नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी होटल मालिकों को निर्देश दिया कि वे वैधानिक आवश्यकताओं के अनुसार अपने लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाण पत्र प्रदर्शित करें. शीर्ष अदालत ने कहा कि उपभोक्ता ही राजा है और उपभोक्ता को यह जानने का विकल्प होना चाहिए कि क्या कोई होटल पूरी तरह से शाकाहारी वस्तुएं बेच रहा है.
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मामले की सुनवाई की. इस दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने दलील दी कि कांवड़ यात्रा के दौरान, मार्ग पर स्थित होटल स्थानीय नियमों के अनुसार केवल शाकाहारी व्यंजन ही बेचते हैं.
इस मौके पर, जस्टिस सुंदरेश ने कहा कि उपभोक्ता के पास विकल्प होना चाहिए. पीठ ने कहा कि अगर कोई होटल शुरू से ही शाकाहारी होटल के रूप में चल रहा है, तो नाम और अन्य बातों का उल्लेख करने का सवाल ही नहीं उठता, लेकिन अगर सिर्फ यात्रा के उद्देश्य से कोई मांसाहारी भोजन परोसना बंद कर देता है और शाकाहारी भोजन बेचना शुरू कर देता है, तो उपभोक्ता को इसकी जानकारी होनी चाहिए.
पीठ ने कहा कि उपभोक्ताओं को यह लचीलापन मिलना चाहिए और अगर कोई होटल पहले मांसाहारी भोजन परोसता था, और बेहतर व्यवसाय के लिए यात्रा के दौरान केवल शाकाहारी भोजन परोसता है, तो यह उपभोक्ता के दृष्टिकोण से विचार करने योग्य विषय होगा. जस्टिस सुंदरेश ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, “यह उपभोक्ता की पसंद है… वह किसी अन्य होटल में जा सकता है जहां (यात्रा से पहले) शाकाहारी भोजन परोसा जाता रहा हो.”
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह उपभोक्ताओं के जानने के अधिकार के बीच संतुलन बनाने के लिए एक बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर रही है, साथ ही यह भी सुनिश्चित कर रही है कि किसी भी विक्रेता के साथ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव न हो.
अहमदी ने कहा, “मेरे हिसाब से, उपभोक्ता की मांग या पसंद इस बात से पूरी होती है कि आज आपको केवल शाकाहारी भोजन परोसा जाता है. यह बताने की कोई जरूरत नहीं है कि पहले हम (भोजनालय) मांसाहारी भोजन परोसते थे. यह थोड़ा ज्यादा हो रहा है. मालिक, कर्मचारी या धार्मिक पहचान का नाम और पहचान का भोजन से कोई लेना-देना नहीं है…”
पीठ ने कहा कि मूल लाइसेंस, जो दर्शाता है कि यह मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह का भोजन परोसता है, प्रदर्शित किया जाना चाहिए और इसे बदला नहीं जा सकता. जस्टिस सुंदरेश ने कहा, “आप कह सकते हैं कि हम केवल शाकाहारी भोजन परोस रहे हैं, लेकिन मूल रूप से यह शाकाहारी और मांसाहारी दोनों था… कोई इस बात से संतुष्ट हो सकता है कि अगर मांसाहारी भोजन नहीं परोसा जाता है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है. कोई कहेगा कि मुझे केवल वही होटल पसंद है जहां साल भर शाकाहारी भोजन परोसा जाता है. यह उसकी पसंद है.”
अहमदी ने कहा कि उपभोक्ता की पसंद ही सब कुछ नहीं हो सकती और इसमें संतुलन होना चाहिए. रेस्तरां मालिकों को अपना व्यवसाय चलाने का अधिकार है और इस देश में मांसाहारी भोजन परोसना प्रतिबंधित नहीं है. जस्टिस सुंदरेश ने कहा, “यह उपभोक्तावाद की गलत समझ है. उपभोक्ता ही राजा है. अगर हम उपभोक्ता को प्राथमिकता नहीं देंगे तो कोई मतलब नहीं है. उसे पता होना चाहिए…”
सुनवाई के अंत में पीठ ने कहा कि वह होटल या ढाबा मालिक का नाम और क्यूआर कोड प्रदर्शित करने जैसे अन्य मुद्दों पर विचार नहीं कर रही है क्योंकि कांवड़ यात्रा बहुत जल्द समाप्त होने वाली है. पीठ ने कहा, “हमें बताया गया है कि आज यात्रा का अंतिम दिन है. वैसे भी, निकट भविष्य में इसके समाप्त होने की संभावना है. इसलिए, इस समय हम केवल यह आदेश पारित करेंगे कि सभी संबंधित होटल मालिक वैधानिक आवश्यकताओं के अनुसार लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करने के आदेश का पालन करें.”
पीठ द्वारा आदेश सुनाए जाने के बाद, अहमदी ने दलील दी कि मालिक का नाम और क्यूआर कोड बताने की जरूरत नहीं है, और जोर देकर कहा कि इसका कोई कानूनी आधार नहीं है. उन्होंने तर्क दिया कि धार्मिक पहचान उजागर करने की कोशिश की गई है. हालांकि, पीठ ने कहा कि वह अभी इस पहलू पर विचार नहीं कर रही है और अगर वह इसे चुनौती देना चाहते हैं तो वह उच्च न्यायालय में जा सकते हैं.
शीर्ष अदालत शिक्षाविद अपूर्वानंद झा और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा शासित उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश द्वारा जारी इसी तरह के निर्देशों पर रोक लगा दी थी, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्गों पर स्थित होटलों को अपने मालिकों, कर्मचारियों के नाम और अन्य विवरण प्रदर्शित करने के लिए कहा गया था.
25 जून को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति का हवाला देते हुए झा ने कहा, “नए उपायों में कांवड़ मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों पर क्यूआर कोड प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है, जिससे मालिकों के नाम और पहचान का पता चलता है, जिससे वही भेदभावपूर्ण प्रोफाइलिंग प्राप्त होती है जिस पर पहले इस न्यायालय ने रोक लगा दी थी.”
याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार का निर्देश, जिसमें स्टॉल मालिकों से “कानूनी लाइसेंस आवश्यकताओं” के तहत धार्मिक और जातिगत पहचान उजागर करने को कहा गया है, दुकान, ढाबा और रेस्टोरेंट मालिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन है.
हिंदू कैलेंडर के ‘श्रावण’ माह में शिवलिंगों का जलाभिषेक करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा से पवित्र जल लेकर विभिन्न स्थानों से कांवड़ लेकर आते हैं. कई श्रद्धालु इस महीने में मांसाहार का सेवन नहीं करते. कई लोग तो प्याज और लहसुन युक्त भोजन भी नहीं करते.
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