्थानीय ग्रामीणों में नाराजगी भी है. ग्रामीणों का मानना है कि अगर इन पत्थरों का वैज्ञानिक अध्ययन और संरक्षण हो, तो यह स्थान धार्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सकता है.

Pandava period stones in Chopra

चोपड़ा गांव में मिले शिलापट्ट (Photo- ETV Bharat)

सामाजिक कार्यकर्ता ने उठाई ये मांग: सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा का कहना है कि-

यह क्षेत्र सीतावनी मंदिर के बिल्कुल पास स्थित है और धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यहां पर पांडव कालीन शिलापीठ जैसी संरचनाएं मौजूद हैं, जो किसी भी पर्यटक को आकर्षित कर सकती हैं. यदि शासन-प्रशासन इनका संरक्षण करे, तो यह स्थान स्थानीय लोगों को रोजगार भी दिला सकता है.
-नरेंद्र शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता-

इतिहासकार ने बताया वीरखंभ: स्थानीय इतिहासकार और संस्कृति के जानकार गणेश रावत ने बताया कि यह संरचनाएं 10वीं से 12वीं शताब्दी की मानी जाती हैं. इन्हें वीरखंभ कहा जाता है. इस क्षेत्र में 20 से अधिक वीरखंभ मौजूद हैं. माना जाता है कि इनका निर्माण उत्तराखंड के प्राचीन कत्यूरी वंश के शासनकाल में हुआ था. गणेश रावत बताते हैं कि-

इन वीरखंभों का निर्माण संभवतः क्षेत्र की सीमाओं के निर्धारण या फिर किसी विकसित या महत्वपूर्ण भूमि पर अधिकार जताने के प्रतीक स्वरूप किया गया होगा. इस स्थल पर प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों का गहन अध्ययन और समुचित संरक्षण किया जाना आवश्यक है, ताकि हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखा जा सके
-गणेश रावत, इतिहासकार-

वन विभाग करेगा संरक्षण का प्रयास: रामनगर वन प्रभाग के डीएफओ दिगंत नायक ने माना कि-

यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह स्थान सीतावनी मंदिर लैंडस्केप के पास स्थित है. स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार यहां पांडव काल के अवशेष मौजूद हैं. हमने पुरातत्व विभाग को इस विषय में पत्र लिखने का निर्णय लिया है. विभाग पहले ही यहां एक बार सर्वे कर चुका है.
-दिगंत नायक, डीएफओ-

दिगंत नायक ने आगे बताया कि भविष्य में यहा टूरिज्म सर्किट भी विकसित किया जा सकता है, जिससे पर्यटक इस क्षेत्र में आकर इतिहास से रूबरू हो सकें. हम कोशिश करेंगे कि इन शिलापट्टों को संरक्षित किया जाए, ताकि इस स्थान की ऐतिहासिक पहचान बनी रहे और यह पर्यटन के नक्शे पर उभर कर आए.

Pandava period stones in Chopra

गांव के लोग इन शिलापट्टों को महाभारतकालीन मानते हैं (Photo- ETV Bharat)

पर्यटन की अपार संभावनाएं: सीतावनी और चोपड़ा गांव का यह इलाका न केवल पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, बल्कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता भी अनूठी है. यदि सरकार और प्रशासन का सहयोग मिले, तो यह गांव आने वाले समय में उत्तराखंड का एक प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन स्थल बन सकता है.

ग्रामीणों की उम्मीदें जिंदा: आज भी चोपड़ा गांव के लोग इस उम्मीद में हैं कि कभी न कभी सरकार या पुरातत्व विभाग इस क्षेत्र की ओर ध्यान देंगे. इन रहस्यमयी पत्थरों के पीछे छिपा इतिहास सबके सामने आएगा. इससे न केवल गांव की विरासत संरक्षित होगी, बल्कि नई पीढ़ी को भी अपने अतीत से जोड़ने का काम होगा.

Pandava period stones in Chopra

इन शिलापट्टों की लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है (Photo- ETV Bharat)

रामनगर का चोपड़ा गांव आज भले ही एक छोटा सा नाम हो, लेकिन इसके गर्भ में छिपा इतिहास इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला सकता है. अब जरूरत है केवल उचित संरक्षण, वैज्ञानिक अध्ययन और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की, जो इस धरोहर को उजागर कर सके.

Pandava period stones in Chopra

इतिहासकार इन शिलापट्टों को वीरखंभ बता रहे हैं (Photo- ETV Bharat)

चोपड़ा गांव नैनीताल जिले में है: चोपड़ा गांव नैनीताल जिले में रामनगर के पास स्थित है. चोपड़ा गांव पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा उधम सिंह नगर जिले के पंतनगर में है. पंतनगर से रामनगर की दूरी सड़क मार्ग से करीब 85 किलोमीटर है. पंतनगर से रामनगर बस और ट्रेन से भी आ सकते हैं. यहां से टैक्सी भी किराए पर उपलब्ध होती हैं.

Pandava period stones in Chopra

शिलापट्टों में आकृतियां भी बनी हैं (Photo- ETV Bharat)

ऐसे पहुंचें चोपड़ा गांव: रामनगर के लिए ट्रेन और बस भी पहुंचने का माध्यम है. रामनगर को कॉर्बेट नगरी भी कहते हैं. रामनगर से चोपड़ा गांव के लिए बस और टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है. दिल्ली या अन्य शहरों से आने वाले यात्री ट्रेन के माध्यम से पहले रामनगर पहुंच सकते हैं. यहां से चोपड़ा गांव जाने के लिए टैक्सी या बस सेवा उपलब्ध है. ये ट्रांसपोर्ट के साधन सुबह 11 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक विभिन्न समयों पर पाटकोट और बेतालघाट की ओर जाते हैं.

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ये शिलापट्ट रहस्य बने हुए हैं (Photo- ETV Bharat)

रामनगर से 22 किमी है दूरी: नैनीताल जिले का चोपड़ा गांव रामनगर भंडारपानी–पाटकोट–बेतालघाट मार्ग पर स्थित है, जो रामनगर से लगभग 19 किलोमीटर की दूरी पर है. सड़क से गांव की पैदल दूरी करीब 3 किलोमीटर है. इस तरह कुल 22 किलोमीटर की दूरी चोपड़ा गांव तक पहुंचने में तय करनी पड़ती है. यहां का बस किराया लगभग ₹50 है. टैक्सी का किराया ₹1000 से ₹1500 तक हो सकता है.

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स्थानीय लोग इन शिलापट्टों को लेकर कहानियां बताते हैं (Photo- ETV Bharat)

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