मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट ने 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेन में हुए सीरियल ब्लास्ट मामले में सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया. इस ब्लास्ट में 189 लोग मारे गए थे. 19 साल बाद कोर्ट ने यह फैसला सुनाया. जिला अदालत ने इन्हें दोषी ठहराया था.
विशेष (जिला) अदालत ने पांच आरोपियों को मौत की सजा और बांकी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. अदालत ने कहा कि अगर आरोपी किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो उन्हे तुरंत जेल से रिहा कर दिया जाएगा.
इस मामले में कुल 13 आरोपी थे, जिनमें से एक को महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत विशेष अदालत ने बरी कर दिया. 12 में से पांच को मौत की सज़ा सुनाई गई, जिनमें से एक की महामारी के दौरान जेल में मौत हो गई, और सात को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई.
हाईकोर्ट की बेंच ने 31 जनवरी को सुनवाई पूरी होने के पाॆच महीने बाद यह फैसला सुनाया. बॉम्बे हाईकोर्ट पिछले साल जुलाई से छह महीने तक सुनवाई की थी. हाईकोर्ट ने 31 जनवरी 2025 तक के लिए यह फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे आज सुनाया गया.
जानें हाईकोर्ट ने क्या कहा
बॉम्बे हाईकोर्ट मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया. करीब एक दशक पहले एक विशेष अदालत ने पांच आरोपियों को मौत की सजा और शेष को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की विशेष पीठ ने कहा कि ‘अभियोजन पक्ष मामले को उचित संदेहों से परे साबित करने में पूरी तरह विफल रहा.’ अदालत ने अभियोजन पक्ष के लगभग सभी गवाहों के बयानों को विश्वास योग्य नहीं पाया.
हाईकोर्ट ने कहा पुलिस आरोपों को साबित करने में पूरी तरह विफल रही
इस मामले में मुंबई पुलिस की जांच संदिग्ध थी. आरोपियों ने गिरफ्तारी के 100 दिन बाद तक जुर्म कबूल नहीं किया. फिर अचानक एक दिन कुछ टैक्सी ड्राइवरों ने बताया कि अदालत में उनकी पहचान हो गई है, जो संदिग्ध था. इसलिए हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि राज्य सरकार अदालत में अपना पक्ष रखने में पूरी तरह विफल रही है.
बचाव पक्ष ने कहा जबरन कबूलनामा लिया गया
बचाव पक्ष के वकील युग चौधरी ने दावा किया था कि पुलिस ने उन सभी आरोपियों से जबरन कबूलनामा लिया था. गिरफ्तारी के तीन महीने बाद तक वे सभी निर्दोष होने का दावा करते रहे. हालांकि, जैसे ही जांच एजेंसी ने इन आरोपियों पर मकोका लगाया, सभी ने अचानक अपना अपराध कबूल कर लिया. युग चौधरी ने अदालत को बताया था कि राज्य सरकार के पास आरोपियों के खिलाफ उनके कबूलनामे के अलावा कोई पुख्ता सबूत नहीं है.
हाईकोर्ट ने कहा- घटना में इस्तेमाल बम की पहचान करने मेंं पुलिस विफल
अदालत के अनुसार विस्फोट के लगभग 100 दिन बाद भी टैक्सी चालकों या ट्रेन में सवार लोगों के लिए आरोपियों को याद रखने का कोई कारण नहीं था. बम, बंदूकें, नक्शे आदि जैसे साक्ष्यों की बरामदगी के बारे में न्यायालय ने कहा कि यह बरामदगी अप्रासंगिक है. मामले के लिए महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि अभियोजन पक्ष विस्फोटों के लिए प्रयुक्त बम के प्रकार की पहचान करने में विफल रहा.
सरकारी वकील ने मामला को रेयर ऑफ रेयरेस्ट बताया था
इस मामले में राज्य सरकार की ओर से विशेष लोक अभियोजक राजा ठाकरे पेश हुए और उन्होंने मृत्युदंड की पुष्टि का समर्थन किया और कहा कि यह मामला रेयर ऑफ रेयरेस्ट की श्रेणी के मानदंडों को पूरा करता है. उन्होंने आगे कहा कि आरोपी प्रशिक्षित आतंकवादी हैं. वे किसी भी दया के पात्र नहीं हैं और उन्हें समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है. उनकी मानसिकता को देखते हुए, उनके सुधार की कोई संभावना नहीं है. इसलिए उन्हें दी गई सजा उचित है.
बारह अभियुक्तों में से एक की 2021 में कोविड-19 के कारण मृत्यु हो गई थी. अदालत जुलाई 2024 से इस मामले की सुनवाई कर रही थी. यह मामला 11 जुलाई, 2006 को हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों से संबंधित है. इसमें मुंबई की पश्चिमी रेलवे लाइन पर उपनगरीय ट्रेनों में सात बम विस्फोट हुए थे. इसमें 189 लोग मारे गए थे और 824 घायल हुए थे.
विशेष अदालत ने 5 आरोपियों को सुनाई थी मौत की सजा
पेश मामले में विशेष अदालत ने अक्टूबर 2015 में मकोका के तहत 5 आरोपियों को मौत की सजा और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. इनमें कमाल अंसारी, मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, नवीद हुसैन खान और आसिफ खान शामिल थे. सभी को बम लगाने का दोषी ठहराया गया था. कमाल अंसारी की 2021 में नागपुर जेल में रहते हुए कोविड-19 के कारण मृत्यु हो गई.
निचली अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा पाने वाले सात आरोपी तनवीर अहमद अंसारी, मोहम्मद मजीद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुज़म्मिल अताउर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और ज़मीर अहमद लतीफुर रहमान शेख थे. राज्य ने मौत की सजा की पुष्टि के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया, जबकि दोषियों ने भी अपनी दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील दायर की.
यह मामला 2015 से हाईकोर्ट में लंबित था. 2022 में राज्य सरकार ने अदालत को सूचित किया कि साक्ष्यों की मात्रा को देखते हुए सुनवाई में कम से कम पांच से छह महीने लगेंगे. शीघ्र निपटारे के बार-बार अनुरोध के बाद जुलाई 2024 में मामले की दैनिक सुनवाई के लिए एक विशेष पीठ का गठन किया गया.
फैसले को सुप्रीम कोर्ट में देंगे चुनौती
इस मामले में सरकार की ओर पेश वकील ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मन बना रहे हैं. इस फैसले की कॉपी मिलते ही विशेष सरकारी वकील राजा ठाकरे ने ई टीवी भारत से बात करते हुए स्पष्ट किया कि वह इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने पर विचार करेंगे.