जन्माष्टमी को देखते हुए हजारों तीर्थयात्री श्री बदरीनाथ धाम पहुंच रहे हैं। इस अवसर पर बदरीनाथ धाम के रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरीश्री बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति उपाध्यक्ष किशोर पंवार मंदिर अधिकारी प्रभारी अधिकारी बदरीनाथ धाम राजेंद्र चौहान धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल वेदपाठी रविंद्र प्रसाद भट्ट सहित अधिकारी- कर्मचारी तीर्थपुरोहितगण व तीर्थयात्री मौजूद रहेंगे। इस खास मौके पर मंदिर को फूलों से सजाया गया है।
श्री बदरीनाथ धाम में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व से पूर्व श्री बदरीनाथ मंदिर को फूलों से सजाया गया है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर बदरीनाथ मंदिर में भजन कीर्तन संध्या का भी आयोजन किया जाएगा। श्री बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ ने बताया कि जन्माष्टमी हेतु मंदिर समिति ने व्यापक तैयारियां की है। श्री बदरीनाथ मंदिर को फूलों से सजाया गया है।
जन्माष्टमी को देखते हुए हजारों तीर्थयात्री श्री बदरीनाथ धाम पहुंच रहे हैं। इस अवसर पर बदरीनाथ धाम के रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी,श्री बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति उपाध्यक्ष किशोर पंवार, मंदिर अधिकारी, प्रभारी अधिकारी बदरीनाथ धाम राजेंद्र चौहान, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, वेदपाठी रविंद्र प्रसाद भट्ट सहित अधिकारी- कर्मचारी, तीर्थपुरोहितगण व तीर्थयात्री मौजूद रहेंगे।
जन्माष्टमी के पर्व पर पोखरी विकासखंड के नागनाथ मंदिर में लगेगा भव्य मेला । जिसको लेकर क्षेत्र के नागरिकों ने मंदिर में तैयारियां पूर्ण कर ली है। बताया कि यह मेला कल,आज से आयोजित होगा। पुराण के अनुसार नागनाथ नागवंशीय राजाओ की राजधानी होने के कारण इस क्षेत्र का नाम नागनाथ पड़ा।कहा जाता है कि इस क्षेत्र में पुष्कर नाग ने तपस्या की थी। इसलिए इस क्षेत्र के पर्वत का नाम पुष्कर पर्वत पड़ा है। इसी पर्वत की गोद में नागनाथ स्वामी का मंदिर स्थित है। बताया जाता है कि उन्नीसवीं सदी में मंदिर का निर्माण हुआ है।मंदिर में लक्ष्मी स्वरूप विष्णु की मूर्ति और नाग छड़ियां विराजमान है।
जन्माष्टमी पर विराजमान होती है मूर्ति
मंदिर के पुजारी जानकी प्रसाद सती बताते है, कि चोरी के भय से मूर्ति को वे घर में रखते है, और जन्माष्टमी के पर्व पर मंदिर में विराजमान करते है। साथ ही नाग की मूल प्रतिमा (नाग छड़ी) को जन्माष्टमी की सुबह ढोल नगाड़ो के साथ संपूर्ण ग्रामवासी नंगे पांव मंदिर में विराजमान कर दिनभर भजन कीर्तन संध्या का आयोजन किया जाता है। व पर्व के समापन के बाद नागछड़ी को गांव में वापस ले जाकर पूजा अर्चना की जाती है।