धीरज सजवाण, देहरादून: साल 1999 में भारत-पाक के बीच हुए कारगिल युद्ध में कई जांबाज वीर जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था. कई जवानों ने अपनी शहादत भी दी, लेकिन भारतीय सेना के जाबांजों ने घुसपैठियों को खदेड़ा और दोबारे अपनी चौकियों को कब्जा किया. इस युद्ध में उत्तराखंड के दो जवान ऐसे भी थे. जो खुद घायल हुए, लेकिन डटे रहे. उन्होंने अपने 8 साथियों अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते देखा था, लेकिन वे पीछे नहीं हटे और लोहा लेते रहे. ईटीवी भारत आज उनके अदम्य साहस को उन्हीं की जुबानी आपको रूबरू करवाएगा.
अपने 8 साथियों को आंखों के सामने दम तोड़ते देखा: जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के पूर्व 9 पैरा कमांडो विक्रम सिंह खत्री और भगवती प्रसाद की. भगवती प्रसाद भारतीय सेना में साल 1994 में भर्ती हुए थे. जबकि, साल 1992 में विक्रम खत्री भर्ती हुए. जो आज भी कारगिल युद्ध की अपनी उस रात को याद करते हैं, जब उन्होंने अपने 8 साथियों को अपने सामने ही दम तोड़ते हुए देखा था.
रिटायर्ड पैरा कमांडो से खास बातचीत (वीडियो- ETV Bharat)
विक्रम खत्री के बाएं हाथ तो भगवती प्रसाद के पैर पर लगी गोलियां: उन्होंने एक साथ कमांडो की ट्रेनिंग ली थी. कारगिल युद्ध के दौरान भी एक साथ ऑपरेशन पर गए और एक साथ ही दोनों ने दुश्मन की गोली का सामना किया. पैरा कमांडो विक्रम सिंह का पूरा बायां हाथ दुश्मन के हमले में घायल हुआ तो वहीं भगवती प्रसाद के पैर पर दो गोलियां लगी. ऐसे में जानते हैं इन दोनों जांबाज कमांडो की कारगिल युद्ध का किस्सा.
ईटीवी भारत से साझा किया आंखों देखी: ईटीवी भारत से खास बातचीत में भगवती प्रसाद और विक्रम खत्री बताते हैं कि यह कोई 20 या 21 जून 1999 की बात होगी. जब वो दोनों जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में अपने कुछ रूटीन ऑपरेशन कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें उनकी यूनिट से कारगिल द्रास सेक्टर बुलाया गया.
कारगिल युद्ध में हुए घायल (फोटो- ETV Bharat)
उन्होंने बताया कि उस समय तक यह मालूम नहीं था कि उन्हें क्या करना है और कहां जाना है? लेकिन इस बात का एहसास हो गया था कि कारगिल में चल रहे पाकिस्तान के साथ युद्ध में उन्हें कोई महत्वपूर्ण टास्क दिया जा सकता है. पैरा कमांडो विक्रम खत्री बताते हैं कि 21 जून को कुपवाड़ा से रवाना होने के बाद वो द्रास सेक्टर पहुंचे.
जहां उन्हें खुद को माहौल में ढालने के लिए कुछ दिनों का वक्त दिया गया. फिर 29 जून को दिन के समय एक शॉर्ट ब्रीफिंग दी गई. जिसमें बताया गया कि उन्हें आज रात ही कारगिल द्रास सेक्टर की सैंडो टॉप हिल के पीछे मौजूद पाकिस्तान के मदर बेस पर अटैक कर उसे खत्म करना है. ताकि, पाकिस्तान सेना की रसद को तोड़ा जा सके.

कारगिल युद्ध में जिलेवार शहीद जवान (फोटो- ETV Bharat GFX)
शॉर्ट ब्रीफिंग के बाद पूरे 60 ट्रूप्स का दल 29 जून की रात 9 बजे निकले और अगले दिन सुबह मार्को नाला के पास बेस कैंप बनाया. लक्ष्य था कि सामने से हो रही भारी गोलाबारी के बावजूद भी अगले 2 दिन के भीतर सैंडो टॉप हिल के ऊपर चढ़ करना. फिर पहाड़ी के पीछे मौजूद दुश्मन के बेस कैंप पर टारगेट सेट करना. इसके बाद पीछे मौजूद बोफोर्स और भारतीय वायु सेना को कॉर्डिनेट के साथ महत्वपूर्ण जानकारी पहुंचाना. ताकि, दुश्मन के बेस कैंप को नेस्तनाबूद किया जा सके.

पैरा कमांडो की वर्दी में भगवती प्रसाद खंतवाल (फोटो- ETV Bharat)
रात के घुप अंधेरे में आगे बढ़ते थे जांबाज: इस तरह से कारगिल में सैंडो टॉप पहाड़ी पर चढ़ाई करने के लिए कमांडो भगवती प्रसाद और विक्रम खत्री के साथ पूरा दाल 30 जुलाई की रात को आगे बढ़ा. विक्रम खत्री बताते हैं कि उनके ऑपरेशन की खासियत ये थी कि वो केवल रात में मूवमेंट करते थे और दिन में किसी तरह की कोई भी हरकत नहीं करते थे. वो बताते हैं कि खाना-पीना, आगे बढ़ना या फिर किसी भी तरह की गतिविधि को अंजाम रात के घुप अंधेरे में की जाती थी.

सैनिकों को मिले पदक (फोटो- ETV Bharat GFX)
जैसे ही सुबह होती यानी उजाला होता तो उसके बाद एक पत्ता तक भी नहीं हिलाया जाता था. आंख भी चमकी या कुछ हरकत हुई तो सामने से शेलिंग गिरना तय था. इस तरह से पहले चरण में 29 की रात को द्रास सेक्टर से निकलकर ऑपरेशन के बेस कैंप मार्को नाला तक ट्रूप्स पहुंचा और 30 का पूरा दिन शांत रहने के बाद उसी रात तकरीबन 60 सैनिकों के साथ यह ग्रुप टुकड़ों-टुकड़ों में आगे बढ़ा.
रिटायर्ड कमांडो भगवती प्रसाद बताते हैं कि पूरी रात भारतीय कमांडो का यह दल आगे बढ़ता रहा. रास्ते में कई तरह की चुनौतियां आई. खड़ी बर्फीली चट्टान आई. जहां पर रस्सियों के सहारे डालकर आगे बढ़ता रहा. विक्रम खत्री बताते हैं कि उनका 10 लोगों की एक टुकड़ी थी, जो सबसे आगे थी और सैंडो टॉप पहाड़ी को सुबह 4 से पहले तकरीबन आधा पार कर लिया गया था. इसके बाद उजाला होने से पहले पूरे ग्रुप ने खाना पीने से लेकर तमाम काम कर लिया था.

रिटायर्ड पैरा कमांडो विक्रम सिंह खत्री (फोटो- ETV Bharat)
अचानक से तोप का गोला गिरा: उजाला होने के बाद इतना खतरा था कि किसी को अगर इमरजेंसी में बाथरूम भी करना हो तो वो नहीं कर सकता था. इस तरह से पूरा दिन गुजर ही रहा था कि शाम 3 बजे के बाद पाकिस्तान की तरफ से गोलीबारी तेज हो गई. हालांकि, पूरे ग्रुप को यकीन था कि उन्हें किसी ने नहीं देखा है और उन पर किसी तरह का खतरा नहीं है, लेकिन अचानक 4 बजे पूरे 10 जवानों के ग्रुप के ऊपर एक तोप का गोला गिरा और अंधेरा छा गया.
कमांडो विक्रम बताते हैं कि उन्हें समझ नहीं आया कि आखिर ऐसा कैसे हुआ? दुश्मन की तरफ से उनकी मौजूदगी का कैसे अंदाजा लगाया गया? उन्होंने बताया कि हो सकता है पाकिस्तान कहीं और गोलाबारी कर रहा हो या फिर कुछ शक होने की वजह से पाकिस्तान ने वहां पर गोलाबारी की, लेकिन इस हमले के बाद जब थोड़ा सा धुआं और काला अंधेरा छंटा तो उन्होंने देखा कि उनके ग्रुप के ज्यादातर लोग इस हमले के जद में आए हैं और बहुत नुकसान हुआ है.

पैरा कमांडो की वर्दी में विक्रम सिंह खत्री (फोटो- ETV Bharat)
10 में सिर्फ भगवती प्रसाद और विक्रम खत्री ही जिंदा बचे: इस हमले में 10 लोगों के ग्रुप में से केवल दो लोग जिंदा बचे थे और ये दोनों लोग भगवती प्रसाद और विक्रम खत्री थे. इस हमले में भगवती और विक्रम को भी चोटें आईं, लेकिन विक्रम की चोट इतनी गंभीर थी कि वो मौके पर ही बेहोश हो गए. भगवती बताते हैं कि जब दूसरे ग्रुप के लोग उनके पास आए और उन्होंने देखा कि ज्यादातर लोगों की जान जा चुकी है और केवल दो लोग जिंदा बचे हैं.
ऐसे में विक्रम को स्ट्रेचर पर नीचे लाया गया, क्योंकि वे बेहोश हो गए थे, लेकिन भगवती प्रसाद थोड़ा होश में थे और उन्हें जब उनके साथी उनके पास आए. उनसे पूछा कि क्या तुम चल सकते हो? जिस पर उन्होंने कहा कि मेरे पैर में गोलियां लगी है. फिर उन्होंने अपने साथी से कहा कि उन्हें कॉलर से पड़कर पहाड़ से नीचे की तरफ घसीट लो. इस तरह से काफी दूरी तक भगवती को उनके साथी ने कॉलर से पकड़कर पहाड़ी से नीचे की तरफ खींचा. जिससे उनके पीठ पर भी काफी जख्म आ गए थे.

रिटायर्ड पैरा कमांडो भगवती प्रसाद (फोटो- ETV Bharat)
इस तरह से 9 पैरा कमांडो का यह ग्रुप कारगिल युद्ध के दौरान सबसे आगे लड़ने के लिए गया था, लेकिन दुश्मन ने उनके तकरीबन 8 लोगों को शहीद कर दिया और 12 लोग घायल हो गए. इस घटना के बाद जिंदा बचे इन दोनों जवानों को पहले बेस कैंप मार्को नाला में फर्स्ट एड दिया गया. वहां से फिर श्रीनगर बेस अस्पताल लाया गया, लेकिन उनकी चोट इतनी गंभीर थी कि इन्हें चंडीगढ़ कमांडो हॉस्पिटल लाना पड़ा. जहां पर ये दोनों कमांडो एक साथ भर्ती हुए और उसके बाद दोनों एक साथ रिटायर हुए.
अब उपनल के जरिए सेवाएं दे रहे दोनों रिटायर्ड कमांडो: आज ये दोनों पूर्व कमांडो उत्तराखंड में उपनल के माध्यम से अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इन दोनों रिटायर्ड कमांडो के जहन में आज भी वो दिन और उसे रात की यादें जिंदा है. हालांकि, इन दोनों कमांडो के जहन में एक और दुख भी है कि आज जिस तरह से कारगिल के शहीदों को सम्मान दिया जाता है, उन्हें याद किया जाता है, उस तरह से उस लड़ाई में अपना महत्वपूर्ण बलिदान देने वाले घायल सिपाही या जो जिंदा बच कर आ गए हैं, उन्हें सम्मान नहीं मिल पाया है.

कारगिल युद्ध में घायल हुए थे विक्रम सिंह खत्री और भगवती प्रसाद (फोटो- ETV Bharat)
उत्तराखंड के 75 जवान हुए थे शहीद: बता दें कि कारगिल युद्ध साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया था. यह जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में नियंत्रण रेखा (LoC) के पास हुआ. मई 1999 में पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया. जिस पर भारत ने ऑपरेशन विजय शुरू किया.
इस युद्ध में भारत ने अधिकांश क्षेत्रों को वापस ले लिया. 26 जुलाई 1999 को भारत ने जीत की घोषणा की, जिसे अब कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस युद्ध भारत के करीब 527 सैनिक शहीद हुए थे. जबकि, पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ. उत्तराखंड की बात करें तो 75 जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी.
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