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मंदिर के मुद्दे में फंसी कांग्रेस नहीं हो पाई सफल,भा.ज.पा. की सफलता के बने ये 5 कारण

केदारनाथ घाटी का जनादेश इस बार भाजपा के पक्ष में गया है। इस उपचुनाव में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंकी थी। वहीं, कांग्रेस ने चुनाव के दौरान केदारनाथ मंदिर के शिलान्यास को प्रमुख मुद्दा बना कर अपनी पूरी रणनीति केंद्रित की। लेकिन केदारनाथ मंदिर से जुड़ी राजनीति के जाल में कांग्रेस खुद ही फंस गई और अंततः वह जीत नहीं प्राप्त कर पाई।

केदारनाथ उपचुनाव केवल एक विधानसभा सीट का चुनाव नहीं था, बल्कि इस सीट पर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की प्रतिष्ठा और विचारधारा दोनों दांव पर लगी थीं। बदरीनाथ में हार के बाद भाजपा को वैचारिक मोर्चे पर रक्षात्मक स्थिति का सामना करना पड़ा था, और पार्टी नहीं चाहती थी कि वह फिर से ऐसी असहज स्थिति में फंसे। इस कारण, भाजपा ने इस उपचुनाव में पूरी ताकत झोंकी और हर संभव प्रयास किया।

शनिवार को 90,000 से अधिक मतदाताओं वाली केदारनाथ विधानसभा की जनता ने अपना जनादेश दिया। जनता ने भाजपा की महिला प्रत्याशी आशा नौटियाल पर अपना विश्वास जताया और उन्हें अपना विधायक चुना। इसके साथ ही, भाजपा ने केदारनाथ विधानसभा में महिला प्रत्याशी की जीत का मिथक भी बरकरार रखा।

यह जीत भाजपा के लिए सिर्फ एक राजनीतिक सफलता नहीं थी, बल्कि पार्टी की रणनीतिक परिपक्वता और सशक्त नेतृत्व का भी प्रमाण था, जिसने इस उपचुनाव में अपनी स्थिति को मजबूत किया।

पिछले तीन महीनों से उपचुनाव की तैयारी में जुटे सियासी दलों की कड़ी मेहनत और प्रत्याशियों एवं उनके समर्थकों द्वारा लगातार 17 दिन तक किए गए धुआंधार प्रचार का परिणाम आखिरकार भाजपा की झोली में गिरा। भाजपा ने अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी और पूरी ताकत के साथ चुनावी रणनीति को लागू किया।

वहीं, केदारनाथ उपचुनाव के दौरान कांग्रेस ने केदारनाथ मंदिर के शिलान्यास को प्रमुख मुद्दा बनाने का पूरा प्रयास किया और इसे चुनावी प्रचार का मुख्य आधार बनाया। हालांकि, कांग्रेस इस रणनीति में खुद ही चक्रव्यूह में फंसी और उसे इसका कोई लाभ नहीं मिला। कांग्रेस की यह कोशिश मंदिर के मुद्दे पर आधारित होकर स्थानीय मुद्दों और विकास से दूर हो गई, जिससे भाजपा को बढ़त हासिल हुई। तो आइए आपको बताते हैं भाजपा के उपचुनाव में जीत के वो कौन से बड़े कारण रहे।

तीन महीने पहले चुनावी रणनीतिकारों को मैदान में उतारा गया

उपचुनाव का विधिवत एलान होने से तकरीबन तीन महीने पहले ही भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति को सक्रिय कर दिया था। चुनावी प्रबंधन के रणनीतिकारों को मैदान में उतारने के साथ ही भाजपा ने प्रचार की कमान युवा मंत्री सौरभ बहुगुणा, प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी और विधायक भरत चौधरी को सौंप दी। इन नेताओं ने उपचुनाव की पूरी प्रक्रिया में अपने प्रचार की गतिविधियों को निरंतर बनाए रखा और अपने कार्यों के माध्यम से भाजपा का जनसमर्थन मजबूत किया।

सीएम ने पूरी ताकत झोंकी

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी उपचुनाव में भाजपा की स्थिति मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने आपदा प्रभावितों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा से लेकर विधानसभा क्षेत्र के विकास से जुड़ी योजनाओं को तत्काल स्वीकृति दी। चुनाव की घोषणा से पहले ही उन्होंने केदारनाथ क्षेत्र का दौरा किया और प्रचार के अंतिम दिनों में भी वहां डेरा डाले रखा।

भा.ज.पा. की ताकत

प्रदेश और केंद्र में भाजपा की सरकार, केदारनाथ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सीधा जुड़ाव, मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक और पार्टी पदाधिकारियों का प्रचार—ये सभी भाजपा की ताकत बने। इन तत्वों ने मिलकर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया और पार्टी को जीत की ओर अग्रसर किया।

महिला प्रत्याशी पर किया दांव

केदारनाथ उपचुनाव में भाजपा ने महिला मतदाता बहुल सीट को ध्यान में रखते हुए दो बार की विधायक और महिला चेहरे आशा नौटियाल पर दांव लगाया। भाजपा को यकीन था कि महिला प्रत्याशी पर यह दांव सही साबित होगा, और महिला उम्मीदवार की जीत का मिथक दोहराया जाएगा। यह भाजपा का मजबूत पक्ष साबित हुआ और आशा नौटियाल ने भाजपा के विश्वास को सही ठहराया।

दिल्ली में केदारनाथ मंदिर का शिलान्यास—सुझबूझ से संभाला मामला

नई दिल्ली में केदारनाथ मंदिर के शिलान्यास को लेकर भाजपा को एक कमजोर पक्ष का सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि कांग्रेस ने इसे एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बना लिया था। लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले को बड़ी सूझबूझ से संभाला। उन्होंने मंदिर के शिलान्यास को लेकर लोगों की नाराजगी को दूर किया और इसे भाजपा के पक्ष में परिवर्तित कर दिया, जिससे पार्टी को चुनावी मैदान में बढ़त मिली।

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