देहरादून (धीरज सजवाण): केदारनाथ और बदरीनाथ धाम सहित आधे गढ़वाल मंडल को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग NH-07 एक बड़ी समस्या की जद में है. इस समस्या का हाल ही में पता चला है. सामरिक दृष्टि से भी ये मार्ग महत्वपूर्ण है. ये समस्या अगर आ गई तो गढ़वाल की लाइफ लाइन ऋषिकेश-बदरीनाथ नेशनल हाईवे का फिर कोई विकल्प नहीं होगा.
तोता घाटी में बिगड़ सकते हैं हालात: हम बात कर रहे हैं गढ़वाल की जीवन रेखा ऋषिकेश-बदरीनाथ नेशनल हाईवे को रास्ता देने वाली तोता घाटी की. तोता घाटी एक जगह ही नहीं, बल्कि यह उत्तराखंड के इतिहास और हिमालय क्षेत्र की विषम भौगोलिक परिस्थितियों का जीता जागता उदाहरण है. लेकिन अब भौगोलिक गतिविधियों पर नजर रखने वाले लोगों को यहां एक समस्या बहुत परेशान कर रही है. अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान या विकल्प नहीं ढूंढा गया तो भविष्य में स्थिति काफी विकट हो सकती है.
तोता घाटी में पड़ी दरारों ने चिंता बढ़ाई (Video- ETV Bharat)
अब भी रहस्यमयी है तोता घाटी: दरअसल, गढ़वाल के देवप्रयाग, श्रीनगर, चमोली, रुद्रयाग सहित समूचे गढ़वाल को मैदान से जोड़ने वाला मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग नेशनल हाईवे 07 पर ऋषिकेश से श्रीनगर जाते समय लगभग 75-80 किलोमीटर की दूरी पर खड़ी चट्टानों को काटती हुई सड़क जिस जगह पर क्रॉस करती है वही तोता घाटी है.
ये तोता घाटी जितनी रहस्यमयी पहली बार सड़क बनने से पहले थी, उतना ही रहस्य आज भी अपने अंदर छिपाए है. ना तो पहली बार यहां सड़क बनाना आसान था और ना आज यहां हालात अनुकूल हैं. तोता घाटी के आज के हालातों के बारे में बात करने से पहले आपको थोड़ा इसके इतिहास में ले चलते हैं. जब पहली बार यहां सड़क बनाई गई तब कैसे एक पहाड़ और एक पहाड़ी नौजवान ने एक दूसरे को चुनौती दी, यह समझते हैं.
तोता घाटी की दरारों की मॉनिटरिंग की जा रही है (Photo@Senior Geologist Mahendra Pratap Singh Bisht)
पहाड़ को चीर कर अपने नाम कर गये तोता सिंह: ‘तोता घाटी’ उत्तराखंड के ऋषिकेश–बदरीनाथ नेशनल हाईवे पर देवप्रयाग और व्यासी के बीच साकणी धार से पहले पड़ती है. इसका रोचक इतिहास 1930 के दशक से जुड़ा है. इतिहासकार शीशपाल गुसाईं बताते हैं कि 1931 में ऋषिकेश से कीर्तिनगर तक सड़क बनाने की योजना थी. लेकिन तोता घाटी की उलझी हुई लाइम स्टोन की चट्टानें इतनी कठोर थीं कि कोई ठेकेदार उस समय की दर पर काम करने को तैयार नहीं था. अंत में प्रतापनगर के ठेकेदार तोता सिंह रांगड़ ने पहाड़ को चीरने का बीड़ा उठाया. वो भी उस समय के सामान्य औजारों से.

तोता घाटी में आई दरारें (Photo@Senior Geologist Mahendra Pratap Singh Bisht)
छेनी हथौड़ों से तोता सिंह ने बनाई थी सड़क:
इस दुर्गम पहाड़ी पर मार्ग बनाना बेहद मुश्किल था. तब कोई आधुनिक ड्रिलिंग मशीन नहीं थी. छैनी हथौड़ों से उनके मजदूर और इंजीनियर लगे रहे. इस दौरान कई मजदूरों की जान चली गई. ज्यादातर लोग काम छोड़कर चले गए. इसके बावजूद भी ठेकेदार तोता सिंह ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने अपनी जमा पूंजी खर्च की. पत्नी के आभूषण तक बेच दिए. मजदूरों के जाने के बाद 50 ग्रामीणों के साथ रात-दिन एक करके आखिरकार इस चट्टान को तोड़ा और यहां पर सड़क बना दी.
– शीशपाल गुसाईं, इतिहासकार –
तोता सिंह के नाम पर रखा तोता घाटी: तोता सिंह रांगड़ के इस साहसिक सफल कार्य से टिहरी के राजा इतने खुश हुए, कि इस जगह का नाम ठेकेदार तोता सिंह रांगड़ के नाम पर तोता घाटी रख दिया. राजा ने उन्हें ‘लाट साहब’ की उपाधि भी दी. टिहरी के राजा नरेंद्र शाह ने उनकी इस अथाह मेहनत को देखते हुए बाद में नरेंद्र नगर में एक पूरी जागीर भी तोहफे में दे दी.

तोता घाटी रहस्यमय है (ETV Bharat Graphics)
तोता घाटी को लेकर चिंता: पहली बार ऋषिकेश-श्रीनगर सड़क का निर्माण 1935 में पूरा हुआ. इसी दौरान ‘तोता घाटी’ नाम सरकारी दस्तावेजों में भी दर्ज हो गया. लेकिन आज तकरीबन 100 साल बाद सड़क निर्माताओं और शोधकर्ताओं ने एक बार फिर इस जगह को लेकर चिंता जाहिर की है.
‘तोता घाटी’ में दिखीं डराने वाले दरारें: तोता घाटी के आज की परिस्थितियों की बात की जाए तो ऑल वेदर रोड और सड़क चौड़ीकरण के चलते एक बार फिर तोता घाटी को छेड़ा गया, जो अब निर्माण एजेंसियों के गले पर बन आई है. वैज्ञानिकों ने तोता घाटी में बड़ी दरारें पाई हैं. एचएनबी गढ़वाल सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए बताया कि आज प्रदेश के सामने तोता घाटी एक नई और बड़ी समस्या बनकर सामने है. हमें राज्य के इतिहास से सीखते हुए भविष्य के लिए सोचना चाहिए.

ये है तोता घाटी (ETV Bharat Graphics)
लाइम स्टोन रॉक से बनी है तोता घाटी: महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट बताते हैं कि, तोता घाटी का अपना एक इतिहास है, लेकिन आज के परिदृश्य में अगर बात की जाए तो इस जगह की भौगोलिक बनावट लाइमस्टोन रॉक से निर्मित है. यहां पर हाल ही में कई बड़े-बड़े फ्रैक्चर और दरारें देखी गई हैं. इस बात की जानकारी हमें भी नहीं थी कि यहां पर इतनी बड़ी दरारें हैं. यह बड़ा फिनोमिना है कि लाइमस्टोन में फ्रैक्चर और क्लिंट्स पाए जाते हैं और यह समय के साथ खुलते रहते हैं.
3 फीट तक चौड़ी दरारें बनी हैं:
तोता घाटी में जहां पर सड़क क्रॉस करती है, उससे 300 मीटर ऊपर जाएं, तो पहाड़ के टॉप पर चार बड़ी दरारें हैं. इन दरारों का आकार इतना बड़ा है कि एक भूवैज्ञानिक के नजरिए से ये दरारें डराने वाली हैं. ये दरारें तकरीबन ढाई से 3 फीट चौड़ी हैं. पहाड़ी पर उनकी लंबाई काफी ज्यादा है तो गहराई इतनी ज्यादा है कि इसका अंदाजा लगाया जाना बेहद मुश्किल है.
– महेंद्र प्रताप सिंह, वरिष्ठ भू वैज्ञानिक –

तोता घाटी में ऋषिकेश बदरीनाथ एनएच को खतरा पैदा हो गया है (Photo@Senior Geologist Mahendra Pratap Singh Bisht)
तोता घाटी की दरारों की गहराई का नहीं अंदाजा: वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट ने बताया कि अपने एक प्रयोग के दौरान उन्होंने पाया कि यह दरारें कई सौ मीटर गहरी हैं जो कि पूरे पहाड़ को चीर कर अनंत गहराई में जा रही हैं.
तोता घाटी पर इन दरारों का फॉर्मेशन इस तरह का है कि अगर ये दरारें बढ़ती हैं या फिर टूटती हैं, तो पहाड़ी का एक पूरा हिस्सा साफ हो जाएगा. ऐसे में कई महीनों के लिए ऋषिकेश-बदरीनाथ नेशनल हाईवे पूरी तरह से ठप हो जाएगा. दरारों के चलते अगर यह रॉक फॉल होता है, तो पूरा पहाड़ नीचे गंगा में समा जाएगा और पूरे गढ़वाल की लाइफ लाइन ठप हो जाएगी.
– महेंद्र प्रताप सिंह, वरिष्ठ भू वैज्ञानिक –
तोता घाटी का पहाड़ ढहा तो मिट जाएगा एनएच का नाम-ओ-निशान: उन्होंने कहा कि आसपास कोई भी वैकल्पिक मार्ग यहां मौजूद नहीं है. उन्होंने अपनी चिंता मुख्य सचिव आनंद वर्धन के सामने भी रखी है और कहा कि हमें यहां पर एक सुरक्षित वैकल्पिक मार्ग को लेकर सोचना चाहिए.

नेट से दरारों को फैलने से रोकने की कोशिश (Photo@Senior Geologist Mahendra Pratap Singh Bisht)
ये विभाग कर हैं तोता घाटी की मॉनिटरिंग: कई जिलों और बदरी-केदार धाम सहित माणा बॉर्डर को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग NH-07 जो पूरे गढ़वाल की लाइफ लाइन भी है. यहां पर मौजूद तोता घाटी के इस जियोलॉजिकल डेवलपमेंट को लेकर उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग की नेशनल हाईवे शाखा भी सकते में हैं. भू वैज्ञानिकों द्वारा किए गए विश्लेषण और दरारों की हालत को देखते हुए लोक निर्माण विभाग अब तोता घाटी पर ज्यादा एहतियात बरत रहा है.
ऑलवेदर रोड बनने के बाद बढ़ी चुनौती! लोक निर्माण विभाग के चीफ इंजीनियर राष्ट्रीय राजमार्ग मुकेश परमार ने बताया कि-
तोता घाटी पर पहले 9 से 10 मीटर चौड़ी सड़क थी. ऑल वेदर रोड के तहत जब काम किया गया, तो सड़क को चौड़ी करके तकरीबन 20 मीटर किया गया. इसी के साथ चुनौतियां भी सामने आने लगीं. सड़क चौड़ीकरण के लिए पहाड़ी की तरफ खुदाई करनी पड़ी. इसकी वजह से क्रॉस सेक्शन काफी ज्यादा हाई हो गए. ओवर हैंगिंग रॉक के साथ-साथ लैंडस्लाइड का खतरा भी बढ़ गया.
– मुकेश परमार, चीफ इंजीनियर, पीडब्ल्यूडी एनएच –
शुरू से ही चुनौती रही है तोता घाटी: चीफ इंजीनियर मुकेश परमार ने बताया कि तोता घाटी शुरू से ही चुनौती भरी रही है. जब उनके द्वारा सड़क चौड़ीकरण किया गया, तो उस वक्त भी देखा गया कि एक शार्प रिज के चलते यहां पर काम किया जाना बेहद खतरनाक साबित हो रहा था. कार्यदायी संस्था द्वारा इस जगह पर लगातार आ रही चुनौतियों को देखते हुए भू वैज्ञानिकों से संपर्क किया गया. जब जियोलॉजिस्ट टीम यहां पर पहुंची, तो निरीक्षण के दौरान पाया गया कि तोता घाटी जैसी बाहर से दिखती है, उससे कई ज्यादा खतरनाक अंदर से है.

तोता घाटी में निरीक्षण करते भूगर्भवेत्ता (Photo@Senior Geologist Mahendra Pratap Singh Bisht)
दरारों की मॉनिटरिंग हो रही है:
पहाड़ के बीच में इतनी बड़ी-बड़ी दरारें हैं कि इन्हें भरना शुरू करेंगे तो 3000 क्यूबिक मीटर कंक्रीट का पता भी नहीं चलेगा. इसलिए पहाड़ के बीच में दरारों की मॉनिटरिंग के लिए इक्विपमेंट यहां पर लगाए गए हैं, ताकि पहाड़ के भीतर की छोटी सी भी गतिविधि को मापा जा सके.
– मुकेश परमार, चीफ इंजीनियर, पीडब्ल्यूडी –
लैंडस्लाइड अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाया गया: चीफ इंजीनियर मुकेश परमार ने बताया कि इन दरारों को देखते हुए वहां पर कोई काम करने के लिए राजी नहीं था. अब डिस्प्लेसमेंट मीटर के साथ पूरा लैंडस्लाइड अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाया गया है, जिसके बाद छोटी सी भी गतिविधि इक्विपमेंट के माध्यम से पता चल जाती है. उन्होंने बताया कि अभी कुछ ही दिन पहले डिस्प्लेसमेंट मीटर इन दरारों में लगाए गए हैं, जिस में अभी फिलहाल किसी तरह की कोई खास हलचल नजर नहीं आ रही है.
तोता घाटी में रोजाना चलते हैं इतने वाहन: PWD के रिकॉर्ड के अनुसार तोता घाटी में स्थित ऋषिकेश-बदीरनाथ नेशनल हाईवे पर 2014-15 के दौरान रोजाना 3909 वाहनों की आवाजाही होती थी. वर्ष 2026-27 में इसके बढ़कर लगभग दोगुना यानी 7019 होने की आशंका है.
ये भी पढ़ें: