उत्तरकाशी: उत्तरकाशी के सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में फंसे आठ राज्यों के 41 श्रमिकों को बचाने के लिए 11 दिन से चल रही जंग बुधवार मध्य रात्रि जीत के मुहाने से एक कदम पहले तक पहुंच गई, लेकिन मध्यरात्रि औगर मशीन में तकनीकी खामी आने से फिलहाल ड्रिलिंग का काम रुक गया है।
मशीन को ठीक करने के लिए दिल्ली से तकनीशियन को बुलाए गए हैं, जो वीरवार सुबह तक पहुंचेंगे। सुरंग में कैद श्रमिकों तक पहुंचने के लिए सिलक्यारा की तरफ से स्टील के पाइपों से बनाई जा रही लगभग 60 मीटर लंबी निकास सुरंग की 55 मीटर ड्रिलिंग रात 12 बजे तक पूरी कर ली गई थी, लेकिन इसके आगे सुरंग में कोई धातु या लोहे की राड आने से ड्रिलिंग बाधित हो गई।
260 से अधिक घंटे से चल रहा राहत एवं बचाव अभियान
एनडीआरएफ की टीम गैस कटर से अवरोध को हटाने का प्रयास कर रही है। रात पौने तीन बजे तक अवरोध को हटाने में सफलता नहीं मिल पाई थी। श्रमिकों तक पहुंचने के लिए अभी तीन से पांच मीटर ड्रिलिंग की जानी बाकी है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि 260 से अधिक घंटे से चल रहा राहत एवं बचाव अभियान गुरुवार दोपहर मंजिल तक पहुंच सकता है। इसके बाद ही श्रमिक खुली हवा में सांस ले पाएंगे।
41 श्रमिक सुरंग के भीतर ही फंस गए
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 50 किमी दूर यमुनोत्री राजमार्ग पर सिलक्यारा में चारधाम आलवेदर रोड परियोजना की निर्माणाधीन 4.5 किलोमीटर लंबी सुरंग में 12 नवंबर को दीपावली की सुबह करीब साढ़े पांच बजे भूस्खलन हुआ था। सुरंग के मुख्य द्वार से करीब 275 मीटर आगे मलबे के कारण लगभग 60 मीटर भाग पूरी तरह बाधित हो गया और उसके आगे काम कर रहे 41 श्रमिक सुरंग के भीतर ही फंस गए।
उसी दिन से श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की 12 से अधिक एजेंसियां राहत एवं बचाव कार्य में जुटी हैं। अभियान की सफलता के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की मदद भी ली जा रही है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अभियान की निगरानी कर रहे है।
रात 12 बजे तक 55 मीटर निकास सुरंग तैयार हो गई
बचाव अभियान उतार-चढ़ाव के कई दौर से गुजरा और इसके निर्णायक मोड़ तक पहुंचने की उम्मीद 10वें दिन मंगलवार को जगी, जब 17 नवंबर की दोपहर से बंद पड़ी औगर मशीन से आधी रात के बाद पौने एक बजे दोबारा ड्रिलिंग शुरू की जा सकी। इसके बाद सुरंग के अंदर ड्रिलिंग अनवरत जारी रही। बुधवार सुबह का सूरज भी उम्मीद की नई किरण लेकर आया और दिनभर औगर मशीन निर्बाध गति से निकास सुरंग बनाने के लिए ड्रिलिंग करती रही। रात 12 बजे तक 55 मीटर निकास सुरंग तैयार हो गई थी।
लेकिन, इसके बाद सुरंग में लोहे की राड या कोई धातु आने से ड्रिलिंग बाधित हो गई। यही नहीं इस बीच मशीन में तकनीकी खामी भी आ गई। चूंकि, यहां से श्रमिकों तक पहुंचने की दूरी तीन से पांच मीटर बची थी, ऐसे में एनडीआरएफ की टीम को निकास सुरंग के भीतर अवरोध को दूर करने के लिए भेजा गया। रात पौने तीन बजे तक एनडीआरएफ की टीम अवरोध को दूर करने के प्रयास में जुटी थी। मशीन ठीक करने के लिए दिल्ली से आने वाले तकनीशियनों का इंतजार किया जा रहा है। इसके बाद ही जिंदगी की जंग का आखिरी पड़ाव पार हो पाएगा।
40 बेड के अस्पताल में भर्ती कराने के लिए ले जाया जाएगा।
निकास सुरंग तैयार होने के बाद एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम सुरंग में दाखिल होकर एक-एक कर श्रमिकों को स्ट्रेचर ट्राली के माध्यम से बाहर लाएगी। श्रमिकों के बाहर आते ही सुरंग के मुहाने पर तैनात चिकित्सकों का दल सभी का परीक्षण करेगा। लंबे समय तक कृत्रिम आक्सीजन के सहारे जिंदगी की जंग लड़ने वाले श्रमिकों को किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े, इसके लिए उन्हें तत्काल एंबुलेंस से चिन्यालीसौड़ में तैयार किए गए 40 बेड के अस्पताल में भर्ती कराने के लिए ले जाया जाएगा।
एंबुलेंस बिना व्यवधान के चिन्यालीसौड़ पहुंच सकें, इसके लिए स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने सिलक्यारा से चिन्यालीसौड़ के करीब 32.5 किलोमीटर भाग पर ग्रीन कारीडोर की तैयारी कर रखी है। देर शाम से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उत्तरकाशी के मातली से बचाव अभियान पर नजर बनाए हुए हैं। जबकि, प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार व राज्य सरकार के विशेष कार्याधिकारी भाष्कर खुल्बे सुबह से ही सिलक्यारा में डटे हुए हैं।
45 एंबुलेंस और विशेषज्ञ चिकित्सकों का दल तैनात
श्रमिकों के जल्द सुरंग से बाहर आने की आशा के साथ स्वास्थ्य विभाग समेत विभिन्न एजेंसियां भी अलर्ट मोड पर हैं। श्रमिकों को सुरंग से बाहर लाने की जिम्मेदारी एनडीआरएफ को दी गई है। इसके लिए एनडीआरएफ के जवानों ने शाम को कई बार माक ड्रिल की। जैसे ही श्रमिक सुरंग से बाहर आएंगे, उनका तत्काल स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने सिलक्यारा में बनाए गए अस्थायी अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती कर दी है। साथ ही 45 एंबुलेंस भी समुचित चिकित्सा संसाधनों के साथ तैनात कर दी गई हैं। चिकित्सकों के परामर्श पर श्रमिकों को उनकी स्थिति के मुताबिक एम्स ऋषिकेश समेत अन्य अस्पतालों में भर्ती कराया जाएगा। एयर एंबुलेंस की व्यवस्था भी की गई है, जिसका उपयोग जरूरत पड़ने पर किया जाएगा।
नाश्ते में ब्रेड-दूध और लंच में भेजा दाल, रोटी, सब्जी व चावल
सिलक्यारा सुरंग में फंसे श्रमिकों को सोमवार रात से सालिड फूड व फल भी दिए जा रहे हैं। मंगलवार रात श्रमिकों को रोटी और मटर पनीर की सब्जी भेजी गई। बुधवार सुबह नाश्ते में ब्रेड, जैम और दूध दिया गया। दोपहर के खाने में श्रमिकों को आलू, बंदगोभी व मटर की मिक्स सब्जी, मूंग व अरहर की दाल, चावल और रोटी दी गई। यह भोजन 57 मीटर लंबे व छह इंच मोटे स्टील की पाइप के जरिये दिया जा रहा है। 20 नवंबर की रात से सुरंग में फंसे श्रमिकों के लिए यह पाइप लाइफ लाइन बना हुआ है और इससे लगातार श्रमिकों को भोजन भेजा जा रहा है। श्रमिकों के लिए चिकित्सकों की सलाह पर खाना तैयार किया जा रहा है। चिकित्सकों के मुताबिक श्रमिकों के लिए कम मिर्च मसाले वाला सुपाच्य भोजन भेजा जा रहा है।
गैस कटर का धुआं देख सुरंग में फंसे श्रमिक उत्साहित
निकास सुरंग की राह में आए अवरोध को एनडीआरएफ के जवान गैस कटर से हटाने का प्रयास कर रहे हैं। सुरंग में खाना पहुंचाकर लौटे कर्मियों ने बताया कि सुरंग में फंसे श्रमिकों को गैस कटर से निकलने वाले धुएं का पता चल रहा है। उन्हें श्रमिकों ने बताया कि मिट्टी से गैस कटर का धुआं निकल रहा है। इससे साफ हो गया है कि निकास सुरंग अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है। इसका पता चलने से अंदर फंसे श्रमिक भी उत्साहित हैं।