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गंगा में गिर रहे सीवर पर लगाम नहीं…उत्तराखंड नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के मुख्य सचिव ने जांच करवाई

गंगोत्री, जो कि गंगा नदी के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, अब प्रदूषण की समस्या का सामना कर रही है। हाल ही में यह मामला सामने आया कि गंगोत्री में गंगा नदी में सीवर का पानी भी गिर रहा है, जो नदी की पवित्रता और पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी है। इस गंभीर मामले को लेकर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने उत्तराखंड राज्य के मुख्य सचिव को जांच के आदेश दिए हैं।

NGT ने राज्य सरकार को निर्देशित किया है कि वह गंगोत्री में सीवर के पानी के गिरने की स्थिति की तत्काल जांच करे और इसके समाधान के लिए उचित कदम उठाए। गंगा नदी का यह हिस्सा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण और जल संसाधनों के लिए भी अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है।

वहीं, राज्य सरकार को यह भी आदेश दिया गया है कि गंगोत्री में इस तरह के प्रदूषण को रोकने के लिए स्थायी उपाय किए जाएं और सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी अपशिष्ट जल गंगा में न पहुंचे।

NGT का यह आदेश गंगा के संरक्षण के लिए उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है, जो राज्य सरकार को प्रदूषण की समस्या पर गंभीरता से काम करने का दबाव बनाएगा।

एनजीटी की पीठ के सामने पेश की गई सुनवाई में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि राज्य सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, गंगोत्री में स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की क्षमता एक मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) है, लेकिन वहां पर फीकल कालीफार्म की मात्रा मानक से काफी अधिक पाई गई है। एकत्र किए गए नमूने में यह मात्रा 540/100 मिलीलीटर एमपीएन (मोस्ट प्रोबबल नंबर) पाई गई है, जो स्वास्थ्य मानकों से कहीं अधिक है।

एनजीटी ने इस गंभीर मामले पर तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता जताई है, ताकि गंगा नदी और उसके पर्यावरणीय संतुलन को बचाया जा सके। राज्य सरकार से अपेक्षाएँ की जा रही हैं कि वे गंगोत्री और अन्य जलाशयों के आसपास की नदियों में प्रदूषण को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए और सुनिश्चित करें कि सीवर और गंदगी को नियंत्रित किया जाए।

फीकल कालीफार्म (एफसी) का स्तर मनुष्यों और जानवरों के मलमूत्र से निकलने वाले सूक्ष्म जीवों के कारण प्रदूषण का संकेत देता है। गंगोत्री में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में यह स्तर मानक से अधिक पाए जाने पर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने गंभीर चिंता व्यक्त की है।

एनजीटी की सुनवाई में यह भी बताया गया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के जल गुणवत्ता (आउटडोर बाथ) मानदंड के अनुसार फीकल कालीफार्म की अधिकतम सीमा 500/100 मिली होनी चाहिए, लेकिन गंगोत्री में यह सीमा 540/100 मिलीलीटर एमपीएन (मोस्ट प्रोबबल नंबर) पाई गई है, जो स्पष्ट रूप से जल गुणवत्ता के मानकों से अधिक है।

सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि राज्य में 63 नालों को टैप नहीं किया जा सका है, जिसके कारण गंदगी सीधे नदियों में गिर रही है। यह स्थिति खासकर उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में गंभीर होती जा रही है, जहां अव्यवस्थित सीवेज और कचरा नदियों में मिल रहा है।

खासकर ऊधम सिंह नगर जिले के काशीपुर, बाजपुर और किच्छा कस्बों में यह समस्या और अधिक बढ़ गई है, क्योंकि इन क्षेत्रों के सभी नाले टैप नहीं किए गए हैं। इसके परिणामस्वरूप नालों से निकलने वाला गंदा पानी नदियों में गिरकर जल प्रदूषण को बढ़ा रहा है।

एनजीटी ने राज्य सरकार को इस मामले में शीघ्र कार्रवाई करने और संबंधित नालों को टैप करने के निर्देश दिए हैं, ताकि गंगा और अन्य नदियों के प्रदूषण को रोका जा सके और जल गुणवत्ता मानकों का पालन किया जा सके।

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