देहरादून (किरण कांत शर्मा): उत्तराखंड के 25 साल के इतिहास में पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत नारायण दत्त तिवारी के बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी ही ऐसे मुख्यमंत्री बने हैं, जो लगातार चार साल से सीएम बने हुए हैं. हालांकि सीएम पुष्कर सिंह धामी का ये कार्यकाल दो सरकारों का है. चार जुलाई 2021 को पहली बार पुष्कर सिंह धामी ने सीएम पद की शपथ थी. वहीं दूसरी सरकार के कार्यालय में उनके तीन साल पूरे हो चुके हैं.
अपने चार साल के कार्यकाल में सीएम धामी ने कई ऐसे बड़े फैसले लिए, जिनकी चर्चा देश भर में हुई. उनमें से कुछ फैसले तो ऐसे थे, जिन्होंने सीएम पुष्कर सिंह धामी की पहचान एक नेशनल लीडर के रूप में बनाई. आज ईटीवी भारत उन्हीं फैसलों के बारे में आपको विस्तार से बताएगा.
हरिद्वार में जिन योजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्यास किया गया है, वे निश्चित रूप से क्षेत्रीय विकास की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होंगी। pic.twitter.com/1xICsjmost
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) July 4, 2025
पुष्कर सिंह धामी का सफर: उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य में बार-बार केंद्रीय नेतृत्व के द्वारा मुख्यमंत्री बदले जाने का रिवाज हमेशा से चला आता रहा है. लिहाजा कोई भी मुख्यमंत्री जब कुर्सी पर बैठता है, तो सबसे पहले उसके आगे यही चुनौती होती है कि क्या वह उत्तराखंड की सत्ता में बैठकर नारायण दत्त तिवारी की तरह अपने 5 साल पूरा कर पाएगा या नहीं?
कभी बीजेपी अध्यक्ष के बदले जाने तो कभी शुरुआती दौर में ही खुद की सीट हारने की वजह से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने भी ये सवाल आया कि कहीं बीजेपी हाईकमान उन्हें सीएम की कुर्सी से हटा न दे. लेकिन चुनाव हारने के बाद भी बीजेपी हाईकमान ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर अपना भरोसा कामयाब रखा. उन्हें 2022 में दोबारा से प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया.
आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के कुशल नेतृत्व में उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) का लागू होना केवल एक कानूनी बदलाव नहीं बल्कि सामाजिक समरसता और न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।
यह गर्व का क्षण है कि हमारे प्रदेश ने पूरे देश को नई राह दिखाने का कार्य किया… pic.twitter.com/S6BEOsYVPR
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) July 2, 2025
इसके पहले ही जब पुष्कर सिंह धामी खटीमा से विधायक थे, तभी बीजेपी ने चार जुलाई 2021 को उन्हें प्रदेश का सीएम बनाया था. तब से लेकर अभी तक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बीजेपी हाईकमान की उम्मीदों पर खरा उतर रहे हैं. यही कारण है कि आज धामी मुख्यमंत्री के रूप में अपने 4 साल पूरे होने का कार्यक्रम धूमधाम से मना रहे हैं.
ऐसे फैसले जिनकी देशभर में चर्चा हुई: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कई ऐसे फैसले लिए, जिनकी देश में चर्चा हुई. हालांकि कुछ निर्णयों की वजह से सीएम धामी को आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा.
देवभूमि के मूल स्वरूप को बनाए रखने के लिए हम प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रहे हैं। pic.twitter.com/YXiO1mirLZ
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) July 1, 2025
UCC जैसा बड़ा फैसला लिया: उत्तराखंड राज्य भले ही छोटा सा हो, लेकिन यहां घटी राजनीतिक घटनाओं पर पूरे देश की नजर रहती है. सीएम धामी ने सत्ता की कमान संभालने के बाद कुछ ऐसे फैसले लिए, जिनकी चर्चा पूरे देश में हुई. सीएम धामी ने बीजेपी के उस बरसों पुराने वादों को उत्तराखंड में पूरा करके दिखा दिया, जिनका वादा कभी बीजेपी केंद्र में करती आई है. हम बात कर रहे हैं कि उत्तराखंड समान नागरिक संहिता कानून (UCC) की. UCC से उत्तराखंड राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आया. केंद्र से लेकर कई राज्य ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया भी दी.
नकल विरोधी कानून: धामी सरकार ने पेपर लीक माफिया के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए नकल विरोधी कानून लागू किया. इस कानून के तहत 100 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हुई और भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ी.
महिला सशक्तिकरण: धामी सरकार ने महिलाओं के लिए कई योजनाएं शुरू की, जिनमें सरकारी नौकरियों में 30% क्षैतिज आरक्षण, महिला सारथी योजना, लखपति दीदी योजना, एकल महिला स्वरोजगार योजना और ड्रोन दीदी योजना शामिल हैं. इनमें कुछ केंद्रीय योजनाएं भी शामिल हैं.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल पर एक नजर (ETV Bharat)
अतिक्रमण पर कार्रवाई: धामी सरकार ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और 6,500 एकड़ से अधिक भूमि को अवैध कब्जों से मुक्त कराया. इस कार्रवाई को धामी ने निष्पक्ष बताते हुए कहा कि इसका उद्देश्य किसी समुदाय को निशाना बनाना नहीं, बल्कि सरकारी संसाधनों की रक्षा करना था.
कृषि और बागवानी के लिए फैसले: सेब और कीवी की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने मिशन शुरू किए, जिससे पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि को नया आयाम मिला. इसके साथ ही पोल्ट्री फार्मिंग के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में 40% और मैदानी क्षेत्रों में 30% सब्सिडी की नीति लागू की गई.
सामाजिक कल्याण योजनाएं: वृद्धावस्था पेंशन और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के वेतन में वृद्धि जैसे कदमों ने सामाजिक कल्याण को मजबूत किया. इसके अलावा स्ट्रीट चिल्ड्रन पॉलिसी और पर्यावरण मित्रों के लिए मृतक आश्रित नियमावली जैसे निर्णय भी उनके कार्यकाल में ही लिए गए.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ उपलब्धि ही इस 4 साल की गवाह रही, बल्कि कुछ बड़ी चुनौतियां और आलोचना भी धामी के कार्यकाल में सामने आईं, जो उनकी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती रही.
2022 विधानसभा चुनाव में हार: धामी को 2022 के विधानसभा चुनाव में खटीमा सीट से कांग्रेस के भुवन चंद्र कापड़ी के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा. यह उनके लिए व्यक्तिगत और राजनीतिक रूप से बड़ा झटका था. हालांकि भाजपा ने उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखा. इसके बाद चंपावत उपचुनाव में सीएम धामी ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की, लेकिन यह घटना उनकी लोकप्रियता पर सवाल उठाती रही.
प्रशासनिक अनुभव की कमी: धामी को मुख्यमंत्री बनने से पहले कैबिनेट या राज्यमंत्री का अनुभव नहीं था. कई बार पक्ष और विपक्ष ये कह कर उनकी आलोचना करते रहे.
बेरोजगारी और पलायन: उत्तराखंड में बेरोजगारी और पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन की समस्या धामी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती रही. इस मामले में 4 सालों में कुछ बहुत बेहतर हुआ हो ऐसा कहा नहीं जा सकता है. आज भी राज्य में 9 लाख से अधिक रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं, जिनकी संख्या बढ़ती जा रही है.
राज्य पर बढ़ता कर्ज: उत्तराखंड में 25 सालों में लगातार सरकारें कर्ज से ही चल रही हैं. धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद ये कर्ज की सीमा और अधिक होती जा रही है. एक अनुमान के मुताबिक वित्तीय वर्ष 25-26 में ये आंकड़ा एक लाख करोड़ के पार पहुंच जायेगा.
आलोचनात्मक छवि: धामी सरकार के कुछ फैसले जैसे अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई को कुछ समुदायों द्वारा पक्षपातपूर्ण माना गया. इसमें मस्जिद, मदरसे शामिल रहे. हालांकि सरकार हर बार यही कहती रही की वो पूरी पारदर्शिता के साथ काम कर रही है.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल पर एक नजर: कई सालों के लंबे संषर्घ के बाद 9 नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था, तब से लेकर अभी तक सिर्फ एनडी तिवारी ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं, जिन्होंने अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है.
नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड (तब उत्तरांचल नाम था) के पहले सीएम बने थे. उनका कार्यकाल 9 नवंबर 2000 से 29 अक्टूबर 2001 तक रहा. हालांकि वो भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे. इसके बाद बीजेपी ने भगत सिंह कोश्यारी को सीएम बनाया. भगत सिंह कोश्यारी 30 अक्टूबर 2001 से 1 मार्च 2002 मुख्यमंत्री रहे.
2002 में प्रदेश में पहली बार चुनाव हुआ और कांग्रेस सत्ता में आई. कांग्रेस ने एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया. एनडी तिवारी पूरे पांच साल प्रदेश के सीएम रहे. 2002 से 2007 तक एनडी तिवारी प्रदेश के सीएम रहे. 2007 में बीजेपी सत्ता में आई और भुवन चंद्र खंडूड़ी प्रदेश के चौथे सीएम बने. इनका कार्यकाल 7 मार्च 2007 से 26 जून 2009 तक रहा है.
बीजेपी ने भुवन चंद्र खंडूड़ी को हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को प्रदेश का पांचवां सीएम बनाया. रमेश पोखरियाल निशंक का कार्यकाल 27 जून 2009 से 10 सितंबर 2011 रहा है. हालांकि रमेश पोखरियाल भी पार्टी पॉलिटिक्स का शिकार हो गए और बीजेपी ने फिर भुवन चंद्र खंडूड़ी को प्रदेश की कमान सौंपी.
इस तरह भुवन चंद्र खंडूड़ी ने दूसरी बार 11 सितंबर 2011 को मुख्यमंत्री की शपथ ली. हालांकि बीजेपी और खुद चुनाव हारने की वजह से भुवन चंद्र खंडूड़ी तीसरी बार मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. भुवन चंद खंडूड़ी का दूसरा कार्यकाल 11 सितंबर 2011 से 13 मार्च 2012 तक रहा.
2012 में कांग्रेस की सरकार बनी और पार्टी ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन विजय बहुगुणा पांच साल अपनी सरकार नहीं चला पाए. कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को सीएम बनाया. विजय बहुगुणा का कार्यकाल 13 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014 तक रहा. वहीं हरीश रावत भी एक फरवरी 2014 से 18 मई 2017 तक सीएम रहे. हालांकि इस बीच तीन महीने का राष्ट्रपति शासन भी रहा.
इसके बाद 2017 में चुनाव हुए. इस चुनाव में बीजेपी जीती और त्रिवेंद्र सिंह रावत सीएम बने. लेकिन त्रिवेंद्र भी पार्टी पॉलिटिक्स का शिकार हुए और उन्हें चार साल से पहले ही सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी. त्रिवेंद्र का कार्यकाल 18 मार्च 2017 से 10 मार्च 2021 तक रहा. त्रिवेंद्र के बाद तीरथ सिंह रावत भी सिर्फ चार महीने के लिए सीएम बन पाए. तीरथ का कार्यकाल 10 मार्च 2021 से 3 जुलाई 2021 तक रहा. इसके बाद 4 जुलाई 2021 को पुष्कर सिंह धामी सीएम बने, जो अभी तक प्रदेश के मुखिया हैं.
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