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डिहाइड्रेशन के कारण बिगड़ा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का स्वास्थ्य, अब हालत स्थिर, स्वास्थ्य मंत्री ने जाना हाल


नैनीताल: उत्तराखंड दौरे पर पहुंचे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक स्वास्थ्य बिगड़ गया. उन्हें नैनीताल राजभवन ले जाया गया है, जहां डॉक्टर उनका प्राथमिक उपचार कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि कार्यक्रम समाप्त होने बाद सभागार से बाहर निकलते हुए उनकी तबीयत बिगड़ी.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ आज बुधवार को कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने नैनीताल पहुंचे. कार्यक्रम में शिरकत करने के बाद कार्यक्रम के समापन पर जैसी ही उपराष्ट्रपति धनखड़ कार्यक्रम सभागार से बाहर निकले, तभी उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया. बताया जा रहा है कि उनके सीने में दर्द उठा. इस दौरान उनके साथ मौजूद पूर्व सांसद महेंद्र पाल और राष्ट्रपति के सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें गाड़ी में बैठाया और नैनीताल राजभवन ले गए.

डिहाइड्रेशन के कारण बिगड़ा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का स्वास्थ्य (VIDEO-ETV Bharat)

राजभवन में उपराष्ट्रपति के साथ चलने वाले स्वास्थ्य विभाग दिल्ली के डॉक्टर और नैनीताल जिला अस्पताल के डॉक्टर उन्हें प्राथमिक उपचार दे रहे हैं. उपराष्ट्रपति के अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है. हालांकि, पूर्व सांसद महेंद्र पाल ने बताया कि, भावुक होने के कारण उनकी थोड़ी तबीयत बिगड़ी. लेकिन कुछ देर बाद वे नॉर्मल हो गए.

स्वास्थ्य मंत्री ने जाना हालचाल: वहीं घटना की जानकारी मिलते ही उत्तराखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर धन सिंह रावत ने राजभवन पहुंचकर उपराष्ट्रपति का हालचाल जाना. इसके बाद स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि फिलहाल उपराष्ट्रपति की तबीयत स्थिर है और घबराने की कोई बात नहीं है. डॉक्टरों की टीम लगातार उनकी सेहत की निगरानी कर रही है.

डॉक्टरों ने दी आराम करने की सलाह: उधर विश्वविद्यालय प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों ने स्थिति को गंभीरता से लेते हुए कार्यक्रम स्थल की व्यवस्था को और सख्त कर दिया. उपराष्ट्रपति का स्वास्थ्य बिगड़ने की वजह फिलहाल हल्का डिहाइड्रेशन बताया जा रहा है. हालांकि, चिकित्सकों ने एहतियातन उन्हें कुछ समय के लिए विश्राम की सलाह दी है. कार्यक्रम को संक्षिप्त कर किया गया. इसके अलावा हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल और अन्य अस्पतालों को भी अलर्ट मोड में रखा गया है.

उपराष्ट्रपति का संबोधन: वहीं कुमाऊं विवि में कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में उन्होंने इमरजेंसी पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, 50 वर्ष पहले, इसी दिन, विश्व का सबसे पुराना, सबसे बड़ा और अब सबसे जीवंत लोकतंत्र (भारत) एक गंभीर संकट से गुजरा. यह था आपातकाल का थोपना. उस समय की प्रधानमंत्री, जो उच्च न्यायालय के एक प्रतिकूल निर्णय का सामना कर रही थीं, ने पूरे राष्ट्र की उपेक्षा कर, व्यक्तिगत हित के लिए निर्णय लिया. राष्ट्रपति ने संवैधानिक मूल्यों को कुचलते हुए आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए. इसके बाद जो 21-22 महीनों का कालखंड आया, वह लोकतंत्र के लिए अत्यंत अशांत और अकल्पनीय था. यह हमारे लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय काल था.

अपने संबोधन में ‘संविधान हत्या दिवस’ के महत्व को रेखांकित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि, ‘युवाओं को इस पर चिंतन करना चाहिए. युवाओं का जागरूक बनाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि बहुत सोच-समझकर, आज की सरकार ने तय किया कि इस दिन को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा. यह एक ऐसा उत्सव होगा जो सुनिश्चित करेगा कि ऐसा फिर कभी न हो. यह उन दोषियों की पहचान का भी अवसर होगा जिन्होंने मानवीय अधिकारों, संविधान की आत्मा और भाव को कुचला.

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