रामनगर (कैलाश सुयाल): उत्तराखंड में स्थित कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और उसके आसपास के वन क्षेत्रों में बाघों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. इन दिनों जंगलों में कई बाघिनें अपने शावकों के साथ देखी जा रही हैं. ये वन विभाग के लिए एक बड़ी उपलब्धि होने के साथ-साथ एक गंभीर चुनौती भी बनती जा रही है.
कॉर्बेट और वन प्रभाग में बढ़े बाघ: कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व की बात करें तो यहां 260 से अधिक वयस्क बाघ मौजूद हैं. इनमें दो वर्ष से कम उम्र के शावकों को शामिल नहीं किया गया है. इसके अलावा पिछली ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन रिपोर्ट के अनुसार रामनगर वन प्रभाग में 67 और तराई पश्चिमी वन प्रभाग में 53 बाघों की उपस्थिति दर्ज की गई थी.
कॉर्बेट में बाघिनें शावकों के साथ दिख रही हैं (Video- ETV Bharat)
बाघ बढ़ने से ग्रामीण चिंतित: कॉर्बेट और उसके आसपास के इलाकों में बाघों की बढ़ती संख्या ने स्थानीय ग्रामीणों की चिंता बढ़ा दी है. कई बाघिनें शावकों के साथ देखी जा रही हैं, जिससे यह साफ हो रहा है कि इनकी संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है.
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में इन दिनों बाघिनों के साथ शावक दिख रहे हैं (Photo- ETV Bharat)
बाघ बढ़ने से बस्तियों की ओर आ रहे गुलदार: बाघों की बढ़ती संख्या एक ओर प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में भी इजाफा हो सकता है. खासतौर पर सर्दियों में ऐसे टकराव की घटनाएं अधिक होती हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि जंगल में बाघों का बढ़ता दबाव गुलदारों को इंसानी बस्तियों की ओर धकेल रहा है, जिससे इंसानों पर हमले बढ़ रहे हैं.

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ रही है (Photo- ETV Bharat)
इस मामले में ग्रामीण ललित उप्रेती कहते हैं कि-
अब तो बाघ दिन में भी गांव के आसपास घूमते दिख जाते हैं. बच्चों और मवेशियों को लेकर डर बना रहता है.
-ललित उप्रेती, ग्रामीण-
वन्य जीव प्रेमियों ने बाघ बढ़ने पर जताई खुशी: वहीं बाघों के शावकों के लगातार देखे जाने और संख्या में बढ़ोतरी को लेकर वन्यजीव प्रेमी बच्ची सिंह बिष्ट कहते हैं कि-
यह एक सकारात्मक संकेत है. यह बाघ संरक्षण के सफल प्रयासों का परिणाम है. चुनौतियां तब होती हैं, जब संरक्षण कमजोर हो. लेकिन अब जागरूकता बढ़ी है और बाघ संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं.
-बच्ची सिंह बिष्ट, वन्य जीव प्रेमी-
वहीं प्रकृति प्रेमी गणेश रावत कहते हैं यह प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता है. लेकिन अब समय है कि कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट पर भी ध्यान दिया जाए.

सीटीआर में 260 से ज्यादा बाघ हैं (Photo- ETV Bharat)
फेज-4 मॉनिटरिंग का कार्य अंतिम चरण में: कॉर्बेट में कई बाघिनें अपने शावकों के साथ देखी गई हैं. इन दिनों रिज़र्व में ‘फेज-4’ मॉनिटरिंग यानी क्षेत्रीय गणना का कार्य अंतिम चरण में है. इसके आंकड़े जल्द ही सार्वजनिक किए जाएंगे. इसके बाद सितंबर से ‘ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन 2026’ का कार्य शुरू होगा, जो देशभर में बाघों की वास्तविक स्थिति को दर्शाएगा.

सीटीआर में 2022 की गणना के अनुसार 260 से अधिक बाघ हैं (ETV Bharat Graphics)
हर 4 साल में होता है टाइगर एस्टिमेशन: ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन के तहत हर 4 साल में बाघों की की गिनती की जाती है. 2006 में की गई बाघों की गिनती के दौरान 164 बाघ पाए गए थे. 2010 में हुई एस्टिमेशन में 214 टाइगर पाए गए थे. 2014 में हुई गणना के दौरान बाघों की संख्या 215 बताई गई थी. 2018 की गणना में 231 बाघ पाए गए थे. 2022 में हुई गणना के दौरान 260 से ज्यादा बाघ कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में पाए गए.

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बढ़ रहे बाघ (ETV Bharat Graphics)
क्या कहते हैं पार्क वार्डन: हालांकि यह संख्या कॉर्बेट में बाघों के संरक्षण प्रयासों की सफलता को दर्शाती है, लेकिन इससे जुड़ी चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं. वन विभाग के सामने अब दोहरी जिम्मेदारी है बाघों की सुरक्षा के साथ-साथ इंसानों को उनसे होने वाले संभावित खतरे से भी बचाना. कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के पार्क वार्डन अमित ग्वासाकोटी ने बताया कि-

कॉर्बेट में बड़ी संख्या में पर्यटक बाघों को देखने आते हैं (Photo- ETV Bharat)
हम फेज-4 मॉनिटरिंग के माध्यम से बाघों की मूवमेंट और संख्या की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं. कोशिश यही है कि टकराव की स्थिति से पहले अलर्ट हो सकें. बाघों की संख्या व उनके शावकों का लगातार देखा जाना बहुत शुभ संकेत है.
-अमित ग्वासाकोटी, पार्क वार्डन, सीटीसी-
डीएफओ ने कहा पेट्रोलिंग बढ़ाई: वहीं मामले में तराई पश्चिमी वन प्रभाग के डीएफओ पीसी आर्या कहते हैं कि-
हम ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी बढ़ा रहे हैं. साथ ही बाघों की मूवमेंट को ट्रैक करने के लिए कैमरा ट्रैप और पेट्रोलिंग बढ़ाई जा रही है. कॉर्बेट में बाघों की संख्या बढ़ना निश्चित रूप से एक उपलब्धि है. इसके साथ ही वन विभाग और स्थानीय लोगों के लिए यह एक नई चुनौती भी है. अब ज़रूरत है इंसान और वन्यजीवों के बीच संतुलन बनाने की ताकि बाघ भी सुरक्षित रहें और इंसान भी.
-पीसी आर्या, डीएफओ, तराई पश्चिमी वन प्रभाग-
भारत सरकार द्वारा 1973 में शुरू किया गया प्रोजेक्ट टाइगर अब अपने असली मकसद को प्राप्त कर रहा है. इस प्रोजेक्ट से बाघों की संख्या हर साल बढ़ रही है, साथ ही पर्यावरण को भी फायदा पहुंच रहा है. उत्तराखंड इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है.
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