राज्य आंदोलन का प्रमुख सूत्र वाक्य “कोदा, झंगौरा, खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे” रहा। इस नारे को साकार करने के उद्देश्य से वर्ष 2000 में द्वारिका प्रसाद सेमवाल के नेतृत्व में गढ़भोज अभियान की शुरुआत की गई।
इस अभियान ने स्थानीय खाद्य संस्कृति को पुनर्जीवित करने और उत्तराखंड की पहचान को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गढ़भोज के माध्यम से न केवल स्थानीय व्यंजनों को बढ़ावा दिया गया, बल्कि यह आंदोलन भी स्थानीय समुदाय को एकजुट करने का माध्यम बना। इस पहल ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और उसके प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य किया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सात अक्टूबर को गढ़भोज दिवस मनाने के लिए एक वीडियो संदेश जारी किया है। इस संदेश में उन्होंने राज्य के सभी स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों, होटलों, रेस्टोरेंट्स, स्वैच्छिक संगठनों और स्वयं सहायता समूहों से इस विशेष दिन को मनाने की अपील की।
साथ ही, उन्होंने देश-विदेश में रहने वाले प्रवासियों और विभिन्न हिस्सों में खाद्य सेवा से जुड़े उत्तराखंडियों से भी इस दिन को उत्सव के रूप में मनाने का आह्वान किया। मुख्यमंत्री ने सभी से एकजुट होकर स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का जश्न मनाने की उम्मीद जताई है, ताकि गढ़भोज दिवस को सफल बनाया जा सके।
राज्य बनने के बाद, राज्य आंदोलन का प्रमुख सूत्र वाक्य “कोदा, झंगौरा, खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे” रहा। इस नारे को साकार करने के लिए द्वारिका प्रसाद सेमवाल के नेतृत्व में वर्ष 2000 में गढ़भोज अभियान की शुरुआत की गई।
इस अभियान ने उत्तराखंड के परंपरागत भोजन को न केवल थाली में शामिल किया, बल्कि इसे स्थानीय आर्थिकी का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने का काम भी किया। गढ़भोज ने उत्तराखंड की खाद्य संस्कृति को मुख्यधारा में लाने में योगदान दिया, जिससे स्थानीय उत्पादों और व्यंजनों को बढ़ावा मिला। इस पहल ने लोगों को अपने सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने और उसे संरक्षित करने का अवसर प्रदान किया।
गढ़भोज दिवस की शुरुआत और 2023 में इसका आयोजन
गढ़भोज दिवस की शुरुआत हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान, जाड़ी द्वारा 7 अक्टूबर को प्रति वर्ष मनाने के लिए की गई। वर्ष 2023 में, गढ़भोज दिवस का आयोजन उत्तराखंड और देश के सात अन्य राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी हुआ। इस विशेष दिन पर 15,000 स्थानों पर 20 लाख छात्रों और आम जनता ने भाग लिया।
इस वर्ष गढ़भोज दिवस का विषय “गढ़भोज से निरोगी काया” रखा गया है, जो स्थानीय व्यंजनों के स्वास्थ्य लाभों को उजागर करता है। यह पहल न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए है, बल्कि लोगों को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए भी प्रेरित करती है।