नई दिल्ली: भारत की स्पेस एजेंसी इसरो और अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा मिलकर एक खास मिशन पर काम कर रहे हैं, जिसका नाम NISAR मिशन है. इस मिशन के तहत अगले महीने यानी जुलाई में भारत से NISAR नाम का एक सैटेलाइट लॉन्च किया जाएगा, जिसका काम अंतरिक्ष में घूमकर पृथ्वी पर चल रही गतिविधियों पर नज़र रखना होगा. निसार, नासा और इसरो सिंथेटिक एपरचर रडार का एक शॉर्ट फॉर्म है. यह एक बेहद खास प्रॉजेक्ट है, जिसके लिए 1.5 बिलियन डॉलर की लागत लगाई गई है. इस मिशन के लिए पिछले दस सालों से काम किया जा रहा है और इसे भारत और अमेरिका के बीच अभी तक के सबसे बड़े वैज्ञानिक कॉलेबरेशन में से एक माना जा रहा है.
NISAR सैटेलाइट को जुलाई 2025 में आंध्र प्रदेश में स्थित श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर (SDSC) से लॉन्च किया जाएगा. यह सैटेलाइट पृथ्वी की डायनमिक सर्फेस को नापने के लिए दुनिया का सबसे एडवांस रडार इमेजिंग सिस्टम को लेकर अंतरिक्ष में जाएगा. इस सैटेलाइट की खासयित सिर्फ इसकी एडवांस टेक्नोलॉजी ही नहीं है, बल्कि यह ऊपर से पृथ्वी के लोगों को खेती, बाढ़ के क्षेत्रों और जंगल क्षेत्रों के साथ-साथ क्लाइमेट चेंज के बारे में कई बेहद जरूरी जानकारी शेयर करेगा.
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NISAR क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?
निसार सैटेलाइट का वजन लगभग तीन टन होगा, जो 12 मीटर के एक बड़े रडार एंटीना को लेकर अंतरिक्ष में जाएगा. यह रडार पृथ्वी को अत्याधिक सटीकता से स्कैन कर पाएगा. यह बादल, तूफान और बिना रोशनी के बावजूद भी पृथ्वी की सतह की हलचलों को पता कर पाएगा.
यह मौजूदा सैटेलाइट्स की तुलना में काफी एडवांस है, क्योंकि मौजूदा सैटेलाइट्स पृथ्वी पर देखने के लिए रिफलेक्टेड सनलाइट पर निर्भर करते हैं. इस कारण वो सैटेलाइट्स रात में, बादल में या बारिश के दौरान लगभग अंधे हो जाते हैं. ऐसे में NISAR सैटेलाइट काफी उपयोगी साबित हो सकता है, जो आजकल लगातार बढ़ती जा रही प्राकृतिक आपदाओं, तेजी से हो रहे क्लाइमेट चेंज के दौरान में सरकारों, किसानों और आपातकालीन सेवाओं में मदद कर सकेंगे. यह सैटेलाइट प्राकृतिक आपदा के दौरान अंतरिक्ष से सभी गतिविधियों पर पैनी नज़र रख सकता है, जिससे सरकारों और लोगों की काफी मदद हो सकती है.
इस मिशन से जुड़े इसरो के एक आधिकारी ने कहा , “NISAR सिर्फ एक सैटेलाइट नहीं है, बल्कि यह रियल-टाइम प्लेनट वॉचर है. यह हमें तब डेटा मुहैया करेगा, जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी, जैसे बाढ़, भूस्खलन, भूकंप के दौरान, यह कई जरूरी जानकारी दे सकता है. इसके अलावा किसान को अपने खेतों में पानी कब देना है, इसके बारे में भी निसार सैटेलाइट जानकारी दे सकता है.”
इस विषय पर ईटीवी भारत से बात करते हुए इसरो के एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि, निसार की एडवांस स्कैनिंग क्षमताएं नदियों और समुद्र द्वारा होने वाली भूमि क्षरण (land erosion) की निगरानी करने में मदद करेंगी. इस सैटेलाइट के डिजाइन में की खास बात है कि यह ऑनबोर्ड पराबोलॉइड एंटीना को भी अपनी एक्सिस पर घूमने में मदद करता है.
उन्होंने आगे कहा, “आर्कटिक और एंटार्कटिक बर्फ की सतहों की भी निगरानी करेगा. ग्लेशियरों और भूस्खलनों की जानकारी भी जमा करेगा. समुद्र में तेल लीक के स्थान और उनके फैलने का पता लगाएगा और उसे रोकने के लिए जरूरी उपाय करने में भी मदद करेगा. यह भूकंप और शायद सूनानी की निगरानी करने में भी मदद करेगा. यह सैटेलाइट कृर्षि पैटर्न में हो रहे बदलावों, वन्य जीवन की निगरानी करने समेत कई रूपों में मददगार होगा.”
इसरो के एक पूर्व अधिकारी ने आगे कहा कि, “यह काफी खुशी की बात है कि हम नासा और यूएसस के साथ काम कर रहे हैं, जो हमारे इरादों और क्षमताओं पर संदेह किया करते थे.”
पहलू | डिटेल्स |
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लॉन्च साइट | सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा, भारत |
लॉन्च तारीख | जुलाई 2025 (अनुमानित) |
वज़न | लगभग 2,800 किलोग्राम |
रेडार टेक्नोलॉजी | डुअल-फ्रीक्वेंसी SAR: L-बैंड (NASA द्वारा), S-बैंड (ISRO द्वारा) |
कवरेज | पूरी पृथ्वी – हर 12 दिन में एक बार दोहराव |
उपयोग/एप्लिकेशन | जलवायु मॉनिटरिंग, आपदा प्रबंधन, खेती, जंगलों की मैपिंग, |
शहरी विकास, ग्लेशियर ट्रैकिंग | |
डेटा पॉलिसी | ओपन और फ्री – दुनियाभर के यूज़र्स के लिए निशुल्क डेटा एक्सेस |
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