Homeउत्तराखण्ड न्यूजबाघों के लिए 'हाउसफुल' हुआ उत्तराखंड, टाइगर के घूमने-फिरने के लिए कम...

बाघों के लिए 'हाउसफुल' हुआ उत्तराखंड, टाइगर के घूमने-फिरने के लिए कम पड़ रही जगह


Etv Bharat (ETV Bharat Graphics)

नवीन उनियाल

देहरादून: उत्तराखंड में बाघों की आबादी को लेकर तस्वीर अब बेहद दिलचस्प होती जा रही है. कभी टाइगर्स की सुरक्षित पनाहगाह के लिए पहचाना जाने वाला उत्तराखंड, अब देश के उन चुनिंदा राज्यों में शामिल हो चुका है, जहां बाघों की संख्या अपनी अधिकतम क्षमता के करीब पहुंच चुकी है. वैसे तो कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को बाघों की नर्सरी कहा जाता है, लेकिन अब विशेषज्ञ यह मानने लगे हैं कि केवल कॉर्बेट ही नहीं, बल्कि पूरा उत्तराखंड टाइगर कैपेसिटी के लिहाज से लगभग हाउसफुल हो चुका है.

क्या कहती है टाइगर इस्टीमेशन की रिपोर्ट: राज्य में हुई टाइगर्स इस्टीमेशन रिपोर्ट के ताजा आंकड़े भी इसी की पुष्टि करते हैं. देश में जिन राज्यों ने बाघों की संख्या बढ़ाने में शानदार प्रदर्शन किया है, उनमें उत्तराखंड लगातार टॉप-3 में बना हुआ है. यह उपलब्धि इसलिए भी खास है, क्योंकि यह प्रदेश भौगोलिक रूप से सीमित है और अधिकांश इलाका पहाड़ी है. फिर भी यहां बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है.

बाघों के लिए ‘हाउसफुल’ हुआ उत्तराखंड (ETV Bharat)

उत्तराखंड में हैं 560 बाघ: टाइगर इस्टीमेशन 2023 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में कुल 560 बाघ हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में रिकॉर्ड 260 बाघ हैं. ये देश के किसी भी टाइगर रिजर्व में पाई जाने वाली सबसे अधिक संख्या है. यानी कॉर्बेट टाइगर को छोड़ भी दें, तो अन्य इलाकों में करीब 300 बाघ मौजूद हैं, जो किसी छोटे राज्य के लिए बेहद प्रभावशाली आंकड़ा माना जा सकता है.

अपने विचरण क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं बाघ: कॉर्बेट की सफलता का प्रभाव न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि पड़ोसी यूपी के जंगलों में भी देखा जा रहा है. विशेषज्ञ बताते हैं कि कॉर्बेट से निकले बाघ तराई के जंगलों से होते हुए विभिन्न संरक्षित क्षेत्रों तक अपने इलाके का विस्तार कर रहे हैं. यही वजह है कि पीलीभीत, दुधवा नेशनल पार्क और बिजनौर-नजीबाबाद बेल्ट में भी बाघों की तादाद लगातार बढ़ रही है.

TIGER ESTIMATION REPORT 2023

रामनगर वन प्रभाग और तराई पश्चिमी वन रेंज भी बाघों का गढ़ है (ETV Bharat Graphics)

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व हुआ ओवरलोड: टाइगर इस्टीमेशन रिपोर्ट 2023 की मानें तो सीटीसी यानी कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 5 से 7 वर्ग किलोमीटर वर्ग किलोमीटर एरिया में ही बाघ सरवाइव कर रहे हैं. बाघों की टेरिटरी के लिहाज से वैज्ञानिक बताते हैं कि एक वयस्क बाघ को औसतन 20–25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की आवश्यकता होती है, लेकिन कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हालात बिल्कुल अलग हैं.

TIGER ESTIMATION REPORT 2023

कॉर्बेट में आसानी से बाघ दिख जाते हैं (Photo- ETV Bharat)

कैरिंग कैपेसिटी हुई पार: टाइगर विशेषज्ञ और WII के पूर्व वैज्ञानिक कमर कुरैशी बताते हैं कि-

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघ बेहद कम क्षेत्रफल में रह रहे हैं. कॉर्बेट में बाघ काफी कम घनत्व में भी सरवाइव कर रहे हैं. इसका मतलब यह भी है कि कॉर्बेट में उनके लिए भोजन की कोई कमी नहीं है. वहीं इससे यह भी साफ है कि यहां कैरिंग कैपेसिटी अपनी सीमा पर पहुंच चुकी है.
-कमर कुरैशी, टाइगर एक्सपर्ट-

हालांकि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि कम क्षेत्र में रहने के चलते टाइगर-टाइगर कॉन्फ्लिक्ट की घटनाएं अक्सर देखने को मिलती हैं, जिसमें कई बार घातक संघर्ष भी हो जाते हैं.

TIGER ESTIMATION REPORT 2023

राज्य में क्षमता से ज्यादा बाघ हो गए हैं (ETV Bharat Graphics)

उत्तराखंड की कैरिंग कैपेसिटी अब पूरी, बाकी राज्य भी हाउसफुल की ओर: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल 1288.34 वर्ग किलोमीटर है. इसके मुकाबले यहां 260 बाघ रह रहे हैं. यह घनत्व किसी भी वैश्विक टाइगर रिजर्व की तुलना में सबसे अधिक है. लेकिन अब विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि पूरा उत्तराखंड बाघों की क्षमता के हिसाब से लगभग ओवरलोडेड हो गया है.

कमर कुरैशी के अनुसार-

अब बात सिर्फ कॉर्बेट की नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की है. राज्य में उपलब्ध जंगल और प्री-बेस का आकलन करने पर साफ है कि यहां बाघों की संख्या अब पर्याप्त हो चुकी है. यह स्थिति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पहाड़ी राज्य में मैदानी क्षेत्रों की तुलना में बाघों के लिए उपयुक्त भू-भाग कम होता है. फिर भी यहां बाघों की संख्या राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है.
-कमर कुरैशी, टाइगर एक्सपर्ट-

उत्तराखंड के इन क्षेत्रों में बाघों की संख्या कई रिजर्व से भी ज्यादा: हैरान करने वाली बात यह है कि राज्य के कुछ गैर-टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में भी बाघों की संख्या कई राष्ट्रीय पार्कों से ज्यादा है. उदाहरण के लिए, पश्चिमी सर्कल में 88 बाघ तो लैंसडाउन वन प्रभाग में 29 बाघ मौजूद हैं. इसके अलावा तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय, तराई पूर्व के अलावा रामनगर वन प्रभाग और नैनीताल फॉरेस्ट डिवीजन में भी लगातार बाघों की संख्या बढ़ी है.

TIGER ESTIMATION REPORT 2023

उत्तराखंड में बाघों की संख्या (ETV Bharat Graphics)

यह परिदृश्य बताता है कि बाघ केवल संरक्षित रिजर्व में ही नहीं, बल्कि आसपास के जंगली परिदृश्यों में भी स्थायी रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं. वन विभाग का दावा है कि बाघों के बढ़ने का कारण बेहतर संरक्षण है.

विशेषज्ञ जहां कैरिंग कैपेसिटी की चिंता जता रहे हैं, वहीं उत्तराखंड वन विभाग बाघों की बढ़ती संख्या को अपनी उपलब्धि मानता है. प्रमुख वन संरक्षक वन्य जीव आरके मिश्रा कहते हैं कि-

उत्तराखंड में बाघों की संख्या इसलिए बढ़ रही है, क्योंकि यहां उनका अनुकूल वातावरण है. बेहतर सुरक्षा, मॉनिटरिंग और संरक्षण के कारण हर साल टाइगर्स की तादाद बढ़ी है. कॉर्बेट से बाहर के इलाकों में भी बाघ आ रहे हैं और सफलतापूर्वक रह रहे हैं.
-आरके मिश्रा, प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव-

आरके मिश्रा ने बताया कि भारत सरकार भी टाइगर रिजर्व के बाहर मौजूद बाघों पर निगरानी और संरक्षण को लेकर राज्यों को लगातार दिशा निर्देश देती रही है.

बाघों की राष्ट्रीय तस्वीर, उत्तराखंड तीसरे स्थान पर: टाइगर इस्टीमेशन 2023 की रिपोर्ट के अनुसार देशभर में 3,682 टाइगर्स हैं. इनमें मध्य प्रदेश में 785 बाघ, कर्नाटक में 563 बाघ और उत्तराखंड में 560 बाघ मौजूद हैं. इस तरह उत्तराखंड देश में तीसरे स्थान पर है. उत्तर भारत में सबसे ज्यादा बाघ उत्तराखंड में पाए जाते हैं.

उत्तराखंड में बाघों की संख्या बढ़ना उपलब्धि, लेकिन अब चुनौती स्पेस की: राज्य में बाघों की बढ़ती संख्या एक उपलब्धि है, लेकिन विशेषज्ञ यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि अब फोकस संख्या बढ़ाने पर नहीं, बल्कि स्पेस, टेरिटरी और सुरक्षित मूवमेंट कॉरिडोर विकसित करने पर होना चाहिए. क्योंकि अगर बाघों की संख्या इसी तरह बढ़ती रही और जंगलों का विस्तार नहीं हुआ, तो उनके आपसी और मानव से संघर्ष की घटनाएं बढ़ सकती हैं. इसीलिए उत्तराखंड में टाइगर कंजर्वेशन का अगला चरण क्वालिटी मैनेजमेंट होगा यानि जितने बाघ हैं, उनके लिए सुरक्षित, स्थायी और संघर्ष-रहित क्षेत्र सुनिश्चित करना बड़ी चुनौती होगा.

TIGER ESTIMATION REPORT 2023

पर्यटक बाघ देखकर रोमांचित होते हैं (Photo- ETV Bharat)

मानव वन्य जीव संघर्ष का खतरा बढ़ा: उधर बाघों की लगातार बढ़ रही संख्या के कारण इंसानों के साथ इनका संघर्ष भी बढ़ना तय है. राज्य में मौजूद आंकड़े भी कुछ इसी तरफ इशारा करते हुए दिखाई देते हैं. आंकड़ों के अनुसार 2020 के बाद से अब तक टाइगर के हमलों में 60 लोगों की जान जा चुकी है. इस साल अक्टूबर महीने तक कुल 12 लोगों की बाघों के हमले में जान जा चुकी है. इसी तरह से टाइगर के हमले में 46 लोग 2020 से अब तक घायल हो चुके हैं.

इस तरह यह साफ है कि उत्तराखंड में टाइगर्स इंसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं. इनकी बढ़ती संख्या के बीच मानव वन्य जीव संघर्ष को कम करना भी बड़ी चुनौती है.
ये भी पढ़ें:

एक नजर