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लालू यादव को लैंड फॉर जॉब स्कैम में बड़ा झटका, सुप्रीम कोर्ट ने स्टे देने से किया इनकार


पटना: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू यादव को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने लैंड फॉर जॉब मामले में ट्रायल कोर्ट के कार्रवाई पर रोक लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट से लालू को झटका: लालू यादव ने सीबीआई के लैंड-फॉर-जॉब मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग को खारिज करने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 18 जुलाई को इस मामले की सुनवाई की.

लालू यादव को निचली अदालत में पेशी से छूट: सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट को आदेश दिया कि इस मामले की जल्द सुनवाई की जाए. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने लालू प्रसाद को राहत देते हुए निचली अदालत में पेशी से छूट दी है.

हाई कोर्ट ने रोक से किया था इनकार: 29 मई को दिल्ली हाई कोर्ट ने अपनी सुनवाई में कहा था कि कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए कोई ठोस कारण नहीं है. हालांकि, हाई कोर्ट ने लालू यादव की एफआईआर रद्द करने की याचिका पर सीबीआई को नोटिस जारी किया और इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 12 अगस्त तय की है.

क्या है पूरा मामला: यह मामला भारतीय रेलवे के पश्चिम मध्य जोन, जबलपुर (मध्य प्रदेश) में ग्रुप डी की नियुक्तियों से जुड़ा है. कथित तौर पर ये 2004 से 2009 तक रेल मंत्री के रूप में लालू यादव के कार्यकाल के दौरान हुई थी. आरोप है कि इन भर्तियों के बदले उम्मीदवारों या उनके परिवार ने लालू यादव के परिवार और सहयोगियों के नाम पर जमीनें उपहार में दी या हस्तांतरित की थी.

याचिका रद्द करने की अपील: दिल्ली हाई कोर्ट में दायर अपनी याचिका में, लालू यादव ने सीबीआई द्वारा 2022, 2023 और 2024 में दायर तीन चार्जशीट्स और उसके बाद की संज्ञान लेने की प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की है. यह मामला 18 मई, 2022 को लालू प्रसाद सहित उनकी पत्नी, दो बेटियों, अज्ञात सरकारी अधिकारियों और कुछ निजी व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज किया गया था.

क्या कहते हैं लालू यादव ? : बता दें कि लालू यादव ने अपनी याचिका में कहा है कि एफआईआर 2022 में दर्ज की गई, जबकि कथित मामला करीब 14 साल पहले का है. सीबीआई ने पहले भी इस मामले की जांच की थी और इसे बंद कर दिया था, जिसकी रिपोर्ट सक्षम अदालत में दाखिल की गई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि “पहली जांच को छिपाकर नई जांच शुरू करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है.”

‘परेशान करना उद्देश्य’: अपनी याचिका में लालू प्रसाद ने कहा है कि उन्हें “गैरकानूनी और पक्षपातपूर्ण जांच” के जरिए परेशान किया जा रहा है, जो उनके निष्पक्ष जांच के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि इस मामले में बिना पूर्व स्वीकृति के जांच शुरू की गई है, जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17-A के तहत अनिवार्य है. ऐसे में बिना अनुमति के की गई कोई भी जांच प्रक्रिया शुरू से ही अवैध और अमान्य मानी जानी चाहिए.

बदले की भावना से कार्रवाई: लालू यादव की अपील में कहा गया है कि ये सत्ता परिवर्तन के बदले की भावना और राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण बताया है. उन्होंने आगे कहा है कि बिना कानूनन अनुमति के जांच शुरू करना एक सही कदम नहीं है, जिससे पूरी प्रक्रिया ही अमान्य हो जाती है.

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