पूर्वजों के प्रति सम्मान व श्रद्धा का प्रतीक श्राद्ध पक्ष आज से शुरू हो रहा है। पूर्णिमा व प्रतिपदा श्राद्ध आज ही होंगे। इसके बाद प्रत्येक दिन श्राद्ध का क्रम 14 अक्टूबर तक नित्य चलेगा। हालांकि, 10 अक्टूबर को तिथि क्षय है।
हिंदू धर्म में वैदिक परंपरा के अनुसार, अनेक रीति-रिवाज व व्रत-त्योहार हैं। इसी के तहत पितरों का श्राद्ध भी किया जाता है। प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है, लेकिन भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरे पखवाड़े में श्राद्ध कर्म करने का विधान है। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के इस पर्व को श्राद्ध कहते हैं।
हिंदू धर्म में भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक समय को पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है. जिसकी शुरुआत इस साल 10 सितंबर 2022 से होने जा रही है. पितृपक्ष इस साल 25 सितंबर 2022 तक रहेगा. इसमें प्रत्येक व्यक्ति आने घर-परिवार से जुड़े दिवंगत लोगों का श्राद्ध और तर्पण उनकी तिथि के अनुसार करता है, ताकि उसकी आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो सके.
अनुष्ठानों का विशेष समय
पितृ पक्ष का कुतुप मुहूर्त 29 सितंबर यानी आज दोपहर 11 बजकर 47 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा. साथ ही रौहिण मुहूर
आज दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से दोपहर 1 बजकर 23 मिनट तक रहेगा. अपराह्न काल आज दोपहर 1 बजकर 23 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 46 मिनट तक रहेगा.
पितृ पक्ष तर्पण विधि
प्रतिदिन सूर्योदय से पहले एक जूड़ी ले लें, और दक्षिणी मुखी होकर वह जूड़ी पीपल के वृक्ष के नीचे स्थापित करके, एक लोटे में थोड़ा गंगा जल, बाकी सादा जल भरकर लौटे में थोड़ा दूध, बूरा, काले तिल, जौ डालकर एक चम्मच से कुशा की जूडी पर 108 बार जल चढ़ाते रहें और प्रत्येक चम्मच जल पर यह मंत्र उच्चारण करते रहे।
पितृपक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में मान्यता है कि पूर्वजों की तीन पीढ़ियों की आत्माएं पितृलोक में निवास करती हैं। पितृलोक स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का स्थान माना जाता है। यह क्षेत्र मृत्यु के देवता यम द्वारा शासित है। मान्यता है कि जब अगली पीढ़ी का व्यक्ति मर जाता है, तो पहली पीढ़ी स्वर्ग में जाती है और भगवान के साथ मिल जाती है। इस प्रकार पितृलोक में केवल तीन पीढ़ियों को श्राद्ध संस्कार दिया जाता है, जिसमें यम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इन कार्यों से नाराज होते हैं पितर
श्राद्ध कर्म करने वाले सदस्य को इन दिनों बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए। श्राद्ध कर्म हमेशा दिन में करें।सूर्यास्त के बाद श्राद्ध करना अशुभ माना जाता है। इन दिनों में लौकी, खीरा, चना, जीरा और सरसों का साग नहीं खाना चाहिए। जानवरों या पक्षी को सताना या परेशान भी नहीं करना है।