देहरादून: उत्तराखंड में भारतीय वन सेवा के अफसरों पर पिछले 5 साल कार्रवाई को लेकर बेहद खराब रहे हैं. पूरे देश में उत्तराखंड ही शायद ऐसा एक अकेला उदाहरण होगा, जहां पिछले 5 साल के भीतर 11 ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों की पेंशन मुश्किल में पड़ गई होगी. स्थिति यह रही कि राज्य में सेवानिवृत होने वाले कई अधिकारियों को विभिन्न जांच या विवादों से होकर गुजरना पड़ा है, जिसके चलते रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें पेंशन के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है.
पिछले 5 साल से पहले का कोई ऐसा एक अकेला मामला भी नहीं है. जिसमें भारतीय वन सेवा के किसी अधिकारी पर विवाद को लेकर मामला चल रहा हो. लेकिन 2021 के बाद सेवानिवृत होने वाले कई अधिकारी रिटायर्ड होने के बाद अब भी ऐसे प्रकरणों में या तो जांच को झेल रहे हैं या फिर कोर्ट के चक्कर काटने को मजबूर हैं.
राज्य में जिन भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत अधिकारियों को अंतरिम पेंशन से काम चलाना पड़ रहा है. उनमें PCCF हॉफ रहे राजीव भरतरी, CCF रहे मान सिंह, रिटायर्ड CF अशोक गुप्ता का नाम शामिल है. जिन पर जांच गतिमान होने के कारण इन्हें पेंशन को लेकर परेशानी झेलनी पड़ रही है. इसी तरह रिटायर्ड डीएफओ किशन चंद और अखिलेश तिवारी को भी जांच झेलनी पड़ रही है. CF पद से रिटायर्ड आईएफएस एच के सिंह भी इसी तरह जांच के चलते फंसे हुए हैं.
प्रदेश में कुछ अधिकारी ऐसे भी हैं जो अपने पद से ज्यादा का वेतनमान लेने के मामले में न्यायालय की शरण लिए हुए हैं और उन्हें फिलहाल शासन द्वारा 7600 ग्रेड पे के वेतनमान वाली पेंशन से संतोष करना पड़ रहा है. जबकि यह सेवानिवृत भारतीय वन सेवा के अधिकारी 8900 पर अपना दावा कर रहे हैं. इनमें डीएफओ स्तर के खुशाल सिंह रावत, वीके सिंह, इंदर सिंह नेगी, मुकेश कुमार, बलदेव सिंह का नाम शामिल है. इसके अलावा उपनिदेशक स्तर के सेवानिवृत अधिकारी शिवराम सिंह और रविकांत मिश्रा भी इसी विवाद में फिलहाल न्यायालय के फैसले का इंतजार कर रहे हैं.
जिन मामलों में जांच की जाती है उनमें कुछ समय लगता है. कई बार जिन अधिकारियों से जुड़ी यह जांच होती है, वह सेवानिवृत्ति भी हो जाते हैं, लेकिन जांच गतिमान होने के कारण उन्हें पेंशन को लेकर दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है. ऐसे में कोशिश की होती है कि जांच को जल्दी से जल्दी पूरा किया जाए, ताकि नतीजे तक पहुंचा जा सके.
सुबोध उनियाल, वन मंत्री
उत्तराखंड वन विभाग में एक अधिकारी ऐसे भी हैं जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया और 3 महीने का समय पूरा होने के बाद सेवाएं देनी बंद कर दी. आईएफएस मनोज चंद्रन भी ऐसे ही अधिकारियों में से एक हैं, जिनसे जुड़े एक प्रकरण की जांच चल रही है और मामला अधर में लटका हुआ है. फिलहाल मनोज चंद्रन के वेतन और पेंशन दोनों को लेकर ही सस्पेंस की स्थिति बनी हुई है.
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