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उत्तराखंड में ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड का खतरा, 25 संवेदनशील ग्लेशियर झीलें, 6 अति संवेदनशील


देहरादून (रोहित सोनी): हिमालय में मौजूद ग्लेशियर और ग्लेशियर में बनी झीलें हमेशा से ही केंद्र और राज्य सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती रही हैं. साल 2013 में केदार घाटी में आई आपदा समेत अन्य आपदाएं इसका एक जीता जागता उदाहरण रही हैं. यही वजह है कि केंद्र सरकार ग्लेशियर झीलों की स्थिति जानने के लिए अध्ययन पर जोर दे रही है.

हिमालय में ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड फ्लड का खतरा: इसी क्रम में पिछले साल एनडीएमए ने हिमालय क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर झीलों पर अध्ययन किया था. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने भी गलेशियर झीलों पर एक नया अध्ययन किया है, जिसमें कई नए चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं.

उत्तराखंड में ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड का खतरा (ETV BHARAT)

तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर: विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से उत्तराखंड काफी संवेदनशील है. हर साल प्राकृतिक आपदा की वजह से इंसानों, पशुओं और इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी नुकसान पहुंचता है. खासकर मानसून सीजन के दौरान प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों आपदा जैसी स्थिति बन जाती है, जिसके चलते ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इन्हीं प्राकृतिक आपदाओं में ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड भी शामिल है. दरअसल, पिछले कुछ सालों से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिसके चलते उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर झीलों का आकार भी बढ़ता जा रहा है. ऐसे में ग्लेशियर झीलों के टूटने और ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड की आशंका भी बढ़ गई है.

उत्तराखंड में ग्लेशियर लेक आउटब्रस्ट फ्लड का खतरा (ETV BHARAT)

8 साल में 2 बार आ चुका है ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड फ्लड: उत्तराखंड में ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड का सबसे बड़ा उदाहरण साल 2013 में केदार घाटी में आई आपदा है. साल 2013 में केदार घाटी से ऊपर मौजूद चौराबाड़ी ग्लेशियर लेक की दीवार टूटने की वजह से एक बड़ी आपदा आई थी. इस आपदा की वजह से करीब 6 हजार लोगों की मौत हुई थी. इसके साथ ही फरवरी 2021 में चमोली जिले में नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने से धौलीगंगा में बड़ी तबाही मच गई थी. इस आपदा की वजह से 206 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. साथ ही दो विद्युत परियोजनाएं भी पूरी तरह से तबाह हो गई थी. साल 2013 में केदार घाटी में आई आपदा के बाद उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर झीलों की निगरानी पर ध्यान देने की जरूरत महसूस हुई.

GLACIER LAKE OUTBURST FLOOD

उत्तराखंड में ग्लेशियर लेक आउटब्रस्ट फ्लड का खतरा (ETV BHARAT)

केंद्र और राज्य सरकारें ग्लेशियर झीलों की निगरानी कर रही हैं: साल 2013 में केदार घाटी में आई आपदा के बाद राज्य और केंद्र सरकार ने हिमालय क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर झीलों की निगरानी पर विशेष जोर दिया. क्योंकि इस घटना के बाद ग्लेशियर लेक भविष्य के लिहाज से काफी खतरनाक मानी जाने लगीं. उस दौरान वैज्ञानिकों ने भी इस बात पर जोर दिया था कि ग्लेशियर में मौजूद ग्लेशियर झीलों की समय-समय पर निगरानी करने की जरूरत है. इसी क्रम में-

फरवरी 2024 को एनडीएमए (National Disaster Management Authority) ने हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर झीलों का अध्ययन किया था. अध्ययन के आधार पर एनडीएमए ने देशभर में मौजूद 190 संवेदनशील और अति संवेदनशील ग्लेशियर झीलों की सूची भी तैयार करते हुए राज्यों को भेज दी थी. साथ ही एनडीएमए ने संवेदनशील और अति संवेदनशील ग्लेशियर झीलों की हर साल निगरानी के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे.

5 ग्लेशियर झीलें A कैटेगरी में: एनडीएमए की ओर से उत्तराखंड को भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झील को संवेदनशील और अति संवेदनशील बताया गया था. एनडीएमए ने झीलों को संवेदनशीलता के आधार पर तीन कैटेगरी में रखा था. अति संवेदनशील 5 ग्लेशियर झीलों को A कैटेगरी में, कम संवेदनशील वाले चार झीलों को B कैटेगरी में और कम संवेदनशील 4 झीलों को C कैटेगरी में रखा गया था. ऐसे में ग्लेशियर झीलों की संवेदनशीलता को देखते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने भी उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर झीलों का अध्ययन किया है. इसमें तमाम नए चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए हैं.

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उत्तराखंड में अति संवेदनशील ग्लेशियर झील (ETV Bharat Graphics)

उत्तराखंड के हिमालय रीजन में 968 ग्लेशियर हैं: उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सैकड़ों की संख्या में ग्लेशियर मौजूद हैं. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की ओर से किए गए अध्ययन के अनुसार, उत्तराखंड हिमालयन रीजन में करीब 968 ग्लेशियर हैं. इनका आकार करीब 2857 स्क्वायर किलोमीटर है. इन ग्लेशियर में 1200 ग्लेशियर लेक चिन्हित की गई हैं. साल 2013 में वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी ने उत्तराखंड रीजन में मौजूद 1200 ग्लेशियर झीलों का अध्ययन किया था. इसके बाद साल 2023 में यानी 10 साल बाद उत्तराखंड रीजन में मौजूद सभी ग्लेशियर झीलों का एक बार फिर अध्ययन किया. इस बार उत्तराखंड रीजन में मौजूद 1000 स्क्वायर मीटर आकार से बड़ी ग्लेशियर झीलों का अध्ययन किया है. वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की “Identification and assessment of potentially dangerous glacial lakes in Uttarakhand” अध्ययन रिपोर्ट “नेचुरल हजार्डस” में 30 जून 2025 को पब्लिश हुई है.

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ग्लेशियर में इस तरह की झीलें बनती हैं (ETV Bharat Graphics)

25 ग्लेशियर संवेदनशील और अति संवेदनशील: इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में मौजूद 25 संवेदनशील और अतिसंवेदनशील ग्लेशियर की स्थिति बताई गई है. उत्तराखंड में चिन्हित 426 बड़ी ग्लेशियर झीलों में से 25 ग्लेशियर झील संवेदनशील और अतिसंवेदनशील हैं. भिलंगना घाटी में मौजूद मसर ताल ग्लेशियर झील अति संवेदनशील है. गौरीगंगा घाटी में मौजूद सफेद ताल ग्लेशियर झील अति संवेदनशील और एक बेनाम (Unnamed) ग्लेशियर झील संवेदनशील है. धौलीगंगा घाटी में मौजूद मबांग ताल और एक बेनाम ग्लेशियर झील अति संवेदनशील के साथ ही प्यंगरू ताल और तीन बेनाम ग्लेशियर झील संवेदनशील है.

ये ग्लेशियर झील हैं संवेदनशील: अलकनंदा घाटी में मौजूद वसुधारा ताल और एक बेनाम ग्लेशियर झील अति संवेदनशील के साथ ही गेलढांग ताल, मच्छी ताल और 5 बेनाम ग्लेशियर झील संवेदनशील है. कुटियांगती घाटी में मौजूद 2 बेनाम ग्लेशियर झील संवेदनशील हैं. भागीरथी घाटी में मौजूद केदारताल और 4 बेनाम ग्लेशियर झील संवेदनशील बताई गई हैं.

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उत्तराखंड में ग्लेशियर और उनका आकार (ETV Bharat Graphics)

426 ग्लेशियर झीलों का आकार 1 हजार स्क्वायर मीटर से ज्यादा है: वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की ओर से किए गए अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड रीजन में मौजूद 1200 ग्लेशियर झीलों में से 426 बड़ी ग्लेशियर झील ऐसी हैं, जिनका आकार एक हजार स्क्वायर मीटर से अधिक है. इन सभी ग्लेशियर झीलों पर अध्ययन किया गया है. साथ ही अध्ययन में पाया गया कि 426 बड़ी ग्लेशियर झीलों में से 25 ग्लेशियर झील ऐसी हैं, जो संवेदनशील हैं. वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की अध्ययन रिपोर्ट के वैज्ञानिक डॉ मनीष मेहता ने बताया कि अध्ययन के आधार पर इन 25 संवेदनशील ग्लेशियर झीलों को उनकी संवेदनशीलता के आधार पर श्रेणियां में बांटा है. जिससे तहत 6 ग्लेशियर झीलों को अति संवेदनशील यानी A श्रेणी, 6 ग्लेशियर झीलों को संवेदनशील यानी B श्रेणी और 13 ग्लेशियर झीलों को कम संवेदनशील यानी C श्रेणी में रखा है.

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ग्लेशियर झीलों का आकार (ETV Bharat Graphics)

6 ग्लेशियर झीलें अति संवेदनशील: उत्तराखंड की अति संवेदनशील ग्लेशियर झीलों की स्थिति इस प्रकार है. उत्तराखंड में 6 ग्लेशियर झीलों को अति संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है. भिलंगना घाटी में मौजूद मसर ताल (Masar Tal) अति संवेदनशील है. गोरी गंगा घाटी में मौजूद सफेद ताल (Safed Tal) अति संवेदनशील है. धौली गंगा घाटी में मौजूद मबांग ताल (mabang Tal) और एक बेनाम (Unnamed) ग्लेशियर झील अति संवेदनशील है. अलकनंदा घाटी में मौजूद वसुधारा ताल (Vasudhara Tal) और एक बेनाम (Unnamed) ग्लेशियर झील अति संवेदनशील है.

Glacier Lake Outburst Flood

वाडिया संस्थान उत्तराखंड के ग्लेशियर लेक पर अध्ययन कर रहा है (Photo courtesy: Wadia Research Institute)

1) मसर ताल ग्लेशियर झील: मसर ताल एक प्रोग्लेशियल झील है जो भिलंगना वैली में 4,760 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ये मसर ग्लेशियर झील, वाडिया के अध्ययन में उत्तराखंड का सबसे अधिक अति संवेदनशील और सबसे कमजोर झीलों में पहले स्थान पर मानी गयी है.

साल 2013 में मसर झील का क्षेत्रफल करीब 244,613 स्क्वायर मीटर था, जो 2023 में बढ़कर करीब 366,871 स्क्वायर मीटर हो गया है. यानी पिछले 10 सालों के भीतर इस मसर ग्लेशियर झील के आकार में करीब 50 फीसदी का इजाफा हुआ है. ये झील एक सर्क ग्लेशियर (Cirque Glacier) के सामने स्थित है, जिसमें ग्लेशियर की थूथन (Snout) झील के ऊपर लटक रही है. इसके चलते इस झील के टूटने की आशंका को देखते हुए अतिसंवेदनशील श्रेणी में रखा गया है. ये झील नीचे की ओर 31 डिग्री ढलान पर है.

2) सफेद ताल ग्लेशियर झील: सफेद ताल एक प्रोग्लेशियल झील है. ये गोरीगंगा वैली में समुद्र तल से करीब 4,900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ये झील मिलम गांव से करीब 17 किमी दूर है.

साल 2013 में इस मोरेन डैम प्रोग्लेशियल झील का क्षेत्रफल करीब 199,089 स्क्वायर मीटर था. 2023 में ये बढ़कर करीब 215,479 स्क्वायर मीटर हो गया है. यानी पिछले 10 सालों के भीतर इस सफेद ताल ग्लेशियर झील के आकार में करीब 8 फीसदी का इजाफा हुआ है. इस झील के आकार में लगातार हो रही वृद्धि मिलम गांव के लिए एक बड़ी समस्या बन सकती है. ऐसे में सफ़ेद ताल की लगातार निगरानी करना महत्वपूर्ण है.

3) बेनाम ग्लेशियर झील: धौलीगंगा घाटी में एक बेनाम मोरेन डैम प्रोग्लेशियल झील मौजूद है. ये समुद्र तल से करीब 4,785 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है.

साल 2013 में इस बेनाम प्रोग्लेशियल झील का क्षेत्रफल करीब 110,030 स्क्वायर मीटर था. ये 2023 में बढ़कर करीब 127,498 स्क्वायर मीटर हो गया है. यानी पिछले 10 सालों के भीतर इस बेनाम ग्लेशियर झील के आकार में करीब 16 फीसदी का इजाफा हुआ है. ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड की स्थिति में, खासकर तिदांग गांव को काफी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में इस झील की लगातार निगरानी करने की जरूरत है.

4) वसुधारा ग्लेशियर झील: वसुधारा ताल, अलकनंदा घाटी में मौजूद है जो एक मोरेन डैम प्रोग्लेशियल झील है. वसुधारा ताल, रेकाना और पूर्वी कामेट ग्लेशियरों (Raykana And Purvi Kamet) के पीछे हटने के चलते बनी है. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के साल 2018 की रिपोर्ट के अनुसार-

Glacier Lake Outburst Flood

मसर ताल में आया परिवर्तन (Photo courtesy: Wadia Research Institute)

साल 1968 में वसुधारा ताल का क्षेत्रफल 110,000 स्क्वायर मीटर था. साल 2013 में वसुधारा ताल का क्षेत्रफल 201,705 स्क्वायर मीटर हो गया था. साल 2023 में वसुधारा ताल का क्षेत्रफल बढ़कर 211,187 स्क्वायर मीटर हो गया है. यानी साल 1968 के मुकाबले साल 2023 में वसुधारा ताल के क्षेत्रफल में करीब 80 फीसदी का इजाफा हुआ है. ऐसे में वसुधारा ताल से 70 किलोमीटर नीचे की ओर स्थित 520 मेगावाट तपोवन-विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना (एचपीपी) ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड के लिहाज से संवेदनशील है.

5) मबांग ग्लेशियर झील: मबांग ताल, धौलीगंगा घाटी में स्थित है जो एक प्रोग्लेशियल झील है जो मबांग ग्लेशियर के टर्मिनस (Terminus) पर मौजूद है. मबांग ग्लेशियर झील के दोनों ओर मोरेनिक पर्वतमालाएं हैं. यह करीब 230 मीटर की खड़ी ढलान पर 35 डिग्री से होकर मुख्य लस्सार यांकती नदी (Lassar Yankti River) में मिलती है, जोकि धौलीगंगा नदी की एक सहायक नदी है. ऐसे में मबांग ग्लेशियर झील अतिसंवेदनशील है.

साल 2018 में जारी भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार साल 1963 में मबांग ताल का क्षेत्रफल 16,600 वर्ग मीटर था. साल 2013 में मबांग ताल का क्षेत्रफल बढ़कर 114,890 वर्ग मीटर हो गया था. साल 2023 में इस झील का आकार बढ़कर 119,060 वर्ग मीटर हो गया. यानी साल 1963 से साल 2023 के बीच मबांग ताल के क्षेत्रफल में करीब 600 फीसदी का इजाफा हुआ है. ऐसे में अगर यह झील टूटती है तो मबांग ताल से 65 किमी नीचे की ओर स्थित 1,500 किलोवाट के चिरकिला बांध को नुकसान होने की आशंका है.

6) बेनाम ग्लेशियर झील: अलकनंदा घाटी में एक बेनाम मोरेन डैम प्रोग्लेशियल झील मौजूद है. ये करीब 5,254 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

Glacier Lake Outburst Flood

उत्तराखंड की हिमालय रेंज में ग्लेशियर (Photo courtesy: Wadia Research Institute)

साल 2013 में इस बेनाम प्रोग्लेशियल झील का क्षेत्रफल करीब 54,661 स्क्वायर मीटर था. साल 2023 में इसका क्षेत्रफल बढ़कर करीब 59,915 स्क्वायर मीटर हो गया है. यानी पिछले 10 सालों के भीतर इस बेनाम ग्लेशियर झील के आकार में करीब 9.61 फीसदी का इजाफा हुआ है. ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड की स्थिति में, ये झील करीब 8.5 किमी नीचे की ओर स्थित आईटीबीपी कैंप के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है.

ये हैं ग्लेशियर झीलों के प्रकार: ग्लेशियर में बनने वाली ग्लेशियर झीलें अनेक प्रकार की होती हैं. वाडियो के वैज्ञानिक डॉ मनीष मेहता ने बताया कि सुपरग्लेशियल लेक (Supraglacial Lake) ग्लेशियरों की सतह पर बनती हैं. एंग्लेशियल लेक (Englacial Lake) ग्लेशियरों के भीतर बनती हैं. सबग्लेशियल लेक (Subglacial Lake) ग्लेशियरों के नीचे बनती हैं. प्रोग्लेशियल लेक (Proglacial Lake) ग्लेशियरों के सामने बनती हैं. पेरीग्लेशियल लेक (Periglacial Lake) ग्लेशियरों की परिधि या आसपास बनती हैं. टैम या सर्क लेक (Tam or Cirque Lake) ग्लेशियर के पिघलने के बाद इसके अवशेष में बनती हैं. मोरैन-डैम्ड लेक (Moraine dammed Lake) दो ग्लेशियरों के बीच बनती हैं.

उत्तराखंड में बड़े ग्लेशियर झीलों की स्थिति: उत्तराखंड के उच्च हिमालई क्षेत्रों में 426 बड़ी ग्लेशियर झील चिन्हित हैं. इनका कुल आकार 3,347,671 स्क्वायर मीटर है. अलकनंदा बेसिन में 226 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 1,614,848 स्क्वायर मीटर है. भागीरथी बेसिन में 131 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 1,034,759 स्क्वायर मीटर है. धौलीगंगा बेसिन में 19 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 55,046 स्क्वायर मीटर है. कुटियांगती बेसिन में 18 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 224,500 स्क्वायर मीटर है. मंदाकिनी बेसिन में 12 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 230,482 स्क्वायर मीटर है.

Glacier Lake Outburst Flood

वसुधारा ग्लेशियर झील किनारे वाडिया के वैज्ञानिक डॉ मनीष मेहता (Photo courtesy: Wadia Research Institute)

इसके साथ ही गौरीगंगा बेसिन में 9 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 22,441 स्क्वायर मीटर है. भिलंगना बेसिन में 5 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 157,330 स्क्वायर मीटर है. टौंस बेसिन में 4 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 1,880 स्क्वायर मीटर है. यमुना बेसिन में 2 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 6,388 स्क्वायर मीटर है.

वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की अध्ययन रिपोर्ट के वैज्ञानिक डॉ मनीष मेहता ने बताया कि इन ग्लेशियर झीलों के अध्ययन से पता चला कि झीलों के आकार में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है.

भिलंगना घाटी में मौजूद मसर ताल के आकार में पिछले 10 सालों में करीब 50 फीसदी की वृद्धि हुई है. इसी तरह, अलकनंदा घाटी में मौजूद वसुधारा ताल, धौलीगंगा घाटी में मौजूद मबांग ताल, गौरीगंगा में मौजूद सफेद ताल, धौलीगंगा घाटी में मौजूद बेनाम झील और अलकनंदा घाटी में मौजूद बेनाम झील का आकार तेजी से बढ़ रहा है. ये झील भविष्य के लिहाज से काफी संवेदनशील है, क्योंकि इन झीलों के टूटने से ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड का खतरा पैदा हो सकता है.
-डॉ मनीष मेहता, वैज्ञानिक, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी-

प्रोग्लेशियल लेक सबसे खतरनाक: वैज्ञानिक डॉ मनीष मेहता ने कहा कि जो ग्लेशियर लेक ग्लेशियर के आगे बनती है, उसे प्रोग्लेशियल लेक कहते हैं. यही झील सबसे अधिक संवेदनशील होती है. यानी अन्य प्रकार की ग्लेशियर झीलों की तुलना में प्रोग्लेशियल लेक के टूटने की आशंका अधिक रहती है. साथ ही बताया किसी भी झील के टूटने का कारण सिर्फ झील के आकार का बढ़ना नहीं होता है, बल्कि झील में एवलॉन्च का गिरना, झील के आसपास लैंडस्लाइड का होना भी शामिल है. इसके साथ ही हिमालयी क्षेत्रों में अगर कोई बड़ा भूकंप आता है, तब भी ग्लेशियर झीलों के टूटने की आशंका रहती है.
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