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उत्तराखंड: जोशीमठ भू-धंसाव के रहस्य से जल्द उठेगा पर्दा, लैंडस्लाइड के नहीं, ग्लेशियर के मलबे पर बसा है शहर


उत्तराखंड जोशीमठ भू-धंसाव (Photo-ETV Bharat)

देहरादून: जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर वैज्ञानिक लगातार अध्ययन कर रहे हैं. हालांकि, जोशीमठ में पिछले कुछ सालों से नहीं बल्कि दो से तीन दशकों से भू-धंसाव की संभावना जताई जा रही है. लेकिन साल 2022-23 के दौरान भू-धंसाव की स्थिति काफी गंभीर हो गई थी. इसके बाद वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (WIHG) के साथ ही अन्य संस्थाओं के वैज्ञानिकों की ओर से उस क्षेत्र में अध्ययन किया गया. जिसमें पाया गया कि भू-धंसाव अलग-अलग जगह पर कुछ सेंटीमीटर से लेकर 14.5 मीटर तक है. इसके साथ ही इस बात पर भी जोर दिया गया कि जोशीमठ शहर पुराने भूस्खलन के मलबे के ऊपर बसा है, जिस वजह से जमीन लगातार धंस रही है. वही, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक जोशीमठ पर अध्ययन कर रहे हैं, इसके शुरुआती चरण में यह बात सामने आई है कि जोशीमठ क्षेत्र भूस्खलन के मलबे पर नहीं, बल्कि ग्लेशियर के छोटे मलबे के ढेर पर बसा है.

ग्लेशियर के मलबे पर बसा है जोशीमठ शहर: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (WIHG) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता ने कहा कि जोशीमठ की स्टडी चल रही है. शुरुआती अध्ययन में गोरसों और ऑली क्षेत्र में ग्लेशियर के एडवांस मेल्ट और मोरनी डेट मिली है. जिसकी डेटिंग के दौरान यह पता चला कि वहां पर ग्लेशियर के पीछे खींचने के बाद जो मालबा छूट गया, वह करीब 7 हजार साल पुराना है. यानी 7000 साल पहले यह पूरा क्षेत्र ग्लेशियर से ढका हुआ था. ऐसे में फिलहाल शुरुआती अध्ययन से ये अनुमान लगाया जा रहा है कि जोशीमठ शहर भूस्खलन के मलबे पर नहीं बल्कि ग्लेशियर के मलबे पर बसा हुआ है.

जोशीमठ भू-धंसाव के रहस्य से जल्द उठेगा पर्दा (Video-ETV Bharat)

जोशीमठ क्षेत्र को वर्तमान समय में देखा जाए तो उसकी सतह पर बड़े-बड़े बोल्डर नजर आते हैं. जो भूस्खलन में नहीं होती है, बल्कि किसी क्षेत्र में इस तरह के बोल्डर तभी मिलते हैं, जब ग्लेशियर अपने साथ लेकर के आता है.इसके अलावा विष्णुप्रयाग के पास कुछ लेक सेडिमेंट्स भी देखे गए हैं. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि जब 7000 साल पहले इस क्षेत्र में ग्लेशियर एवलांच हुआ होगा. उस दौरान यहां पर मौजूद रिवर को ब्लॉक किया होगा, जिससे लेक बनी होगी. ऐसे में जब लेक का सैंपल लेकर उसकी कार्बन डेटिंग की गई तो उसकी उम्र 4 से 5000 साल निकाल कर सामने आई है.
वैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान

अतीत में ग्लेशियर से ढका था ये क्षेत्र: वैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता ने आगे कहा कि ऐसे में फील्ड वर्क होने के बाद पूरी जानकारी सामने आ पाएगी कि उसे क्षेत्र की एक्चुअल स्थिति पहले क्या थी. साथ ही कहा कि डेटिंग से 7000 साल पुरानी जानकारियां मिली हैं. ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि उस दौरान वहां कोई बसावट नहीं रही होगी. अगर उसे दौरान कोई बसावट रही भी होगी तो उस रास्ते से लोग बदरीनाथ धाम के दर्शन करने जाते रहे होंगे. साथ ही बताया कि करीब 7000 साल पहले यह पूरा क्षेत्र ग्लेशियर से ढका था. ऐसे में ग्लेशियर के पीछे खिसकने के बाद जो मलबा छूट गया उसमें भारी मात्रा में बड़े-बड़े बोल्डर भी थे. समय के मलबे ने ठोस धरातल का रूप ले लिया और फिर इस क्षेत्र में बसावट होने लगी. यही वजह है कि जोशीमठ का क्षेत्र अन्य जमीनों की तुलना में कमजोर है, जिसके चलते ही भू-धंसाव हो रहे हैं.

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सामरिक महत्व से खास शहर (ETV Bharat Graphics)

भू-धंसाव से देश में चर्चाओं में आया जोशीमठ: दरअसल, जनवरी 2023 में उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में भू-धंसाव का मामला काफी अधिक चर्चाओं में आया था. उस दौरान जोशीमठ क्षेत्र में हुए भू-धंसाव की वजह से करीब 800 से अधिक मकानों में काफी अधिक दरारें पड़ी थी. एनडीएमए की रिपोर्ट के अनुसार, 2152 मकानों में से 1403 मकान प्रभावित हुए. जिसमें से 472 मकानों को पुनर्निर्माण एवं 931 को मरम्मत की जरूरत महसूस हुई. यही नहीं, 181 भवनों को खाली कराया गया जो काफी अधिक संवेदनशील हो गए थे.

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जोशीमठ का पौराणिक महत्व (ETV Bharat Graphics)

जोशीमठ में भू-धंसाव की वजहें: जोशीमठ में भू-धंसाव को देखते हुए सरकार ने विशेषज्ञों की टीम गठित की थी. जिस टीम में एनडीएमए, जीएसआई, सीबीआरआई एवं अन्य वैज्ञानिक संस्थानों के 35 सदस्य शामिल थे. हालांकि, नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर आठ संस्थाओं की ओर से रिपोर्ट सार्वजनिक की गई. जिसमे भू-धंसाव के वजहों को बताया गया, जिसमें मुख्य रूप से जल निकासी की कमी एवं मानवीय गतिविधियों का जिक्र किया गया. वर्तमान समय में भी पुनर्वास नीति अभी भी अधर में लटकी है.

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