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भूकंप से कम होगा नुकसान, ग्राउंड मोशन सिमुलेशन प्रक्रिया होगी कारगर, CSIR के वैज्ञानिक से EXCLUSIVE बातचीत


देहरादून (रोहित सोनी): देश के किसी न किसी हिस्से में आए दिन भूकंप के झटके महसूस होते हैं. लेकिन भूकंप के लिहाज से देश के हिमालयी राज्य काफी संवेदनशील माने जाते हैं. हिमालयी क्षेत्र में प्लेटों के घर्षण की वजह से एनर्जी एकत्र हो रही है. देश ही नहीं बल्कि विदेशों के भी वैज्ञानिक भूकंप के पूर्वानुमान को लेकर लगातार रिसर्च कर रहे हैं.

भूकंप से कम नुकसान हो, इस पर शोध: कुछ वैज्ञानिक भूकंप से होने वाले नुकसान को काम किए जाने पर अध्ययन कर रहे हैं. बेंगलुरु स्थित सीएसआईआर (Council of Scientific & Industrial Research) के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि ग्राउंड मोशन सिमुलेशन (भू-गति अनुकरण) के जरिए भूकंप से संभावित नुकसान को कम किया जा सकता है. इस विषय पर वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, बेंगलुरु के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ इम्तियाज ए परवेज ने ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत की. पढ़िए उन्होंने क्या कहा.

भूकंप से कम नुकसान हो, इस पर चल रही रिसर्च (Video- ETV Bharat)

पूर्वानुमान को लेकर चल रही है रिसर्च: डॉ इम्तियाज ए परवेज ने कहा कि वर्तमान समय में भूकंप का पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल है, लेकिन भूकंप के पूर्वानुमान को लेकर शोध चल रहा है. भूकंप के पूर्वानुमान के लिए तीन चीजें सबसे महत्वपूर्ण होती हैं. इसमें कब, कहां और कितना बड़ा भूकंप आने की संभावना है? हालांकि, भूकंप कहां आने की संभावना है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है, लेकिन भूकंप कब और कितना बड़ा आएगा, इसका अनुमान लगाना संभव नहीं है.

पूरी हिमालयन बेल्ट भूकंप के लिए संवेदनशील: उत्तराखंड समेत देश की पूरी हिमालयन बेल्ट भूकंप के लिहाज से संवेदनशील है. तमाम वैज्ञानिक इस बात का दावा कर चुके हैं कि कभी भी बड़ा भूकंप आ सकता है. उत्तराखंड रीजन के साथ ही सेंट्रल हिमालय और कश्मीर में बहुत अधिक स्ट्रेस जमा (Stress Accumulate) हो गया है. इस स्ट्रेस (दबाव) को रिलीज होना है. ऐसे में यह स्ट्रेस किसी बड़े भूकंप के रूप में रिलीज हो सकता है. डॉ इम्तियाज ने साथ ही कहा कि ये तो साफ है कि कोई बड़ा भूकंप आने वाला है. ऐसे में वैज्ञानिकों के पास इतनी जानकारी है तो भूकंप की तीव्रता क्या होगी, भूकंप की वेव्स कैसे गुजरेगी, इसके अलावा भूकंप आने पर ग्राउंड मोशन कितना होगा? ये हम अनुमान (Simulate) लगा सकते हैं.

ईटीवी भारत से बात करते वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ इम्तियाज ए परवेज (Photo- ETV Bharat)

ग्राउंड मोशन सिमुलेशन से कम कर सकते हैं भूकंप का नुकसान: डॉ इम्तियाज ने कहा कि ग्राउंड मोशन सिमुलेशन (Ground Motion Simulation) एक प्रक्रिया है, जिसमें सारे इनपुट पैरामीटर्स डालकर अनुकरण (Simulate) करते हैं. इससे ग्राउंड मोशन की जानकारी मिल जाती है. ऐसे में ग्राउंड मोशन की जानकारी के आधार पर अगर कंस्ट्रक्शन किया जा सकता है, तो नुकसान काफी कम होगा. डॉ इम्तियाज ने कहा कि-

देश की पूरी हिमालय बेल्ट में एनर्जी एकत्र है. जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) से की गई स्टडी के अनुसार कहीं-कहीं पर एनर्जी रिलीज हो जाती है, लेकिन समय के साथ एनर्जी एकत्र भी होती रहती है. ऐसे में सेंट्रल हिमालय और नॉर्थ ईस्ट हिमालय में काफी अधिक एनर्जी एकत्र है. ये एनर्जी कब रिलीज होगी यह कहना बहुत मुश्किल है.
-डॉ इम्तियाज ए परवेज, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सीएसआईआर, बेंगलुरु-

हिमालय में प्लेटों के घर्षण से इकट्ठा हो रही एनर्जी: डॉ इम्तियाज ने साथ ही कहा कि स्लो या कम मेग्नीट्यूड के भूकंप आने से बड़े भूकंप के आने की संभावना टलती नहीं है. ये भी माना जाता है कि किसी जगह पर एनर्जी एकत्र है और वहां पर 6 या 7 मेग्नीट्यूड के रूप में एनर्जी रिलीज हो जाती है, तो फिर बड़े भूकंप आने की संभावना कुछ समय के लिए टल जाती है, क्योंकि एनर्जी एकत्र होने में समय लगता है. उत्तराखंड राज्य के दोनों रीजन कुमाऊं और गढ़वाल भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं.

डॉ इम्तियाज ने कहा कि-

भूकंप से बचाव के लिए जरूरी है कि “यह माना जाए कि भविष्य में 7 से 8 मेग्नीट्यूड का भूकंप आ सकता है. इसको ध्यान में रखते हुए ग्राउंड मोशन सिम्युलेट करना चाहिए. साथ ही ग्राउंड मोशन और साइड रिस्पांस को मिलाकर एक ऐसी सिचुएशन पैदा करें, ताकि यह पता लगाया जा सके कि अगर बड़ा भूकंप आता है तो ग्राउंड पर इसका कितना असर पड़ेगा. किसी मैदानी क्षेत्र या हिमालय में भूकंप आता है तो दोनों का इंपैक्ट लगभग बराबर होगा. लेकिन अगर दोनों ही जगह पर समान मेग्नीट्यूड के भूकंप आते हैं, तो हिमालय क्षेत्र में नुकसान कम, लेकिन मैदानी क्षेत्र में नुकसान अधिक होगा.
-डॉ इम्तियाज ए परवेज, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सीएसआईआर, बेंगलुरु-

सीएसआईआर कर रहा महत्वपूर्ण रिसर्च: डॉ इम्तियाज ने बताया कि हिमालय में भूस्खलन होने का जिम्मेदार सिर्फ भूकंप को नहीं ठहराया जा सकता, बल्कि क्लाइमेट चेंज और बारिश भी एक बड़ा रोल निभाते हैं. बारिश और क्लाइमेट चेंज हिमालय को कमजोर करते हैं. अगर भूकंप आ जाता है, तो वो हिमालय को और अधिक कमजोर कर देता है. इसके चलते भूस्खलन होता है. वर्तमान समय में सीएसआईआर एक प्रोजेक्ट पर काम करने जा रहा है. प्रोजेक्ट के तहत “हिमालयन अर्थक्वेक के हैज़र्ड” विषय पर शोध किया जाएगा. इसमें हिमालय के भूकंप, भूकंप से रिलेटेड लैंडस्लाइड, फ्लड मैपिंग और क्लाउड बर्स्ट पर भी शोध किया जाएगा.

डॉ इम्तियाज ए परवेज देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी में ‘अंडरस्टैंडिंग हिमालयन अर्थक्वेक्स’ विषय पर कार्यशाला में भाग लेने आए थे. इस कार्यशाला में देश के तमाम संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल हुए. सभी ने भूकंप और इससे बचाव के संबंधन में अपनी अध्ययन रिपोर्ट को कार्यशाला में प्रस्तुत किया.
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