हैदराबाद: शुभांशु शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर सफलतापूर्वक डॉकिंग कर ली है. Axiom Mission 4 के जरिए भारतीय एस्ट्रोनॉट समेत 4 अन्य एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में लेकर गया ड्रैगन कैप्शूल स्पेसक्राफ्ट ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सफलतापूर्वक डॉक कर लिया है. आइए हम आपको इस ख़बर के बारे में बताते हैं.
इस ख़बर को स्पेसएक्स के आधिकारिक एक्स (पुराना नाम ट्विटर) अकाउंट के जरिए पोस्ट करके भी कंफर्म किया गया है. इस पोस्ट में एक वीडियो देखा जा सकता है, जिसमें दिख रहा है कि कैसे ड्रैगन कैप्शूल स्पेसक्राफ्ट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के Harmony मॉड्यूल से डॉक कर रहा है.
ISS से सफलतापूर्वक डॉक हुआ शुभांशु शुक्ला का स्पेसक्रॉफ्ट
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के आधिकारिक एक्स (पुराना नाम ट्विटर) अकाउंट के जरिए किए गए पोस्ट में बताया कि Axiom Mission 4 के तहत स्पेसएक्स ड्रैगन ने आज 6:31am ET यानी भारतीय समयानुसार करीब 4:01 मिनट पर इंटरनेशलन स्पेस स्टेशन से सफलतापूर्वक डॉक कर लिया. AX-4 के एस्ट्रोनॉट्स बहुत जल्द हैच खोलेंगे और स्पेस स्टेशन के अंदर जाएंगे. वहां पहले से मौजूद एस्ट्रोनॉट्स उनका स्वागत करेंगे. उसके बाद एक छोटा सेफ्टी ब्रीफिंग और मेडिकल चेकअप किया जाएगा. उसके बाद सभी एस्ट्रोनॉट्स अपने-अपने देश को संबोधित करते हुए मैसेज भेजेंगे. इस पूरे कार्यक्रम का सीधा प्रसारण नासा के लाइव स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म NASA+, आधिकारिक एक्स अकाउंट, स्पेसएक्स की वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर देखे जा सकते हैं.
Axiom Mission 4 मिशन को 25 जून 2025 को भारतीय समयानुसार 12:01 PM IST (2:31 AM EDT) पर नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से सफलतापूर्वर लॉन्च कर दिया गया था. इस मिशन में कुल चार सदस्य शामिल हैं, जो पृथ्वी से अंतरिक्ष में गए हैं. उनमें नाम के पुराने एस्ट्रोनॉट Peggy Whitson हैं, जो कमांडर की भूमिका निभा रहे हैं. उसके अलावा भारत के शुभांशु शुक्ला पायलट की भूमिका निभा रहे हैं, जो भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन भी रह चुके हैं. इन दोनों के अलावा मिशन स्पेशलिस्ट के तौर पर पोलैंड की Sławosz Uznanski‑Wiśniewski और हंगरी की Tibor Kapu का नाम शामिल हैं.
शुभांशु शुक्ला का ISS में जाना वाला लाइव वीडियो
शुभांशु शुक्ला के साथ बाकी तीनों देशों के सभी एस्ट्रोनॉट्स ने स्पेसक्राफ्ट के स्पेस स्टेशन से डॉक करने के बाद हैच खोलने और प्रेशर को लेवल करने समेत तमाम प्रोसेस को पूरा किया और भारतीय समयानुसार करीब 5:54 पर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के अंदर एंट्री की. इसी के साथ शुभांशु शुक्ला के साथ पूरे भारत ने एक नया कीर्तिमान रच दिया.
आपको बता दें कि यह 14 दिनों का मिशन है. इस दौरान वो बहुत सारे प्रयोग करेंगे. आइए हम आपको कुछ मुख्य प्रयोगों के बारे में बताते हैं.
- माइक्रोग्रैवेटी में फसल उगाना
माइक्रोग्रैविटी में मेथी और मूंग जैसी भारतीय फसलों को उगाने का प्रयोग किया जाएगा. इस दौरान देखा जाएगा कि क्या बीच अंकरित होते हैं या नहीं? क्या उनकी जड़े बढ़ती हैं या नहीं और बढ़ती हैं तो कैसे बढ़ती हैं? क्या फसलों को अंतरिक्ष की कम ग्रैवेटी में पोषण मिल पाता है या नहीं.
यह प्रयोग करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यह आगे चलकर चांद और मंगल जैसे ग्रहों पर खेती करने जैसे कामों के लिए उपयोगी होगा.
- माइक्रोग्रैविटी में सेल ग्रोथ और मसल टिशू रीजनरेशन
Axiom Mission 4 के दौरान किए जाने वाले दूसरे मुख्य प्रयोग में यह देखा जाएगा कि अंतरिक्ष में इंसानों के सेल्स यानी कोशिकाएं और मांसपेशियों के टिशू कैसे बढ़ते हैं. असल में, ज़ीरो ग्रैवेटि वाली जगहों पर शरीर की मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं, हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. ऐसे में इस प्रयोग के दौरान देखा जाएगा कि अंतरिक्ष में इंसानों के सेल्स और टिशू कैसे ग्रो करते हैं.
यह प्रयोग करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि इससे मंगल, चांद या अन्य ग्रहों पर लंबे समय तक की स्टडी और रिसर्च पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स की हेल्थ का ख्याल रखने, प्रोटेक्ट करने और बायो-मेडिकल रिसर्च करने में मदद मिलेगी.
- तार्डिग्रेड्स (Tardigrades) पर अध्ययन
तार्डिग्रेड्स बहुत छोटे जीव होते हैं, जो रेडिएशन और वैक्यूम जैसे काफी कठिन परिस्थितियों में भी जिंदा रह सकते हैं. ऐसे में Ax-4 मिशन के दौरान इस प्रयोग को करके देखा जाएगा कि माइक्रोग्रैवेटिी में इस छोटे जीव का शरीर कैसे रहता है? उसका शरीर कैसा व्यवहार करता है? क्या वो एक्टिव रहते हैं? क्या वो म्यूटेट करते हैं?
यह प्रयोग करना इसलिए जरूरी है क्योंकि अगर भविष्य में इंसान किसी दूर और लंबे समय के लिए स्पेस मिशन पर जाते हैं तो तार्डिग्रेड्स जैसे जीवों से हमें बायोलॉजिकल क्ल्यूज़ मिल सते हैं कि इंसानों की लाइफ को स्पेस में कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है.
- शिक्षा और स्क्रीन-टाइम से जुड़ा रिसर्च
इस प्रयोग के दौरान देखा जाएगा कि अंतरिक्ष में रहने के दौरान पढ़ने-लिखने यानी एजुकेशन से जुड़ी आदतों और मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप आदि स्क्रीन-यूज़ इंसानों के व्यवहार पर क्या और कैसा असर डालते हैं. उदाहरण के तौर पर, इस प्रयोग के देखा जाएगा कि माइक्रोग्रैवेटी वाली जगहों पर इंसानों का पढ़ाई पर कितना ध्यान लग पाता है? स्क्रीन पर ज्यादा टाइम बिताने से इंसानों की नींद या मूड पर कोई असर पड़ता है या नहीं?
इस प्रयोग को करना इसलिए जरूरी हैं, क्योंकि स्पेस में लंबे-समय तक रहने वाले एस्ट्रोनॉट्स के लिए उनका मेंटल हेल्थ और लर्निंग बिहेवियर समझना भी काफी जरूरी है, जिससे उनके मिशन पर प्रभाव पड़ सकता है.
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