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Axiom Mission 4: अंतरिक्ष में एक हफ्ते घूमने के बाद शुभांशु शुक्ला को मिली छुट्टी, अपने परिवार से की बात


हैदराबाद: भारत की ओर से पहली बार इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला को अंतरिक्ष की कक्षा में घूमते-घूमते एक हफ्ता बीत चुका है. इस दौरान उन्होंने कई एक्सपेरीमेंट्स की, पीएम मोदी से बात भी की और अब उन्हें और उनके साथी एस्ट्रोनॉट्स को काम से छुट्टी मिली है. इस मौके पर शुभांशु ने अपने परिवार से बात की.

भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के शुभांशु शुक्ला भी अंतरिक्ष में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं. शुभांशु शुक्ला को “Shux” Shukla के नाम से भी जाना जाने लगा है. उन्होंने Axiom Mission 4 के बारे क्रू मेंबर्स के साथ बीते बुधवार को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर एक हफ्ते पूरे किए. Axiom Space ने अपने आधिकारिक ब्लॉग में जानकारी दी कि एक हफ्ते बिताने के बाद क्रू को छुट्टी मिली है और इस दौरान उन्होंने पृथ्वी पर मौजूद अपने परिवारों से बातचीत की है. इस क्रू में कमांडर Peggy Whitson, पायलट Shubhanshu “Shux” Shukla और मिशन स्पेशलिस्ट के तौर पर Slawosz “Suave” Uznanski-Wisniewski और Tibor Kapu शामिल हैं. इन सभी ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर पूरे एक हफ्ते का वक्त बिता लिया है.

26 जून को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से डॉक करने के बाद से बुधवार के अंत तक इन एस्ट्रोनॉट्स ने पृथ्वी के चारों-ओर ऑर्बिट्स के 113 चक्कर लगा लिए हैं. इस दौरान उन्होंने 2.9 मिलियन माइल्स (29 लाख मील) से ज्यादा की यात्रा की है. ब्लॉग में मेंशन किए गए आंकड़ों के मुताबिक, शुभांशु शुक्ला और उनके साथी एस्ट्रोनॉट्स के द्वारा की गई कुल यात्रा पृथ्वी और चांद के बीच की कुल दूरी से करीब 12 गुना ज्यादा है.

इन एस्ट्रोनॉट्स को बुधवार के दिन एक डिज़र्विंग छुट्टी मिली थी. इस दौरान उन्हें अपने परिवार और प्रियजनों से बात करके आगे के काम को जारी रखने के लिए खुद को रिचार्ज करने का टाइम मिला था. सभी एस्ट्रोनॉट्स ने बुधवार के दिन छुट्टी बिताई और गुरुवार को फिर से अपने काम पर लग गए, जिसके लिए वो अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में गए हैं.

अंतरिक्ष में किए जा रहे प्रयोग

इस मिशन की अमेरिकन कमांडर पेगी ने अंतरिक्ष में माइक्रोग्रेविटी का इस्तेमाल करके कैंसर रिसर्च कर रही हैं. वो कैंसर के दौरान होने वाले ट्यूमर सेल्स का व्यवहार देख रही हैं. इससे मेटास्टैटिक कैंसर के लिए नई दवाईयों के टारगेट्स को ढूंढने में मदद मिलेगी.

भारत के शुभांशु शुक्ला एल्गी पर प्रयोग कर रहे हैं कि ग्रैविटी के बिना उनकी ग्रोथ कैसे होती है और उनका जेनेटिक नेचर कैसे बदलता है.

इसके अलावा शुभांशु एक बहुत छोटे जीव टार्डिग्रेड्स पर भी रिसर्च कर रहे हैं कि वो अंतरिक्ष में कैसे जीवित रहते हैं और कैसे प्रजनन करते हैं. इस रिसर्च से आने वाला रिजल्ट से पता चलेगा कि इस छोटे जीव से सेल्स माइक्रोग्रैविटी में भी कैसे इतने मजबूत रहते हैं. ये पृथ्वी पर मेडिकल रिसर्च के लिए काम आ सकती है.

पोलैंड के सुआव पहनने वाले एक साउंड मॉनिटरिंग डिवाइस को टेस्ट कर रहे हैं, जो स्पेस स्टेशन में साउंड लेवल को ट्रैक करता है. ये टेक्नोलॉजी एस्ट्रोनॉट्स की हेल्थ में सुधार ला सकती है. ये भविष्य में नए तरह के स्पेसक्राफ्ट को डिजाइन करने में मदद कर सकती है.

हंगरी के टिबोर की बात करें तो वो एक डोसिमीटर का यूज़ करके रेडिएशन लेवल की निगरानी कर रहे हैं. इसके अलावा वह स्पेस में माइक्रोग्रीन्स यानी छोटे पौधे उगाने वाले प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे हैं. इससे अंतरिक्ष में खाने की स्थाई आपूर्ति की समस्या को हल करने में एक नई सफलता मिल सकती है.

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