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वक्फ संपत्तियां ऑनलाइन करने को एक दिन की और मोहलत, ग्राउंड पर कई चुनौतियां, जमीयत पर भड़के शम्स


धीरज सजवाण

देहरादून: वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को शुक्रवार को ऑनलाइन करवाने का आखिरी दिन था. उत्तराखंड में शुक्रवार से पहले तक सिर्फ 24 प्रतिशत से थोड़ा ही ज्यादा वक्फ संपत्तियां उम्मीद पोर्टल पर रजिस्टर हुई थीं. 75 फीसदी से थोड़ा ज्यादा वक्फ संपत्तियां रजिस्टर नहीं हुई थीं. अब वक्फ संपत्तियों को उम्मीद पोर्टल पर रजिस्टर करवाने के लिए एक दिन का समय और दिया गया है. यानी आज शनिवार 6 दिसंबर तक वक्फ संपत्तियों को ऑनलाइन रजिस्टर करवा सकते हैं. इधर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन में ग्राउंड लेवल पर आ रही दिक्कतों का ईटीवी भारत की टीम ने जायजा लिया. पेश है देहरादून से हमारी ग्राउंड रिपोर्ट…

वक्फ संपत्ति उम्मीद पोर्टल पर ऑनलाइन करने को एक दिन और मिला: पूरे देश की तरह उत्तराखंड में भी वक्फ संपत्तियों को ऑनलाइन करने में बेहद उदासीन आंकड़े देखने को मिले हैं. प्रदेश में केवल एक चौथाई संपत्तियां ही ऑनलाइन रजिस्टर की जा सकी हैं. ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की इस स्लो स्पीड की क्या वजह है, यह जानने के लिए हमने ग्राउंड पर जाकर लोगों से बातचीत की. लोगों से जाना कि आखिर दिक्कत कहां पर आ रही है. वक्फ संपत्तियों को 6 महीने के लंबे समय के बावजूद भी आखिर ऑनलाइन क्यों नहीं किया गया.

वक्फ संपत्तियों को उम्मीद पोर्टल पर रजिस्टर करने की जद्दोजहद (Video- ETV Bharat)

धरातल की सच्चाई जानने के लिए हमने देहरादून की आजाद कॉलोनी स्थित एक ऐसे सेंटर का जायजा लिया, जहां पर कई मुस्लिम संगठन वक्फ संपत्तियों को ऑनलाइन करने की प्रक्रिया को अंजाम दे रहे हैं. वक्फ संपत्तियों को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाने में लोगों की मदद कर रहे मुस्तकीम ने हमें बताया कि-

वक्फ संपत्तियों को ऑनलाइन करने के लिए लॉन्च हुए उम्मीद पोर्टल में तकनीकी समस्याएं चल रही हैं. पिछले 10 दिन का अगर डाटा कलेक्ट किया जाए, तो वेबसाइट का सर्वर बहुत स्लो चल रहा है. हमारे द्वारा अपनी और अपने आसपास के सभी वक्फ यूजर्स की प्रॉपर्टी को ऑनलाइन करवाने में मदद की जा रही है. हमारे द्वारा अब तक 100 से ज्यादा वक्फ संपत्तियों को ऑनलाइन रजिस्टर करवाया जा चुका है.
-मुस्तकीम, वक्फ संपत्ति को उम्मीद पोर्टल पर रजिस्टर कर रहा शख्स-

मुस्तकीम ने बताया कि केवल उनकी आजाद कॉलोनी ही नहीं, बल्कि उनके पास देहरादून, हरिद्वार और पहाड़ों से भी लोग अपने डॉक्यूमेंट भेज रहे हैं. उनको भी वह लगातार ऑनलाइन कर रहे हैं.

देहरादून शहर के बीच करोड़ों की वक्फ भूमि, अब ऑनलाइन होगी दर्ज: देहरादून पलटन बाजार के बीच में 1 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की वक्फ संपत्ति के मुतवल्ली मोहम्मद मुदस्सिर ने बताया कि-

वक्फ बोर्ड के पास सारे रिकार्ड मौजूद हैं. इसके बावजूद दोबारा से यह पूरी एक्सरसाइज करवाई जा रही है. हालांकि यह सारा डाटा ऑफलाइन है. कई बार इस ऑफलाइन डाटा से छेड़खानी की बात भी सामने आई है. इस पर मुदस्सिर का कहना है कि यह वक्फ बोर्ड की जिम्मेदारी है कि वह सही उत्तर को खुद ही ऑनलाइन रजिस्टर करे और उसको क्रॉस चेक भी करे. मुतवल्ली को कहा जाता है कि इस काम को कीजिए. इसके लिए मुतवल्ली को कोई तनख्वाह नहीं मिल रही है.
-मोहम्मद मुदस्सिर, वक्फ संपत्ति के मुतवल्ली-

मुदस्सिर ने वक्फ संपत्ति के सरकारी उम्मीद पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन की पूरी प्रक्रिया को सही बताया. उन्होंने कहा कि-

निश्चित तौर से पारदर्शिता होनी चाहिए और जमीनों का खुर्द-बुर्द नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया का बहिष्कार करना गलत है. भले ही लोगों को थोड़ा सा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन ऑनलाइन हो जाने के बाद इन पर निगरानी रहेगी. इन सब संपत्तियों पर छेड़खानी कम होगी. साथ ही जिन लोगों द्वारा पहले वक्फ की जमीनों का दुरुपयोग किया गया, उनका भी पर्दाफाश होगा. उन्होंने कहा कि उनकी वक्फ जमीन देहरादून शहर के बिल्कुल बीचों-बीच है, जिसकी कीमत 1 करोड़ से ज्यादा है. यदि इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है, तो निश्चित तौर से अतिक्रमणकारियों और भू माफिया की नजर बनी रहती है.
-मोहम्मद मुदस्सिर, वक्फ संपत्ति के मुतवल्ली-

यूपीए सरकार ने भी 2009 में बनाया था पोर्टल: इसी तरह से मुस्लिम संगठन जमीअत उलेमा-ए-हिंद के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य और प्रदेश मीडिया प्रभारी मोहम्मद शाह नज़र कहते हैं कि-

जिस तरह से इस बार उम्मीद पोर्टल लाया गया है, इसी तरह से 2009 में यूपीए सरकार द्वारा भी वामसी पोर्टल लॉन्च किया गया था. उसमें भी इसी तरह से देशभर की वक्फ संपत्तियों को रजिस्टर किया गया था. इस पोर्टल के लिए भारत सरकार ने कई आईटी एक्सपर्ट हायर किए थे. उनको राज्यों में भेजा गया था और जो भी वक्फ की संपत्तियां देश भर में हैं, उनकी सैटेलाइट से मैपिंग कर साइट पर अपलोड करने को कहा गया था. यह 2011 से स्टार्ट हुआ और 2017 तक चला. इस दौरान उत्तराखंड की भी एक चौथाई से ज्यादा वक्फ संपत्तियां इस पोर्टल पर अपलोड की गईं.
-मोहम्मद नजर शाह, मीडिया प्रभारी, जमीअत उलेमा-ए-हिंद-

2017 के बाद केंद्र सरकार ने इस पोर्टल को निष्क्रिय कर दिया, क्योंकि यह आउटसोर्स एजेंसी द्वारा तैयार किया गया था. अब दोबारा से 2025 में वक्फ बिल में संशोधन करके उम्मीद पोर्टल लॉन्च किया गया है. नए संशोधन में यह प्रावधान आया कि इस पुराने पोर्टल में मौजूद डाटा को जीरो माना गया.

शुरुआत में कानूनी कारणों की वजह से हुआ था विरोध- जमीअत उलेमा-ए-हिंद: जमीअत उलेमा-ए-हिंद के प्रदेश मीडिया प्रभारी मोहम्मद शाह नज़र ने बताया कि उनके संगठन द्वारा देहरादून, रुड़की और हरिद्वार में संपत्तियों को ऑनलाइन करने के लिए कैंप लगाए गए हैं. रोजाना यहां संपत्तियों को ऑनलाइन करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा है. उनके संगठन द्वारा शुरुआत में किए गए इस प्रक्रिया के बहिष्कार को लेकर भी हमने सवाल किया. इस पर उन्होंने जवाब दिया कि-

जब यह उम्मीद पोर्टल लॉन्च किया गया था, उस वक्त मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीअत उलेमा-ए-हिंद, वक्फ संशोधन बिल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे थे और उम्मीद पोर्टल भी इसका एक हिस्सा है. उन्होंने कहा कि जब पूरा संगठन इस एक्ट के विरोध में ही सुप्रीम कोर्ट में गया था और कोर्ट ने उनके द्वारा बताए गए बिंदुओं को एक्ट में जोड़ा तो उसके बाद संगठन ने उम्मीद पोर्टल पर अपना समर्थन दिया. इस वजह से शुरुआती दौर में संगठन इसके पक्ष में नहीं था, लेकिन आज सभी संगठन एकजुट होकर वक्फ बोर्ड की मदद कर रहे हैं.
-मोहम्मद नजर शाह, मीडिया प्रभारी, जमीअत उलेमा-ए-हिंद-

वक्फ ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सीमा बढ़ाने की मांग: जमीअत उलेमा-ए-हिंद के प्रदेश मीडिया प्रभारी मोहम्मद शाह नज़र का यह भी कहना है कि जिस तरह उत्तराखंड या पूरे देश की वक्फ संपत्तियों का एक बड़ा हिस्सा जो अभी ऑनलाइन रजिस्टर्ड नहीं हुआ है, इसे देखते हुए लगातार वह केंद्र सरकार और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री से मांग कर रहे हैं कि इसका समय बढ़ाना चाहिए. हालांकि अभी समय एक दिन बढ़ाया गया है.

इसके साथ-साथ उनका यह भी कहना है कि जिस तरह से संशोधित बिल के बाद ट्रिब्यूनल को कई अधिकार दिए गए हैं, लेकिन उत्तराखंड में अभी तक यह ट्रिब्यूनल गठित नहीं है. ऐसे में सरकार अगर वक्फ संपत्तियों को बचाना चाहती है तो उम्मीद पोर्टल का समय बढ़ाना चाहिए और जल्द से जल्द उत्तराखंड में ट्रिब्यूनल का गठन होना चाहिए.

ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन एक दिन बढ़ा, और अधिक समय की मांग: उत्तराखंड वक्फ बोर्ड अध्यक्ष शादाब शम्स पहले भी इस बात को कह चुके हैं कि संपत्तियों का ऑनलाइन ना होना, उनके लिए भी एक चिंता का विषय है. इसके लिए वह पूरी तरह से उन मुस्लिम संगठनों को जिम्मेदार बता रहे हैं जिनके द्वारा शुरू में उम्मीद पोर्टल का विरोध किया गया था. इसके अलावा उन्होंने कहा है कि-

जब 6 महीने का समय दिया गया था, तब तमाम मुस्लिम और राजनीतिक संगठन शुरू में इस प्रक्रिया को रोकने और व्यवधान पहुंचाने में लगे थे. उसके बाद आखिरी एक से डेढ़ महीने में यदि हम चाहें कि सारी संपत्तियां ऑनलाइन हो जाएं, तो यह कैसे संभव है. हमारे द्वारा केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरण रिजिजू से अनुरोध किया गया है कि वह उम्मीद पोर्टल के समय को बढ़ा दें. ताकि सभी संपत्तियां ऑनलाइन रजिस्टर्ड हो पाएं. यदि समय बढ़ता है, तो यह भी साफ हो जाएगा कि कौन लोग वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर नजर गड़ाए बैठे हैं. कौन लोग ईमानदारी से अपनी संपत्तियां ऑनलाइन रजिस्टर करना चाहते हैं. अभी फिलहाल एक दिन का समय जो 5 दिसंबर तक का था उसे 6 दिसंबर तक किया गया है. हमारी मांग है कि इसे और अधिक बढ़ाया जाए.
-शादाब शम्स, चेयरमैन, उत्तराखंड वक्फ बोर्ड-

जल्द गठित होगा उत्तराखंड में वक्फ ट्रिब्यूनल: वहीं इसके अलावा उत्तराखंड वक्फ बोर्ड अध्यक्ष शादाब शम्स का कहना है कि वक्फ बोर्ड संपत्तियां ऑनलाइन दर्ज करने का दूसरा विकल्प ट्रिब्यूनल के माध्यम से है. हालांकि उत्तराखंड में ट्रिब्यूनल बना हुआ है, लेकिन उसके अधिकारी नियुक्त होने हैं.

उन्होंने कहा कि जल्द ही यह अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे और ट्रिब्यूनल अपनी प्रक्रियाएं शुरू करेगा. निश्चित तौर से ट्रिब्यूनल भी एक माध्यम है जिसके माध्यम से संपत्तियों को ऑनलाइन दर्ज किया जाए. वहीं इसके अलावा उन्होंने यह भी जानकारी दी कि पहले उनकी यह कोशिश रहेगी कि केंद्र सरकार से अनुरोध करके उम्मीद पोर्टल का समय बढ़ाया जाए.
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