नई दिल्ली, 17 जून (आईएएनएस)। कुंडली के नव ग्रहों में से जिसे कलयुग का राजा माना गया है, वह राहु है। राहु और केतु को छाया ग्रह की संज्ञा दी गई है। ऐसे में राहु और केतु अगर किसी की कुंडली में उच्च स्थिति में हों, तो वह अप्रत्याशित सफलता और लाभ प्रदान करते हैं और जातक को राजयोग जैसा सुख प्राप्त होता है। वहीं, अगर राहु खराब स्थिति में हो, तो वह इच्छाओं, भ्रम, डर, छल आदि से जातक का जीवन बर्बाद कर देता है।
ऐसे में राहु को कलयुग का राजा माना गया है। क्योंकि कलयुग की प्रमुख विशेषताएं इच्छाओं, भ्रम, भौतिकवाद और छल की अधिकता है। इसके साथ ही इस युग में अराजकता, महत्वाकांक्षा और सांसारिक लाभ की खोज लोगों की प्राथमिकता है जो राहु के भी लक्षण हैं।
ऐसे में राहु की दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतरदशा के साथ ही कुंडली में खराब राहु के होने पर आदमी का जीवन कष्ट, भ्रम की स्थिति, स्वास्थ्य हानि, क्लेश, धन हानि, पारिवारिक सुख में कमी, संतान सुख में कमी, जिद्दी स्वभाव, करियर बुरी तरह डिस्टर्ब होना और अपनों से धोखा जैसी स्थिति पैदा करता है। ऐसे में इससे उबरने के लिए राहु की शांति का उपाय जरूरी है। वैसे राहु की अधिष्ठात्री देवी, जिसकी पूजा करने से हमें इन कष्टों से मुक्ति मिल सकती है, वह मां सरस्वती हैं। इसके अलावा राहु जनित कष्ट से मुक्ति के लिए भगवान शिव, भगवान गणेश, हनुमान जी और भगवान विष्णु की पूजा करना भी श्रेयकर माना जाता है।
वैसे शिव की पूजा से सभी ग्रहों की विपरीत दशाओं से मुक्ति पाई जा सकती है। ऐसे में भारत में राहु की पूजा के लिए कुछ गिने-चुने मंदिर हैं, जिसमें से एक मंदिर तो ऐसा है जिसे राहु मंदिर के नाम से ही जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने जब अमृत पान के बाद राक्षस स्वरभानु का सिर और धड़ सुदर्शन चक्र से काटकर अलग कर दिया, तो उसका सिर जिस स्थान पर गिरा, वहीं पर यह मंदिर स्थित है।
यह राहु मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के पौड़ी जिले के थलीसैंड ब्लॉक में पड़ने वाले पैठाणी गांव में स्थित है। वैसे इसे देश का इकलौता राहु मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में राहु की पूजा भगवान शिव के साथ होती है। इसके साथ ही इस मंदिर को इन्द्रेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि भगवान इंद्र ने राजपाठ छीन जाने के बाद यहां महादेव की कठोर तपस्या की थी और फिर से अपना राजपाठ पाया था। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि अगर यहां पर किसी वजह से राहु का पूजन बाधित किया जाता है, तो भगवान शिव उससे नाराज हो जाते हैं।
यह मंदिर दो नदियों के संगम पर स्थित है। इस मंदिर के पूर्वी और पश्चिमी भाग में नयार नदियों का संगम है। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों ने करवाया था। अपनी स्वर्गारोहण के दौरान राहु की दशा से मुक्ति के लिए इसी स्थान पर पांडवों ने राहु देव और शिव की आराधना की थी। इसके साथ ही यह भी प्रचलित है कि आदि शंकराचार्य जब हिमालय की यात्रा के दौरान इस स्थान पर पहुंचे, तो उन्हें महसूस हुआ कि इस स्थान पर राहु का प्रकोप है। जिसके बाद उन्होंने वहां पर एक मंदिर की स्थापना की। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ राहु की प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर की दीवारों पर राहु के कटे सिर के साथ-साथ भगवान विष्णु के सुदर्शन की कारीगरी भी की गई है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु द्वारा राहु का सिर काटे जाने के बाद यहां पत्थरों के नीचे राहु का सिर दबा हुआ है। वह स्थान मंदिर से नीचे 50 मीटर की दूरी पर स्थित है, जो दो नदियों के संगम पर है। जहां एक शिलाखंड है जिसे राहु शिला के नाम से जाना जाता है। यहां जिन दो नदियों का संगम है उसे उर्मिका और नवालिका (पश्चिमी नयार नदी ) के नाम से जानते हैं। यह नदी यहां संगम के बाद आगे बढ़कर स्योलीगाड़ नदी (रथवाहिनी नदी) के नाम से जानी जाती है।
वैसे उत्तर और दक्षिण भारत दोनों ही ओर राहु के मंदिर स्थित हैं। जहां लोग राहु दोष से मुक्ति के लिए पूजा कराते हैं। लेकिन उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पैठाणी गांव में स्थित इस मंदिर को राहु मंदिर के रूप में पूरी दुनिया में मान्यता मिली हुई है और इसका जिक्र स्कंदपुराण और राहु पुराण में भी पढ़ने को मिलता है।
इसके साथ राहु का एक मंदिर भारत के दक्षिण राज्य तमिलनाडु के कुंभकोणम के बाहरी इलाके में थिरुनागेश्वरम गांव में स्थित, थिरुनागेश्वरम मंदिर (जिसे राहु मंदिर के नाम से भी जाना जाता है), यह भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। यह मंदिर नौ ग्रहों- नवग्रह स्थलम, खासकर राहु से जुड़ा हुआ है। मंदिर में शिवलिंग स्थापित है, जिसे नागनाथर के रूप में पूजा जाता है, और भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती, जिन्हें पीरसूदी के रूप में यहां पूजा जाता है। माना जाता है कि चोल काल में इसका निर्माण हुआ था, इस मंदिर में चार विस्तृत गोपुरम हैं। यहां प्रमुख मंदिर नागनाथर (शिव), राहु और पीरसूदी अम्मन (पार्वती) के हैं। कुंभकोणम या कुंबकोनम भारत के तमिलनाडु राज्य के तंजावूर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह अपने मंदिरों, तालाबों और 12 साला कुंभ मेले के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर ब्रह्मा मंदिर भी है। कुंभकोणम उत्तर में कावेरी नदी और दक्षिण में अरसलार नदी के बीच बसा हुआ है।
वहीं दक्षिण भारत में राहु की पूजा के लिए एक और मंदिर प्रसिद्ध है। जहां राहु और केतु का दोष एक साथ मिटता है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश में स्थित है, जिसे श्री कालहस्ती मंदिर के नाम से प्रसिद्धि मिली है। यह राहु-केतु मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन, यहां केतु के साथ राहु की पूजा की जाती है।
बता दें कि आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के पास पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णमुखी नदी के तट के पास श्रीकालहस्ती मंदिर स्थित है। इस मंदिर में कई शिवलिंग स्थापित हैं। यहां स्थित जो शिवलिंग है उसे दक्षिण के पंचतत्व लिंगों में वायु तत्व लिंग माना जाता है। यानी इसकी पूजा के समय पूजारी भी यहां पर लिंग का स्पर्श नहीं कर सकते हैं। ऐसे में मूर्ति के पास स्थापित स्वर्ण पट्ट पर शिवलिंग के लिए फूल-माला इत्यादि चढ़ाई जाती है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां प्रभु कालहस्ती वर के दर्शन अर्जुन ने किए थे। यहां शिव लिंग की ऊंचाई लगभग 4 फीट है। यहां के बारे में मान्यता है कि यहां दर्शन और पूजन करने से राहु और केतु के सभी दोषों से मुक्ति मिल जाती है।
–आईएएनएस
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