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अपनों को विदेश में मिलेगी परवरिश (Photo-ETV Bharat)
रोहित कुमार सोनी
देहरादून (उत्तराखंड): अपनों ने ठुकराया, गैरों ने अपनाया…ये कहावत उत्तराखंड के शिशु बाल गृहों में रह रहे बच्चों पर सटीक बैठती है. ये बच्चे बिना माता-पिता के यहां अपना जीवन जी रहे हैं. यहां बच्चों को गोद लेने वालों की तादाद भारत से ज्यादा विदेशियों की है. राज्य के कई जिलों में राजकीय शिशु सदन व बाल गृह संचालित हो रहे हैं. निराश्रित बच्चों के साथ ही यहां वो बच्चे भी रहते हैं जिनके अभिभावक इस दुनिया में नहीं हैं. वर्तमान समय में उत्तराखंड में बाल गृह में रहने वाले बच्चों की संख्या करीब 929 हैं. जबकि 185 बच्चों को अभी तक गोद लिया जा चुका है. खास बात ये है कि जिन स्पेशल नीड्स चाइल्ड को देश के लोग अपनाने से हिचकिचा रहे हैं, उन्हें विदेशी अपना रहे हैं.
प्रदेश में संचालित हो रहे इतने शिशु बाल गृह: उत्तराखंड राज्य में निराश्रित मिले बच्चों के साथ ही किसी आपदा या घटना में बेघर हो गए बच्चों के निवास के लिए प्रदेश भर में 15 शिशु केंद्र मौजूद हैं. इसमें से 14 राजकीय शिशु केंद्र यानि सरकारी और एक निजी शिशु केंद्र शामिल है.
अपने ने ठुकराया, विदेशियों ने अपनाया (Video-ETV Bharat)
हालांकि, इन केंद्रों में मौजूद बच्चों को गोद दिए जाने को लेकर केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) के अधीन राज्य स्तरीय निकाय यानि राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसी (SARA) काम कर रही है. जिससे बच्चों को जरूरतमंद लोग गोद लें, ताकि न सिर्फ उन परिवारों की कमी पूरी हो, बल्कि इन बच्चों का जीवन भी बेहतर हो सके. उत्तराखंड में संचालित 14 राजकीय शिशु केंद्र, उत्तराखंड महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की ओर से संचालित हो रहे हैं.

अनाथ बच्चों को गोद लेने के लिए पेरेंट्स की बाध्यता (ETV Bharat Graphics)
ये थोड़ी सोच की बात है क्योंकि जब कोई व्यक्ति किसी बच्चे को गोद लेता है तो वो इस बात पर जोर देता है कि वो बच्चा सामान्य हो. यही वजह है कि राज्य दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण, केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण के जरिए एक विशेष अभियान चलाया जा रहा है ताकि लोगों को इस बाबत जागरुक किया जा सके कि बच्चा तो बच्चा होता है. साथ ही स्पेशल नीड्स वाले बच्चे भी ईश्वर का रूप होते हैं. ऐसे में स्पेशल नीड्स बच्चों को गोद लेने में किसी तरह का कोई संकोच नहीं होना चाहिए, क्योंकि राज्य और केंद्र सरकार की दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण सहयोग करने के लिए आगे आ रही है.
– डॉ चंद्रेश कुमार यादव, सचिव, महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग –
बच्चों को गोद लेने में विदेशी आगे: उत्तराखंड दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसी (SARA) से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड के शिशु सदनों में मौजूद बच्चों को साल 2011 से अभी तक 185 बच्चों को परिवारों ने गोद लिया है. खास बात यह है कि इन 185 बच्चों में से 156 बच्चों को भारत देश के अलग-अलग राज्यों के लोगों ने गोद लिए हैं, जबकि 29 बच्चों को विदेशियों ने गोद लिए हैं.

अनाथ बच्चों को गोद लेने के लिए पेरेंट्स की बाध्यता (ETV Bharat Graphics)
उत्तराखंड राज्य से गोद लिए गए 185 बच्चों में से 9 बच्चे ऐसे हैं, जो स्पेशल नीड्स चाइल्ड हैं और इस तरह के बच्चों को गोद लेने में विदेशियों ने भारतीयों को पछाड़ दिया है. आंकड़ों के अनुसार, जिन 9 स्पेशल चाइल्ड बच्चों को गोद लिया गया है, उसमें से आठ स्पेशल चाइल्ड बच्चों को विदेशियों ने गोद लिया है, जबकि एक स्पेशल चाइल्ड बच्चों को तमिलनाडु के एक परिवार ने गोद लिया है.

उत्तराखंड में शिशु सदन में बच्चे (ETV Bharat Graphics)
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गोद लेने के लिए माता-पिता के उम्र की बाध्यता
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विदेश में मिलेगी परवरिश: उत्तराखंड के 29 अनाथ बच्चों को विदेशियों ने गोद लिया हैं, जिसमें 21 सामान्य बच्चों और आठ स्पेशल चाइल्ड बच्चे (दिव्यांग) शामिल हैं. गोद लेने वाले देशों में अमेरिका, फ्रांस, स्पेन, इटली, जर्मनी, बेल्जियम और कनाडा शामिल हैं. इसी तरह उत्तराखंड राज्य के 156 अनाथ बच्चों को देश के तमाम राज्यों के परिवारों में गोद लिए हैं. इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, बेंगलुरु, तेलंगाना, असम, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और कर्नाटक राज्य शामिल हैं. अभी भी उत्तराखंड के तमाम शिशु सदनों में 929 बच्चे मौजूद हैं, जो अपनाने का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि, इन सभी 929 बच्चों में से करीब 250 बच्चे ऐसे हैं, जो स्पेशल नीड्स चाइल्ड हैं.
ऐसे माता-पिता जिनके पास उनके बच्चे हैं वो भी बच्चा गोद ले सकते हैं. कोई भी फैमिली अधिकतम चार बच्चे को गोद ले सकती है. हालांकि, इसके लिए गोद लेने वाले माता-पिता की उम्र सीमा तय की गई है. जिसमें तहत गोद लेने वाले कपल की टोटल उम्र 110 से कम होनी चाहिए, ताकि वो बच्चे को गोद ले सकते हैं. साथ ही बताया कि गोद लेने की फैमिली के लिए उनके इनकम की कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन ये जरूर देखा जाता है कि वो बच्चे का पालन-पोषण सही ढंग से कर पाएंगे या नहीं? तभी बच्चों को गोद दिया जाता है.
– राजीव नयन तिवारी, उप मुख्य परिवेक्षा अधिकारी, राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण –
शिशु केंद्रों में स्पेशल नीड्स वाले बच्चे: राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण के उप मुख्य परिवेक्षा अधिकारी राजीव नयन तिवारी ने बताया कि जो कपल बच्चे को गोद रहे है उनके लिए ये जरूरी है कि उनके परिवार के सभी सदस्य सहमत हो. इसके साथ ही अगर किसी कपल के पास उनका खुद का बच्चा है तो उससे भी कंसर्न लेना जरूरी होता है, ताकि बच्चा सुरक्षित रहे. जो भी नियम बनाए गए हैं, उसे इस बात को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं कि बच्चा का पालन पोषण सही ढंग से हो सके. अगर कोई बच्चा गोद लेता है तो उसके अगले 2 सालों तक हर 6 महीने में बच्चे का फोटो अपलोड करना होता है, क्योंकि समय के साथ बच्चों का चेहरा भी बदलता रहता है. वर्तमान समय में प्रदेश के राजकीय शिशु केंद्रों में करीब 250 स्पेशल नीड्स वाले बच्चे मौजूद हैं.
स्पेशल नीड्स वाले बच्चों को ज्यादा मदद की जरूरत: स्पेशल नीड्स बच्चों को सामान्य बच्चों के मुकाबले कुछ ज्यादा और विशेष मदद की जरूरत होती है. इसके अलावा, स्पेशल नीड्स चाइल्ड वो बच्चा हैं जिन्हें किसी मेडिकल, विकासात्मक, मानसिक, सुनने‑देखने की कमजोरी या फिर व्यवहारिक समस्या के चलते ज्यादा सहयोग, संसाधन और सुविधाओं की जरूरत होती है. स्पेशल नीड्स चाइल्ड बच्चों और सामान्य बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया एक समान है.
बच्चे को गोद लेने की ये है प्रक्रिया: ऐसे में जो भी माता पिता, अनाथ बच्चों को गोद लेना चाहते है. उनको केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसी (CARA) की वेबसाइट https://cara.wcd.gov.in पर जाकर आवेदन करना होता है. इसके बाद जिस जगह से बच्चे को गोद लेने के लिए माता पिता सहमति जताते हैं, उनकी वहां पर काउंसलिंग की जाती है. साथ ही उनसे तमाम जरूरी जानकारियां भी ली जाती हैं. जब माता-पिता से संबंधित सभी जानकारियां और उनके परिवार के लोगों से सहमति पत्र मिल जाती है, उसके बाद बाकायदा एक फॉर्म भराया जाता है और फिर बच्चों को गोद दे दिया जाता है.
बच्चा गोद लेने के बाद की प्रक्रिया: बच्चों को गोद देने के बाद सीधे तौर पर बच्चों की निगरानी विभाग की ओर से नहीं की जाती है. लेकिन दो से तीन सालों तक उसे क्षेत्र के आसपास के लोगों से बच्चे की जानकारी ली जाती रहती है. जो लोग बच्चों को गोद ले रहे हैं, वह काफी अधिक जरूरतमंद होते हैंं. ऐसे में वह बच्चों को अपने दिल के करीब रखते हैं. अगले तीन सालों तक वेबसाइट पर हर 6 महीने में उनसे फोटो अपलोड करने के लिए कहा जाता है. अभी तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है, जब किसी पेरेंट्स ने फोटो अपलोड करने से मना कर दिया हो, बल्कि वो खुद ही समय-समय पर फोटो अपलोड कर देते हैं.
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उत्तराखंड के तमाम राजकीय शिशु सदनों में मौजूद बच्चों की जिलेवार स्थिति प्रदेश भर में मौजूद सभी सदनों में 929 बच्चे मौजूद हैं, जिनमें से 250 बच्चे स्पेशल नीड्स चाइल्ड शामिल हैं.
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