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लिथियम बैटरी में आग का खतरा खत्म! वैज्ञानिकों ने बनाई 'फायर एक्सटिंग्विशर' वाली टेक्नोलॉजी


हैदराबाद: आजकल बैटरी का इस्तेमाल ज्यादातर हरेक इलेक्ट्रोनिक डिवाइस में किया जाता है, फिर चाहे वो मोबाइल हो, लैपटॉप हो इलेक्ट्रोनिक गाड़ियां हो या फिर सोलर सिस्टम ही क्यों ना हो. ज्यादतर इलेक्ट्रोनिक प्रोडक्ट्स में बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन क्या हो अगर बैटरी में खुद ही आग लग जाए. ऐसा कई बार हुआ भी है. इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) और स्मार्टफोन में विस्फोट होने की ख़बरें कई बार सामने आ चुकी हैं, जिनसे कई लोगों की जान भी गई है और कई लोग घायल भी हुए हैं. उदाहरण के तौर पर पिछले साल मध्यप्रदेश के रतलाम में चार्जिंग के दौरान एक ई-स्कूटर में आग लग गई थी, जिससे 11 साल की एक बच्ची की मौत हो गई थी. हालांकि, व्यापक रूप से उपलब्ध ईवी या मोबाइल में लिथियम मेटल नहीं लिथियम-आयन बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें आग लगने का खतरा लिथियम मेटल की तुलना में कम होता है.

दरअसल, लिथियम मेटल से बनी बैटरियों में आग पकड़ने का खतरा सबसे ज्यादा होता है, जिसके कारण डिवाइस में विस्फोट हो सकता है. अब वैज्ञानिकों ने बैटरी में आग लगने वाली इस समस्या का समाधान ढूंढ लिया है. वैज्ञानिकों ने बैटरी के अंदर ही एक छोटा सा “फायर एक्सटिंग्विशर” फिट किया है, जिससे बैटरी में आग ना पकड़ पाए. आइए हम आपको वैज्ञानिकों के इस नए रिसर्च के बारे में बारे में बताते हैं.

यह रिसर्च Proceedings of the National Academy of Sciences (PNAS) में पब्लिश की गई है. इसके मुख्य लेखक का नाम Ying Zhang है और यह रिसर्च चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस की इंस्टीट्यूट ऑफ कमेस्ट्री संस्थान में की गई है. इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने लिथियम मेटल से बनने वाली बैटरी में एक छोटा फायर एक्सटिंग्विशर लगाने का प्लान बनाया है, ताकि बैटरी में आग लगने वाले खतरे को कम या रोका जा सके.

लिथियम मेटल बैटरी क्या है?

लिथियम मेटल बैटरी (Lithium Metal Battery) एक तरह की रिचार्जेबल बैटरी होती है, जिसका एनोड एकदम प्योर लिथियम मेटल का बना बोता है और इसी कारण यह पुराने लिथियम-आयन बैटरी से अलग होता है. लिथियम मेटल का इस्तेमाल किए जाने से यह बैटरी हाई डेनसिटी प्रोवाइड करता है, क्योंकि लिथियम मेटल का वजन कम होता है और इसकी इलेक्ट्रोनिक कैपेसिटी ज्यादा होती है.

इस बैटरी की खास बात है कि यह लिथियम-आयन बैटरियों की तुलना में 10 गुना ज्यादा एनर्जी स्टोर कर सकती है. इसका साइज भी काफी छोटा है, लेकिन इसमें पावर काफी ज्यादा स्टोर होती है. इस कारण इस तरह की बैटरियों को इलेक्ट्रोनिक गाड़ियों, पोर्टेबल डिवाइसेज़ और मेडिकल प्रोडक्ट्स के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.

लिथियम मेटल और लिथियम आयन में अंतर

मुख्य बातें लिथियम मेटल बैटरी लिथियम-आयन बैटरी
अंदर क्या होता है? शुद्ध लिथियम धातु ग्रेफाइट जैसा कार्बन
पावर कितनी होती है? बहुत ज़्यादा – कम साइज में ज़्यादा एनर्जी ठीक-ठाक – रोज़मर्रा के कामों के लिए
कितने दिन चलती है? जल्दी खराब हो सकती है लंबे समय तक चलती है
आग लगने का खतरा? ज़्यादा – जल्दी गर्म होकर फट सकती है कम – ज़्यादा सुरक्षित
चार्ज कितनी जल्दी होती है? बहुत तेज़, लेकिन रिस्क के साथ संतुलित और सुरक्षित
कहाँ इस्तेमाल होती है? नई टेक्नोलॉजी – EVs, हाई-टेक डिवाइस मोबाइल, लैपटॉप, गाड़ियाँ
कीमत कैसी है? महंगी – बनाने में खर्च ज़्यादा सस्ती – आम लोगों के लिए सही
गर्मी सहने की ताकत कम – जल्दी गर्म हो जाती है ज़्यादा – गर्मी में भी कंट्रोल में रहती है
सुरक्षा के उपाय नई तकनीकें आ रही हैं (जैसे अंदर फायर बुझाने वाला सिस्टम) पहले से सुरक्षित डिज़ाइन मौजूद है

हालांकि, इन बैटरियों में हल्के लिथियम एनोड और निकेल-रिच कैथोड होते हैं, जैसा कि हमने आपको ऊपर भी बताया है. ये दोनों मिलकर ज्वलनशील गैसों का निर्माण करते हैं और ऐसे में अगर डिवाइस या किसी बैटरी युक्त इलेक्ट्रोनिक प्रोडक्ट का ज्यादा देर तक इस्तेमाल करने के कारण बैटरी गर्म हो जाए तो इन ज्वलनशील गैसों के कारण बैटरी में आग लग सकती है और फिर उस प्रोडक्ट में विस्फोट हो सकता है. यही लिथियम मेटल से बनी बैटरी की सबसे बड़ी समस्या है. वैज्ञानिक इस समस्या का समाधान काफी वक्त से ढूंढ रहे हैं और अब एक नई रिसर्च में एक समाधान सामने आया है.

वैज्ञानिकों का समाधान

चीन के वैज्ञानिक Ying Zhang और उनकी टीम ने अपनी प्रोटोटाइप लिथियम बैटरी के कैथोड (जहां पर ज्वलनशील गैस बनकर आग का कारण बनती है) में एक खास फ्लेम-रिटार्डेंट पॉलिमर लगाया. उसके बाद वैज्ञानिकों ने इस प्रोटोटाइप बैटरी और एक सामान्य लिथियम मेटल बैटरी पर सेम एक्सपेरीमेंट किया.

वैज्ञानिकों ने दोनों बैटरियों को धीरे-धीरे बढ़ते हुए तापमान में रखा, जिसकी शुरुआत 50°C से की गई. जब तापमान 100°C से ऊपर जाने लगा तो दोनों बैटरियां गर्म होने लगीं. उसके बाद वैज्ञानिकों ने देखा कि प्रोटोटाइप बैटरी का तापमान 100°C से ऊपर गया तो फ्लेम-रिटार्डेंट पॉलिमर टूटने लगा और फ्लेम-इनहिबिटिंग केमिकल्स यानी ऐसे केमिकल्स को छोड़ने लगा जो बैटरी के अंदर आग को पैदा करने वाली केमिकल रिएक्शन्स को रोक देते हैं. ये केमिकल्स बैटरी के एनोड पर ज्वलनशील गैसों को बनने से रोक देता है, जिससे आग लगने की संभावना काफी कम हो जाती है.

यह टेक्नोलॉजी क्यों जरूरी है?

अगर इस टेक्नोलॉजी को बड़े स्तर पर सफलता मिलती है तो फिर इससे इलेक्ट्रिक गाड़ियां और डिवाइसेज़ काफी ज्यादा सुरक्षित हो जाएंगे और लोगों के मन से उसमें आग लगने वाला डर कम या खत्म हो जाएगा.

लोग गैस या पेट्रोल-डीज़ल से चलने वाली गाड़ियों को छोड़कर इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर भरोसा करने लगेंगे. बैटरी कंपनियां इसे मौजूदा प्रोडक्शन सिस्टम में आसानी से जोड़ सकती हैं, जिससे इसका इस्तेमाल जल्दी शुरू हो सकता है और लिथियम मेटल बैटरी में लगने वाला आग का खतरा कम हो सकता है.

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