उत्तराखंड के विभिन्न घाटों पर शुक्रवार सुबह से ही छठ पूजा के उल्लास और श्रद्धा की लहर दौड़ रही थी। हर कहीं छठ व्रतियों की जुबां पर एक ही गीत सुनाई दे रहा था, और घाटों पर धार्मिक नजारा देखते ही बन रहा था। श्रद्धालुओं ने उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर चार दिवसीय महापर्व का समापन किया।
पहाड़ से लेकर मैदान तक, उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में छठ पूजा की धूम थी। व्रतियों ने सूर्य देवता के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए उगते सूर्य को अर्घ्य दिया और सुख-समृद्धि की कामना की। यह दिन विशेष रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण था, जिन्होंने छठी मईया की पूजा की और सूर्य देवता की आरती की।
छठ पूजा के इस अंतिम दिन, घाटों पर छठी मईया और सूर्य देवता के जयकारों की गूंज सुनाई दे रही थी। व्रति श्रद्धा और आस्था के साथ इस महापर्व को समर्पित थे, और चारों ओर धार्मिक माहौल बना हुआ था। घाटों पर साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा गया था, और लोग एक साथ सामूहिक रूप से पूजा करते हुए परंपराओं को जीवित रखे हुए थे।
इस पूजा के दौरान, व्रतियों ने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए सूर्य देवता से आशीर्वाद लिया और परिवार में सुख, समृद्धि और शांति की कामना की। उत्तराखंड में छठ पूजा की यह धूमधाम एक बार फिर से यह साबित करती है कि यहां की सांस्कृतिक और धार्मिक आस्थाएं कितनी प्रगाढ़ हैं।
सभी ने मिलकर सूर्योदय की पूजा की और एक-दूसरे से छठ पूजा के पारंपरिक प्रसाद, ठेकुआ, का वितरण किया। ठेकुआ, जो छठ पूजा का विशेष प्रसाद है, व्रति अपने परिवार और दोस्तों के साथ बांटते हैं। यह प्रसाद खास तौर पर महिलाओं द्वारा तैयार किया जाता है और इसे बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ वितरित किया जाता है।
घाटों पर उत्सव जैसा माहौल था, जहां व्रति अपनी पूजा-अर्चना पूरी करने के बाद एक-दूसरे से आशीर्वाद लेते हुए खुशी और समृद्धि की कामना कर रहे थे। यह दृश्य यह दर्शाता था कि उत्तराखंड में छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में भी मनाया जाता है, जो आस्था, एकता और श्रद्धा को समर्पित है।