रामनगर: आज 25 जुलाई को दुनिया के सबसे प्रसिद्ध वन्यजीव संरक्षक और शिकार विशेषज्ञ एडवर्ड जेम्स ‘जिम’ कॉर्बेट की 150वीं जयंती है. एडवर्ड जेम्स ‘जिम’ कॉर्बेट के नाम पर ही भारत में बाघों के संरक्षण के लिए जाने जाने वाले जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम रखा गया था. एडवर्ड जेम्स ने उत्तराखंड की पहाड़ियों से लेकर अफ्रीका तक अपनी अमिट छाप छोड़ी थी. एक समय आदमखोर बाघों और तेंदुओं के लिए खौफ का नाम बने जिम कॉर्बेट बाद में वन्यजीवों के रक्षक बन गए. जानिए कैसे?
शिकारी से बने रक्षक: एडवर्ड जेम्स ‘जिम’ कॉर्बेट ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा उत्तराखंड के कालाढूंगी क्षेत्र की सेवा में लगाया. इसी धरती पर उन्होंने वन्यजीव संरक्षण का बीज बोया. जिम कॉर्बेट ने अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में 33 आदमखोरों बाघ और 14 तेंदुए का शिकार किया, लेकिन समय के साथ-साथ उनके भीतर का शिकारी एक भावुक और संवेदनशील वन्यजीव संरक्षण में बदल गया.
जिम कॉर्बेट की 150वीं जयंती (ETV BHARAT)
वन्यजीवों का शिकार करते हुए एडवर्ड जेम्स ‘जिम’ कॉर्बेट ने महसूस किया कि बाघ और तेंदुए बीमार या फिर घायल होने पर ही आदमखोर बनते हैं. क्योंकि वो शिकार करने में असमर्थ हो जाते हैं. इसी समझदारी ने एडवर्ड जेम्स ‘जिम’ कॉर्बेट को वन्यजीवों का सच्चा मित्र बना दिया.
जिम कॉर्बेट का आशियाना छोटी हल्द्वानी में ही था. (ETV BHARAT)
वन्यजीवों के संरक्षण के लिए रखी थी कॉर्बेट की नींव: जिम कॉर्बेट के मन में बाघों, तेंदुओं और जंगलों के प्रति इतना प्रेम जागा कि उन्होंने इनके संरक्षण के लिए न केवल जागरूकता फैलाई, बल्कि कॉर्बेट नेशनल पार्क की नींव भी रखी गई, जिसे आज हम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के नाम से जानते है. बता दें कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व भारत की पहला राष्ट्रीय उघान था.

कौन थे जिम कॉर्बेट (ETV BHARAT)
एक कलाकार और शिल्पकार भी थे जिम: जिम कॉर्बेट केवल शिकारी या वन्यजीव प्रेमी ही नहीं थे, बल्कि वे एक कुशल फोटोग्राफर, लेखक, समाजसेवी, कारपेंटर और शिल्पकार भी थे. यह बात उनके शीतकालीन निवास छोटी हल्द्वानी कालाढूंगी स्थित उनके म्यूज़ियम को देखने के बाद स्वतः ही प्रमाणित हो जाती है. यहां उनके हाथों से बनाए गए कई फर्नीचर प्रदर्शित हैं, जिनमें बाघ के पंजों के आकार में बनी अद्भुत टेबल विशेष आकर्षण का केंद्र है.

जिम कॉर्बेट की 150वीं जयंती (ETV BHARAT)
वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल बताते है कि जिम कॉर्बेट एक बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे. लोग उन्हें सिर्फ शिकारी के रूप में याद करते हैं, लेकिन वह लेखक, फोटोग्राफर, सामाजिक कार्यकर्ता और हस्तशिल्प में निपुण कलाकार भी थे. छोटी हल्द्वानी स्थित उनका शीतकालीन आवास उनकी कला और सोच का अद्भुत उदाहरण है.

जिम कॉर्बेट में अपनी जीवन में करीब 33 बाघों का शिकार किया था. (ETV BHARAT)
म्यूजियम बना धरोहर: छोटी हल्द्वानी में स्थित उनका घर अब जिम कॉर्बेट म्यूज़ियम बन चुका है. इसमें उनकी जीवनशैली, रोजमर्रा के उपयोग में लाए जाने वाले औजार, जंगल में उपयोग किए जाने वाले उपकरण, फर्नीचर, फोटोग्राफ्स और पुस्तकों को संरक्षित किया गया है.

जिम कॉर्बेट म्यूजियम (ETV BHARAT)
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला के अनुसार यह म्यूजियम सिर्फ एक भवन नहीं बल्कि एक महान आत्मा की जीवंत कहानी है. कॉर्बेट ने जिस क्षेत्र में वन्यजीव संरक्षण के बीज बोए, वो जगह आज 260 से अधिक बाघों, 1200 हाथियों, तेंदुए, भालुओं, हिरण और सैकड़ों पक्षियों व जीव-जंतुओं का घर है.

एक था शिकारी (ETV BHARAT)
विदेश चले गए लेकिन विरासत यहीं रह गई: भारत की आजादी के बाद जिम कॉर्बेट देश छोड़कर केन्या चले गए और छोटी हल्द्वानी में स्थित अपना आवास अपने मित्र चिरंजी लाल साह को सौंप दिया था. साल 1965 में जब चौधरी चरण सिंह वन मंत्री बने, तो उन्होंने इस ऐतिहासिक घर को ₹20,000 में खरीदकर वन विभाग को सौंप दिया. तब से लेकर आज तक यह भवन वन विभाग के अधीन है और संग्रहालय के रूप में देश-दुनिया के पर्यटकों को जिम कॉर्बेट की जीवन यात्रा से परिचित करा रहा है.
कई पुस्तकें भी लिखी: जिम कॉर्बेट एक कुशल लेखक भी थे. उन्होंने मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं, जंगल लॉर और टेम्पल टाइगर जैसी छह पुस्तकें लिखीं, जिनमें उन्होंने अपने अनुभवों और वन्य जीवन से जुड़ी कहानियों को साझा किया. उनकी किताबें आज भी विश्व भर के पाठकों में लोकप्रिय हैं और प्रकृति प्रेमियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं.
150वीं जयंती पर विशेष आयोजन: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और स्थानीय प्रशासन द्वारा जिम कॉर्बेट की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में स्मृति व्याख्यान, वृक्षारोपण अभियान, फोटो प्रदर्शनी, वन्यजीव फिल्म स्क्रीनिंग और बच्चों के लिए शैक्षणिक गतिविधियों का आयोजन किया गया. इस आयोजन के लिए न सिर्फ जिम कॉर्बेट को श्रद्धांजलि दी गई है, बल्कि अगली पीढ़ियों को पर्यावरण और वन्यजीव के प्रति संवेदनशील बनाने की दिशा में एक सार्थक पहल है.
जिम कॉर्बेट एक नाम नहीं, बल्कि एक संवेदनशील सोच का प्रतीक हैं, जिन्होंने जंगल और इंसान के बीच सामंजस्य बैठाने की मिसाल पेश की. जिम कॉर्बेट की 150वीं जयंती हमें याद दिलाती है कि असली वीरता सिर्फ ताकत में नहीं, संवेदना और संरक्षण की भावना में भी होती है. उनका जीवन हमें यही सिखाता है कि अगर एक शिकारी भी अपने भीतर बदलाव ला सकता है, तो हम सब भी प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं.
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