नई दिल्ली: आम तौर पर हम देखते हैं कि पेंशन व्यक्तियों को दी जाती है. लेकिन पिछले आठ वर्षों से एक गांव के नाम पर सहायता पेंशन दी जा रही है. यह मामला सोमवार को तेंलगना के महबूबाबाद जिले के नरसिंहुलपेट में प्रकाश में आया. इसके साथ ही खबर है कि गांव में अधिकारियों की मदद से कुछ अन्य सहायता पेंशन के वितरण में भी अनियमितता बरती जा रही है. 2018 में स्वीकृत सूची में पेंशनभोगी का नाम नरसिंहुलपेट, पिता का नाम- हच्या, उम्र 66 वर्ष है
गांव के नाम पर पेंशन
प्रतीकात्मक फोटो (ETV Bharat)
नरसिंहुलपेट (गांव का नाम) के नाम पर हर महीने 2016 रुपये की वृद्धावस्था पेंशन जमा की जा रही है. जबकि यह पेंशन पिछली सरकार द्वारा किए गए व्यापक परिवार सर्वेक्षण, आईडी नंबर 22101012442 के नाम पर स्वीकृत है, लेकिन इसे हर महीने कौन ले रहा है, यह मामला एक अबूझ रहस्य बन गया है. अधिकारी आठ साल तक पेंशन लेने के बाद अगले महीने फिर से पेंशन मंजूर करने के लिए प्रस्ताव भेज रहे हैं.
नरसिंहुलपेट में हर महीने कुल 776 लोगों को अलग-अलग प्रकार की पेंशन वितरित की जा रही है, जिसमें बुजुर्ग, विकलांग, विधवा और एकल महिलाएं शामिल हैं. हर महीने विकलांगों को 4016 रुपये और बुजुर्गों, विधवाओं और एकल महिलाओं को 2016 रुपये दिए जा रहे हैं. ये पेंशन डाकघर में बायोमेट्रिक्स के जरिए लाभार्थियों को दी जाती है. अगर लाभार्थियों के फिंगरप्रिंट सही नहीं मिले तो डाक विभाग के कर्मचारी ग्राम पंचायत सचिव या व्यवसायी के फिंगरप्रिंट का इस्तेमाल करके पैसे का भुगतान करते है.
मासिक स्वीकृत सूची से पता चलता है कि नरसिंहुलपेटा गांव में लगभग 20 मृतक, अन्य गांवों के 50 लोग और कुछ कर्मचारी भी पेंशन प्राप्त कर रहे हैं. एक अभियान चल रहा है कि वर्षों से देखरेख के अभाव में लाखों रुपये का सार्वजनिक पैसे बर्बाद हो रहा है.
ईटीवी भारत ने की बात
ईटीवी भारत ने जब नरसिंहुलपेट ग्राम पंचायत सचिव के वेंकटेश्वर से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि गांव के नाम पर किसी को पेंशन नहीं दी गई है और उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है. बाद में जब एमपीडीओ किन्नरा याकैया से इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा गया तो उन्होंने कहा कि पेंशन की मंजूरी में किसी तरह की अनियमितता की बात उनके संज्ञान में नहीं आई है. उन्होंने कहा कि गांव में पूरी जांच की जाएगी और जिला अधिकारियों के आदेशानुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी.