हैदराबाद: भारत ने आज स्पेस साइंस में कमाल की उपलब्धि हासिल की है. भारत के एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला 18 दिनों की अंतरिक्ष यात्रा करके सकुशल पृथ्वी पर वापस लौट आए हैं. वह Axiom Mission 4 में पायलट की भूमिका में थे. इस मिशन में उनके साथ मिशन कमांडर – अमेरिका की Peggy Whitson, मिशन स्पेशलिस्ट्स – पोलैंड की Slawosz Uznanski-Wisniewski और हंगरी की Tibor Kapu शामिल थे. इनमें से भारत, पोलैंड और हंगरी के एस्ट्रोनॉट्स पहली बार इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर गए थे.
ये सभी एस्ट्रोनॉट्स SpaceX के स्पेसक्राफ्ट ड्रैगन (जिसका नाम ग्रेस भी है) के जरिए अंतरिक्ष से पृथ्वी पर अमेरिका के कैलिफोर्निया के समुद्री तट लैंड किए. ऐसे में कई भारतीयों के मन में यह सवाल उठा रहा होगा कि अंतरिक्ष में मौजूद स्पेस स्टेशन में 18 दिन बिताने के दौरान शुभांशु शुक्ला ने कौन-कौन से प्रयोग किए, जो कि भारत के बेहद खास प्रोजेक्ट यानी गगनयान मिशन की तैयारियों के लिए भी मददगार साबित होगा. आइए हम आपको आसान शब्दों में समझाते हैं कि शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में जाकर क्या-क्या किया.
पृथ्वी पर वापस लैंड करने के बाद स्पेसक्राफ्ट से निकलते हुए शुभांशु शुक्ला (फोटो क्रेडिट: Axiom Space)
अंतरिक्ष में शुभांशु शुक्ला और उनके साथी क्रू-मेंबर्स ने करीब 60 प्रयोग किए. इन में 7 प्रयोग ऐसे थे, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो द्वारा तैयार किया गया था. इन प्रयोगों का नेतृत्व शुभांशु शुक्ला कर रहे थे और इनसे मिले रिजल्ट्स के आधार पर भारत को फ्यूचर स्पेस मिशन्स में काफी मदद मिलेगी. आइए हम आपको इसरो द्वारा डिजाइन किए गए और आईएसएस पर शुभांशु द्वारा किए गए उन 7 मुख्य प्रयोगों के बारे में बताते हैं.
जीवों की सहनशीलता पर टेस्ट
शुभांशु ने टार्डिग्रेड्स नाम के एक छोटे जीव पर स्टडी की. इस जीव की खासियत हैं कि यह काफी मुश्किल हालत जैसे माइक्रोग्रेवैटी रेडिएशन और वैक्यूम जैसे काफी कठिन परिस्थितियों में भी जिंदा रह सकते हैं.
इस कारण इस प्रयोग के जरिए देखा गया कि इन मुश्किल परिस्थितियों में इस जीव का शरीर कैसा रहता है? उसका शरीर कैसा व्यवहार करता है? क्या वो एक्टिव रहते हैं? क्या वो म्यूटेट करते हैं? उन पर ग्रैविटी की कमी का क्या असर होता है?

Ax-4 पायलट शुभांशु शुक्ला और मिशन विशेषज्ञ टिबोर कापूला कपोला से पृथ्वी के दृश्य का आनंद लेते हुए (फोटो क्रेडिट: Axiom Space)
यह प्रयोग करना इसलिए जरूरी है क्योंकि अगर भविष्य में इंसान किसी दूर और लंबे समय के लिए स्पेस मिशन पर जाते हैं तो तार्डिग्रेड्स जैसे जीवों से हमें बायोलॉजिकल क्ल्यूज़ मिल सते हैं कि इंसानों की लाइफ को स्पेस में कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है.
माइक्रोग्रैविटी में सेल ग्रोथ और मसल टिशू रीजनरेशन
18 दिनों की इस अंतरिक्ष यात्रा के दौरान शुभांशु शुक्ला ने इंसानी मसल टिश्यू (Myogenesis) पर रिसर्च की. इस प्रयोग के जरिए यह समझा गया कि स्पेस में रहने पर मसल्स यानी मांसपेशियों कमजोर और सिकुड़ क्यों जाती हैं, हड्डियां कमजोर क्यों हो जाती है? लिहाजा, इस प्रयोग से यह समझने में मदद मिलेगी कि स्पेस में इंसानों के सेल्स और टिश्यू कैसे ग्रो करते हैं.

अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला (Ax-4 मिशन) अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर लाइफ साइंसेज़ ग्लवबॉक्स में मायोजेनेसिस अध्ययन के लिए संचालन करते हुए (फोटो क्रेडिट: Axiom Space)
यह प्रयोग करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि इससे मंगल, चांद या अन्य ग्रहों पर लंबे समय तक की स्टडी और रिसर्च पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स की हेल्थ का ख्याल रखने, प्रोटेक्ट करने और बायो-मेडिकल रिसर्च करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा यह एक्सपेरिमेंट जमीन पर भी मसल-संबंधी बीमारियों के इलाज में मददगार हो सकता है.
माइक्रोग्रैवेटी में फसल उगाना
शुभांशु ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में एक किसान के रूप में भी काम किया है. उन्होंने वहां मूंग और मेथी के बीज को पेट्री डिश में उगाया और फिर ISS की फ्रीज़र में स्टोर किया. इससे यह पता करने में मदद मिली की अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैवेटी में बीज कैसे उगते हैं. इसके अलावा क्या उनकी जड़े बढ़ती हैं या नहीं और बढ़ती हैं तो कैसे बढ़ती हैं? क्या फसलों को अंतरिक्ष की कम ग्रैवेटी में पोषण मिल पाता है या नहीं. यह प्रयोग करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यह आगे चलकर चांद और मंगल जैसे ग्रहों पर खेती करने जैसे कामों के लिए उपयोगी होगा.

Ax-4 अंतरिक्ष यात्री मिशन पर किए जा रहे शोध के बारे में अक्षयम स्पेस की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. लूसी लो से बात करने के लिए एक साथ बात करते हुए (फोटो क्रेडिट: Axiom Space)
ऑक्सीजन बनाने वाले बैक्टीरिया
शुभांशु ने अपने इस खास अंतरिक्ष मिशन के दौरान दो प्रकार की cyanobacteria पर भी काम किया. इन बैक्टीरिया दो धरती पर सबसे पहले ऑक्सीज़न बनाने वाला जीव माना जाता है. इस रिसर्च और स्टडी को करने का मकसद यह देखना था कि क्या ये बैक्टीरिया स्पेसक्राफ्ट में ऑक्सीज़न रीसायक्लिंग सिस्टम का हिस्सा बन सकते हैं या नहीं. इससे मिशन के जरिए रिसर्चर्स देखना चाहते थे कि माइक्रोग्रैवेटी इन बैक्टीरिया को कैसे इन्फलुएंस करते हैं.

Ax-4 मिशन विशेषज्ञ टिबोर कापु और JAXA अंतरिक्ष यात्री ताकुया ओनिशी ने Ax-4 शोध अध्ययन के लिए ठंडा रखे गए नमूनों के स्थानांतरण पर साथ मिलकर काम किया (फोटो क्रेडिट: Axiom Space)
खाना और फ्यूल बनाने वाली शैवाल (microalgae)
शुभांशु ने microalgae पर भी एक्सपेरिमेंट किया. ये कुछ ऐसे छोटे जीव होते हैं, जो अंतरिक्ष में खाने और फ्यूल के लिए एक अच्छा सोर्स बन सकते हैं. उन्होंने देखा कि स्पेस में इन जीवों का ग्रोथ, एक्टिविटी और जीन कैसे बदलते हैं. ये जीव स्पेस में फूड और फ्यूल ग्रो करने में मदद कर सकते हैं. इस एक्सपेरिमेंट से माइक्रोग्रैवेटी में इन जीवों के ग्रोथ के साथ मेटाबोलिज़्म और जेनिटिक एक्टिविटीज़ पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी स्टडी की गई.
स्क्रीनटाइम और माइक्रोग्रैविटी
इसरो के Voyager Display प्रोजेक्ट में शुभांशु ने देखा कि अंतरिक्ष में स्क्रीन यूज़ करने से इंसानों के दिमाग पर कैसा और क्या मानसिक (पढ़ने-लिखने यानी एजुकेशन से जुड़ी आदतों और मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप आदि) असर पड़ता है. इसके अलावा अंतरिक्ष में ज्यादा स्क्रीन यूज़ करने से इंसानों की नींद या मूड पर कोई असर पड़ता है या नहीं.

Ax-4 मिशन विशेषज्ञ टिबोर कापु अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर व्यायाम करते हुए (फोटो क्रेडिट: Axiom Space)
इस प्रयोग से मिलने वाले अध्ययन के आधार पर भविष्य में बनने वाले स्पेसक्राफ्ट में गैजेट्स का डिजाइन बेहतर किया जाएगा. इसके अलावा इस प्रयोग की मदद से स्पेस में लंबे-समय तक रहने वाले एस्ट्रोनॉट्स के लिए उनका मेंटल हेल्थ और लर्निंग बिहेवियर कैसा होगा, यह समझने में मदद मिलेगी.इससे उनके मिशन पर प्रभाव पड़ सकता है.
दिमाग से कंप्यूटर चलाना
इसके अलावा शुभांशु शुक्ला ने अपनी साथी एस्ट्रोनॉट पोलैंड के Slawosz Uznanski के साथ मिलकर माइंड फोकस किया और फिर डायरेक्ट ब्रेन यानी दिमाग से ही कंप्यूटर से बातचीत की. आपको बता दें कि यह दुनिया में आजतक के इतिहास में किया गया ऐसा पहला एक्सपेरीमेंट है, जिसमें इंसान ने स्पेस में अपने दिमाग से सीधा कंप्यूटर के साथ कम्यूनिकेट किया.

Ax-4 मिशन विशेषज्ञ स्लावोश उज़नास्की-विश्नीव्स्की अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर स्पेस वोल्कैनिक एल्गी पेलोड के साथ (फोटो क्रेडिट: Axiom Space)
कुछ अन्य एक्सपेरिमेंट्स
इन सभी के अलावा शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम ने जीरो ग्रैविटी में पानी के बुलबुले वाला एक आसान लेकिन मजेदार प्रयोग भी किया. उसमें उन्होंने सर्फेस टेंशन का फायदा उठाकर एक फ्लोटिंग वाटर बबल बनाया और फिर शुभांशु ने मजाक में कहा, “मैं स्पेस स्टेशन पर पानी का जादूगर बन गया हूं.” इन सभी के अलावा चारों एस्ट्रोनॉट्स ने और भी कई एक्सपेरीमेंट्स किए, जिनमें कैंसर, माइक्रोग्रीन्स, पौधों की बायोलॉजी और शरीर में खून के बहाव पर माइक्रोग्रैविटी के असर को भी देखा गया.
बहरहाल, शुभांशु शुक्ला और उनके साथी क्रू मेंबर 25 जून 2025 को भारतीय समयानुसार 12:01 PM IST (2:31 AM EDT) पर नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से निकले थे और 26 जून को भारतीय समयानुसार शाम 5:54PM पर पहली बार इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर कदम रखा था.

स्पेसएक्स ड्रैगन “ग्रेस” सैन डिएगो, कैलिफोर्निया के तट के पास पानी में उतरती हुई (फोटो क्रेडिट: Axiom Space)
उसके बाद उन्होंने 18 दिनों तक एक्सपेरिमेंट्स किए और फिर 14 जुलाई 2025 को इंटरनेशनल स्पेस क्राफ्ट से कनेक्टेड ड्रैगन ग्रेस स्पेसक्राफ्ट का हैच भारतीय समयानुसार 2:37 PM पर बंद हुआ, जिसके बाद क्रू का स्पेसक्राफ्ट ऑर्बिटल लैबोरटी से भारतीय समयानुसार 4:45 PM पर अनडॉक हुआ. उसके बाद करीब 22.5 घंटे की यात्रा करने के बाद उनके स्पेसक्राफ्ट ने 15 जुलाई 2025 को 3:01 PM IST पर कैलिफ़ोर्निया के तट पर Splashdown किया. उसके बाद सभी एस्ट्रोनॉट्स का मेडिकल चेकअप हुआ और अब वो रिहेब सेंटर में जाकर अपनी बॉडी को जीरो ग्रैविटी से ग्रैविटी वाले एनवायरमेंट के लिए ढालेंगे.
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