देहरादून, धीरज सजवाण: बीते कुछ दिनों पहले यूएसडीएमए के विशेषज्ञ दल को आपदा प्रबंधन सीखने के लिए हिमाचल भेजे जाने की खबर आई. इसमें बताया गया कि विशेषज्ञ दल हिमाचल प्रदेश में किस प्रकार आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में कार्य कर रहा है? स्थितियों से कैसे निपटा जा रहा है? इन बातों को जानने और समझने की आवश्यकता है. अब इस टूर पर सवाल खड़े होने लगे हैं. जानकारों का मानना है कि उत्तराखंड आपदा प्रबंधन के मामले में हिमाचल से काफी आगे है. उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्तर के कई बड़े संस्थान हैं. जिनका इस्तेमाल उत्तराखंड आपदा के समय करता है.
उत्तराखंड आपदा प्रबंधन के हिमाचल टूर पर सवाल: हाल ही में उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी यानी राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने हिमाचल स्टडी टूर के लिए एक विशेषज्ञ दल भेजने की बात कही. जिस पर विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड के पास हिमाचल से बेहतर अनुभव, बेहतर संसाधन और बेहतर तकनीक है. जानकारों का मानना है कि उत्तराखंड से हिमाचल जाने वाला स्टडी टूर केवल हिमाचल के आपदा प्रबंधन के कार्य में बाधा डालने के अलावा कुछ नहीं करेगा. जानकारों का यह भी मानना है कि कुछ भी सीखना एक अच्छी कार्यप्रणाली का हिस्सा होता है. यदि उत्तराखंड को कुछ सीखना है तो अपने से बेहतर राज्यों से सीखना चाहिए. हिमाचल से उत्तराखंड को कुछ भी नया सीखने को नहीं मिलेगा. इसी के चलते अब हिमाचल और उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन की तुलना की जाने लगी है.
उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग (ETV BHARAT)
सालाना आपदा प्रबंधन बजट में उत्तराखंड आगे, केंद्र पर निर्भर हिमाचल: हिमाचल के आपदा प्रबंधन बजट की बात करें तो वर्ष 2024‑25 के राज्य बजट में आपदा प्रबंधन के लिए कोई अलग से राज्य-स्तरीय आवंटन नहीं था. पिछले साल बाढ़ और लैंडस्लाइड से हुए नुकसान को कवर करने के लिए किसी प्रत्यक्ष बजट का प्रावधान नहीं किया गया था. आपदा प्रबंधन में हिमाचल केंद्र की सहायता पर निर्भर है. दिसंबर 2023 में NDRF से हिमाचल को ₹633.73 करोड़ स्वीकृत हुये. जून 2025 में एक उच्च स्तरीय समिति ने ₹2,006.40 करोड़ की अतिरिक्त मंज़ूरी हिमाचल को दी. जिसमें से ₹1,504.80 करोड़ NDRF से और शेष Recovery/Reconstruction में दी गई. इस तरह हिमाचल को केंद्र से कुल ₹2,640 करोड़ की मदद मिली.
वहीं, उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन बजट की बात करें तो वित्त वर्ष 2024‑25 के राज्य बजट में कुल ₹89,230 करोड़ आवंटन शामिल किया गया. जिसमें “आपदा प्रबंधन” को भी प्रमुखता से रखा गया. यह “कुल बजट का अंश” था. राज्य सरकार ने आपदा प्रबंधन पर अलग से फोकस कर के इसके लिए अलग से बजट जारी किया. स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (SDRF), फायर और इमरजेंसी सेवा की विभाग के तहत भी संरचनात्मक तैयारी की जाती है. केंद्रीय सहायता की बात करें तो राष्ट्रीय लैंडस्लाइड जोखिम न्यूनीकरण परियोजना में उत्तराखंड को ₹139 करोड़ स्वीकृत हुये. जोशीमठ स्थिति और लैंडस्लाइड्स/लैंडसबर्स्ट के लिए ₹1,658.17 करोड़ केंद्रीय सहायता स्वीकृत हुई.
कुल मिलाकर उत्तराखंड ने राज्य द्वारा व्यापक बजट तैयार किया. केन्द्रीय सहायता के कई प्रमुख सौदे हासिल किये. जिनमें जोशीमठ लैंडस्लाइड्स के लिए ₹1,658 करोड़ और ₹139 करोड़ लैंडस्लाइड Mitigation Project हेतु शामिल है, जबकि हिमाचल ज्यादातर केंद्रीय सहायता के भरोसे रहा है. उत्तराखंड ने राज्य-स्तरीय बजट में डिज़ास्टर मैनेजमेंट को स्पष्ट रूप से शामिल कर योजनाएँ मजबूत करने की दिशा में कार्य किया है.
उत्तराखंड में कई केन्द्रीय संस्थान, हिमाचल में नहीं: केवल सालाना बजट ही नहीं बल्कि उत्तराखंड और हिमाचल के आपदा प्रबंधन ने रिसर्च एंड डेवलपमेंट में भी एक बड़ा अंतर है. उत्तराखंड में मौजूद हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल सेंट्रल यूनिवर्सिटी में जियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्तर के बड़े संस्थान मौजूद हैं. जिनका उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है.
एमपीएस बिष्ट के अनुसार पूरे हिमालय के भूगोल पर शोध करने वाला नंबर एक संस्था वाडिया इंस्टिट्यूट देहरादून में है. इसरो का रिमोट सेंसिंग इंस्टिट्यूट देहरादून में है. पूरे देश में भवन निर्माण को लेकर शोध करने वाला संस्थान CBRI रुड़की उत्तराखंड में मौजूद है. वन और वन्य जीवों पर अध्यन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर के संस्थान FRI और वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया भी देहरादून में है.हिमाचल में ऐसा कोई शोध संस्थान नहीं है जिससे उत्तराखंड को आपदा प्रबंधन के बारे में कुछ सीखने को मिलेगा. उत्तराखंड में कई ऐसे बड़े शोधकर्ता, वैज्ञानिक और विशेषज्ञ हैं. इन सभी की स्टडी का लोहा दुनिया मानती है.
तकनीक के मामले में भी आगे उत्तराखंड: उत्तराखंड आपदा प्रबंधन में रहे डॉ. पीयूष रौतेला बताते हैं कि उत्तराखंड आपदा प्रबंधन ने साल 213 में आयी केदारनाथ आपदा के बाद अपने आप को रिफॉर्म किया है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा तकनीक के मामले में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन ने कई नए आयाम हासिल किये हैं. उन्होंने कहा उत्तराखंड के पास डिजास्टर मैनेजमेंट के लिए डिसिजन सपोर्ट सिस्टम (DSS) प्रणाली मौजूद है. यह आपदा के समय त्वरित कार्रवाई के लिए एक आधुनिक प्रणाली है. इसके अलावा उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन ने रिस्क असेसमेंट में काफ़ी ज़्यादा काम किया है. इस वक़्त उत्तराखंड आपदा प्रबंधन अपने सभी बेसिक लेबल को पार कर उच्चतम स्तर पर अर्ली वार्निंग पर काम कर रहा है. यह आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में आधुनिक स्तर है. इसके अलावा पूरे उत्तर भारत में केवल उत्तराखंड आपदा प्रबंधन के पास अपना एक ऐसा विशेष इमरजेंसी सेंटर में मौजूद है जो बड़े से बड़े भूकंप को भी झेल सकता है.
सवाल यह है कि यदि आप कहते हो कि अभी भी हम हिमाचल से पीछे हैं तो सवाल उठता है कि अब तक उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन में हुआ क्या है? इसके अलावा उन्होंने कहा हिमाचल में इस वक़्त आपदाएं आयी हुई हैं. सरकार पूरी तरह से राहत बचाव कार्यों में व्यस्त है. इस समय यदि उत्तराखंड का डेलिगेशन हिमाचल जाता है तो यह बिलकुल वैसा ही है जैसे आपके घर में आफत आयी हुई है, और ऊपर से चार मेहमान और आ गए. यदि आपको सीखने भी जाना है तो उसके लिए आपको सही समय का चयन करना चाहिए.
पीयूष रौतेला, उत्तराखंड आपदा प्रबंधन
उत्तराखंड के पास कई घटनाओं का अनुभव: वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट एनपीएस बिष्ट बताते हैं कि आपदा प्रबंधन में अनुभवों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है. आपदा प्रबंधन में अक्सर अपनी पुरानी आपदाओं , पुरानी घटनाओं से सीखते हैं. उत्तराखंड के पास पुराने अनुभव की कमी नहीं है. उन्होंने उत्तराखंड में अलकनंदा और भागीरथी में आई कई पुरानी आपदाओं का उदाहरण दिया. उन्होंने बताया पिछली कई सदियों से उत्तराखंड ने कई बड़ी आपदाओं को देखा और उनसे सीखा भी है. अठारहवीं सेंचुरी से लेकर 19वीं सेंचुरी में भी उत्तराखंड में ऐसे कई बड़े घटनाक्रम देखने हैं जिन्होंने उत्तराखंड को आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में काफी कुछ सिखाया है. एमपीएस बिष्ट ने कहा उत्तराखंड और हिमाचल दोनों की भौगोलिक संरचनाओं में कोई ख़ास अंतर नहीं है. ये दोनों फ्रेजाइल हिमालय का हिस्सा हैं. दोनों जगह समान तरह की आपदाएं आती हैं. ऐसे में ज्यादा बेहतर होता कि उत्तराखंड का डेलिगेशन किसी ऐसे विषम परिस्थितियों वाले देश या फिर ऐसी जगह जाता जहां कुछ नया सीखने को मिलता.
सीखने में क्या बुराई, हम छोटे से भी बहुत कुछ सीखते हैं: वहीं, इस पूरे मामले पर उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग से भी सवाल किया गया . जिस पर आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा सीखने की ना तो कोई उम्र होती है और ना ही सीखने की कोई जगह होती है. उन्होंने कहा कई बार हम अपने से छोटी उम्र के व्यक्ति से भी काफी कुछ सीखते हैं. सीखने में बुराई क्या है? उन्होंने कहा उत्तराखंड आपदा प्रबंधन लगातार प्रदेश में आपदाओं में न्यूनीकरण को लेकर कटिबंध है. इसके लिए लगातार आपदा प्रबंधन नई तकनीक नए सिनेरियो और नई परिस्थितियों को लेकर तैयारयां पुख्ता की जा रही हैं.
हिमाचल प्रदेश के केंद्रीय संस्थान
- हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएचपी): केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 के तहत स्थापित, यह कांगड़ा जिले के धर्मशाला और देहरा में स्थित है. सीयूएचपी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा वित्त पोषित और विनियमित है.
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी: यह 2009 में स्थापित नवीनतम आईआईटी में से एक है. यह मंडी की कमांद घाटी में स्थित है.
- आईसीएआर-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीपीआरआई): यह संस्थान शिमला में स्थित है. यह आलू अनुसंधान पर केंद्रित है. यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है.
पढे़ं- आपदा प्रबंधन सीखने उत्तराखंड से हिमाचल जाएगा यूएसडीएमए का विशेषज्ञ दल, चमोली और देहरादून में हालत खराब –