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आप अंतरिक्ष में कैसे सोते हैं, क्या खाते हैं?, ISS में मौजूद शुभांशु शुक्ला से स्कूली बच्चों ने पूछे कई सवाल


हैदराबाद: भारत के एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला की आजकल काफी चर्चाएं हो रही हैं, क्योंकि वो भारत की ओर से अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले भारतीय हैं. उन्होंने अपने बाकी तीन साथी एस्ट्रोनॉट्स के साथ 26 जून को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर कदम रखा था. अब उन्हें 9 दिन बीत चुके हैं और इस बीच शुभांशु शुक्ला ने भारत के स्कूली बच्चों से काफी बात की है. उन्होंने लखनऊ और केरल के स्कूली बच्चों से बातचीत की है, जिसमें बच्चों ने उनसे कई रोचक सवाल पूछे.

बच्चों ने शुभांशु से पूछे रोचक सवाल

बच्चों ने शुभांशु से पूछा कि, सर क्या अंतरिक्ष में हवा होती है? आप वहां क्या खाते हैं? आप वहां कैसे रहते हैं? आप वहां कैसे सोते हैं? स्पेस में सोने के बारे में जवाब देते हुए शुभांशु ने बताया कि बच्चों को बताया, “यह काफी मजेदार होता है, क्योंकि स्पेस में फ्लोर या छत नहीं होती. इसलिए अगर आप ISS पर आएंगे तो आप देखेंगे कि कोई दिवार पर सो रहा है तो कोई सीलिंग पर सो रहा है. यहां पर ऊपर की तरफ तैरान और अपने आप को सीलिंग से बांध लेना आसान होता है. यहां पर मुश्किल उसी जगह को ढूंढने की होती है, जहां पर रात में सोए थे और यह सुनिश्चित करना कि हम अपने स्लिपिंग बैग्स को बांध लें और वो कहीं और तैरकर ना चले जाएं.”

बच्चों के सवाल: आप वहां क्या खाते हैं?

शुभांशु ने जवाब देते हुए बताया, खाना पहले से पैक किया हुआ होता है और यह तय किया जाता है कि एस्ट्रोनॉट्स को पर्याप्त पोषण मिलता रहे. यहां आने से पहले खाने के लिए कई तरह के आइटम्स तैयार किए जाते हैं, एस्ट्रोनॉट्स उन्हें टेस्ट करते हैं और फिर उन्हें जो पसंद आता है. मैं अपने साथ गाजर का हलवा, मूंग दाल का हलवा और आम रस लाए थे.

बच्चों के सवाल: अंतरिक्ष में बीमार होने पर क्या करते हैं?

शुभांशु ने बीमारी के बारे में पूछने पर बताया कि, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर बीमारियों के लिए पृथ्वी से पर्याप्त दवाईयां लेकर जाया जाता है.

बच्चों के सवाल: अंतरिक्ष में इंसानों की मेंटल हेल्थ पर कैसा असर पड़ता है?

इस सवाल पर शुभांशु ने जवाब दिया, मॉडर्न टेक्नोलॉजी की मदद से एस्ट्रोनॉट्स अपने परिवार और दोस्तों से कनेक्ट हो सकते हैं, बातचीत कर सकते हैं, इससे मेंटल हेल्थ को बेहतर करने और रखने में मदद मिलती है.

शुभांशु ने अंत में माइक्रोग्रैवेटि में अपनी बॉडी को ढालने के बारे में बात करते हुए बताया कि, मेरा शरीर अब माइक्रोग्रैविटी के हिसाब से ढल गया है लेकिन जब मैं धरती पर लौटूंगा तो मेरे शरीर को फिर से माइक्रोग्रैवेटी के साथ तालमेल बिठाने में मुश्किल होगी और यह एक चुनौती होगी.

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