बेंगलुरु: भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के इनऑर्गेनिक और फिजिकल केमिस्ट्री डिपार्टमेंट (IPC) के रिसर्चर्स ने एक स्पेशल ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल डिज़ाइन किया है. यह स्पेशल ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल विज्ञान की दुनिया की दो बड़ी समस्या का समाधान एक साथ आता है. यह मॉलिक्यूल बिना किसी हैवी या टॉक्सिक के रूम टेम्परेचर पर लंबे समय तक ग्लो (फॉस्फोरेसेंस) करता है. इसकी खास बात है कि यह मॉलिक्यूल सर्कुलरली पोलराइज्ड ल्यूमिनेसेंस (CPL) यानी एक स्पेशल टाइप का पोलराइज्ड लाइट प्रोड्यूस करता है. सर्कुलरली पोलराइज्ड ल्यूमिनेसेंस लाइट की वेव्स को कॉर्कस्क्रू (पेंच) की तरह घुमाता है. यह फीचर इसे सेफ और इको-फ्रेंडली नेक्स्ट-जेनरेशन 3डी डिस्प्ले, एनक्रिप्टेड क्यूआर कोड, मेडिकल इमेजिंग, और एंटी-काउंटरफीटिंग लेबल के लिए यूजफुल बनाता है.
इसकी क्या जरूरत है?
आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि इसकी क्या जरूरत है. इसके कुछ मुख्य कारण हैं, जिन्हें आप नीचे पढ़ सकते हैं.
- मेटल के बिना: ज्यादातर ग्लो करने वाले मेटेरियल्स में बड़ी मुश्किल से मिलने वाले मेटल्स या नुकसानदायक मेटल्स का यूज़ किया जाता है, लेकिन यह नया मॉलिक्यूल बिना किसी मेटल के काम करता है. इससे कॉस्ट भी कम होती है और टॉक्सिसिटी यानी खतरा भी कम होता है.
- रूम टेम्परेचर पर ग्लो: आमतौर पर ऑर्गेनिक फॉस्फोर्स को लंबे वक्त तक ग्लो करने के लिए बहुत ठंडे तापमान (77 केल्विन, यानी लिक्विड नाइट्रोजन)की जरूरत होती है. IISc के वैज्ञानिकों द्वारा डिजाइन किए गए मॉलिक्यूल की खास बात है कि यह नॉर्मल टेम्परेचर पर भी ग्लो करता है. इस कारण इसका यूज़ सिक्योरिटी इंक, वेयरेबल सेंसर्स, लो-पावर ओएलईडी पिक्सल्स, और बायो-इमेजिंग में हो सकता है.
- बिल्ट-इन काइरैलिटी: इस मॉलिक्यूल की रिजिड और काइरल स्ट्रक्चर न सिर्फ लंबा ग्लो देता है, बल्कि सीपीएल भी प्रोड्यूस करता है. इससे डेटा को कई लेवल्स पर एनक्रिप्ट किया जा सकता है. यहां पर काइरल स्ट्रक्चर का मतलब है कि इसका स्ट्रक्चर किसी इंसान के दो लेफ्त-राइट हैंड्स यानी हाथों की तरह होता है.
मॉलिक्यूल कैसे काम करता है?
वैज्ञानिकों ने एक कार्बन पर आधारित एक ऐसा मॉलिक्यूल बनाया है, जिसमें बोरॉन और नाइट्रोजन (B–N) शामिल हैं. जिन मॉलिक्यूल में बोरॉन और नाइट्रोजन दोनों शामिल होते हैं, उन्हें एमिनोबोरेन (aminoborane) कहा जाता है. इसे बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने काफी सस्ते और आसानी से मिलने वाले केमिकल्स का इस्तेमाल किया है. इस खास ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल में दो नैफ्थलीन (naphthalene) बेस्ड एमिनोबोरेन यूनिट्स को एक सेंट्रल एक्सिस के चारों ओर जोड़कर एक काफी कठोर स्ट्रक्चर बनाया जाता है. इसके ज्यादा मजबूत होने के कारण मॉलिक्यूल को एनर्जी का नुकसान नहीं होता है, जिसके कारण वह काफी देर तक चमक सकता है. इसे ही रूम टेम्परेचर फॉस्फोरेसेंस कहा जाता है. इस मॉलिक्यूल की खास बात है कि यह पोलराइज़्ड लाइट भी रिलीज़ करता है, जो कि 3D Display और एडवांस ऑप्टिकल टेक्नोलॉजी के लिए काफी यूज़फुल होता है.
कमरे के तापमान पर चमकने की क्षमता, चिरालिटी (असमान संरचना) और बिना किसी धातु के डिज़ाइन के साथ यह छोटा ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल रोशनी छोड़ने वाले सुरक्षित, समझदार और टिकाऊ (सस्टेनेबल) मटेरियल की दिशा में एक आशाजनक कदम है. (इमेज क्रेडिट: ETV Bharat via IISc)
कम्युनिकेशन्स केमिस्ट्री में पब्लिश हुई एक स्टडी के मुताबिक, उनकी टीम ने इस मॉलिक्यूल की क्षमता को दिखाया है. वैज्ञानिकों ने इस मॉलिक्यूल का यूज़ करते हुए एक खास फॉस्फोरेसेंट स्याही (चमकने वाली स्याही) बनाई है. इस स्याही यानी इंक से वैज्ञानिकों ने एक डेमो किया, जिसका नाम ‘टाइम-गेटेड’ सिक्योरिटी राइटिंग रखा गया.
इस इंक की खास बात है कि अल्ट्रावॉलेट यानी यूवी लाइट के नीचे भी इस इंक से लिखा हुआ “1180” आसानी से दिखाई देता है. ध्यान दें कि यह यानी 1180 एक डिकॉय यानी धोखे वाला मैसेज है. असल में, इस भ्रमित करने वाले मैसेज के अंदर असली मैसेज “IISC” है, जो कुछ टाइम के बाद धीरे-धीरे नजर आता है. लिहाजा, ऊपर बताए गए ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल की मदद से बनी इस इंक के जरिए वैज्ञानिकों ने एक ऐसी टेक्नोलॉजी डेवलप की है, जो सिक्योरिटी टैग, एनक्रिप्टेड लेबल और टेम्पर-प्रूफ सिस्टम में इस्तेमाल किया जा सकता है.
इस सभी चीजों के बारे में ईटीवी भारत से बात करते हुए इस रिसर्च की प्रमुख लेखिका जुसैना एय्यथियिल ने बताया कि उनका मकसद एक ऐसा छोटा और ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल बनाना था, जो दो खास तरह की रोशनी छोड़ने की क्षमताओं को एक साथ दिखाने में सक्षम हो. इनमें से एक अंधेरे में काफी देर तक चमकने वाली रोशनी यानी रूम-टेम्परेचर फॉस्फोरेसेंस और दूसरा सर्कुलरली पोलराइज़्ड लाइट है. उन्होंने बताया कि ये दोनों चीज सिक्योरिटी इंक, एंटी-काउंटरफिटिंग टैग और बायो-इमेजिंग जैसे फील्ड में काफी काम आ सकती है.
आफ्टरग्लो इंक का प्रदर्शन: निचला दाग, जो चिराल (असमान संरचना वाले) मटेरियल से बना है, एक्साइटेशन बंद होने के बाद साधारण (अचिराल) मटेरियल की तुलना में ज्यादा तेज और लंबे समय तक चमक दिखाता है. (इमेज क्रेडिट: ETV Bharat via IISc)
उन्होंने इसके बारे में समझाते हुए आगे बताया कि जब कोई मॉलिक्यूल सही एनर्जी वाली लाइट को ऑब्जर्व करता है तो वो काफी एक्साइटेड हो जाता है और फिर वो लाइट के रूप में एनर्जी को रिलीज़ करते हुए अपनी ओरिजनल स्थिति में लौटता है, जिसे फ्लोरेसेंस कहते हैं. यह कुछ नैनोसेकंड तक ही रहता है, लेकिन कभी-कभी एनर्जी इंटरसिस्टम क्रॉसिंग नाम की एक दुर्लभ प्रक्रिया के जरिए एक लंबा रूट लेती है और तब लाइट धीमे-धीमे जाती है और लंबे समय तक चमकती है, जिसे फॉस्फोरेसेंस कहते हैं.
जुसैना ने आगे समझाया कि आमतौर पर कमरे के तापमान पर फॉस्फोरेसेंस का होना काफी चैलेंजिंग होता है. कमरे के तापमान पर मॉलिक्यूल काफी वाइब्रेशन करते हैं, जिससे एनर्जी गर्मी के रूप में खत्म हो जाती है. इस कारण रूम में फॉस्फोरेसेंस नहीं हो हो पाता है, लेकिन अब उनकी टीम ने एक ऐसा मोलिक्यूल तैयार किया है, जो रूम टेम्परेचर यानी साधारण कमरे के तापमान पर भी आफ्टरग्लो (afterglow) दे सकता है.
इस रिसर्च के एक सीनियर वैज्ञानिक प्रो. पी. थिलगार ने रूम टेम्परेचर में भी फॉस्फोरेसेंस होने के कारण को समझाते हुए बताया कि, कार्बन–कार्बन बॉन्ड को बोरॉन–नाइट्रोजन (B–N) बॉन्ड से रिप्लेस करने पर मॉलिक्यूल में ऐसा इलेक्ट्रोनिक स्ट्रक्चर बनता है, जो फॉस्फोरेसेंस को बढ़ावा देता है. यह एक ऐसा बदलाव है, जो स्पिन फ्लिपिंग नाम के एक खास प्रोसेस को काफी आसान बना देता है. इससे मॉलिक्यूल ज्यादा देर तक लाइट रिलीज़ कर सकते हैं.
![P Thilagar [Professor, IPC, IISc]](https://uttarakhandnews.com/wp-content/uploads/2025/06/prof-pthilagar_0906newsroom_1749440696_811.jpg)
पी. थिलगर, प्रोफेसर, आईपीसी विभाग, आईआईएससी (इमेज क्रेडिट: ETV Bharat via IISc)
जुसैना ने इसके बारे में आगे और बताया कि इलेक्ट्रॉन्स की संख्या के लिहाज से बोरोन-नाइट्रोजन बॉन्ड भी कार्बन-कार्बन बॉन्ड जैसे ही होते हैं, लेकिन B-N Bond की इलेक्ट्रोनिक खासियतें काफी अलग होती है. इसके बारे में दुनिया भर में कई रिसर्च किए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि सिर्फ कार्बन पर बेस्ड बॉन्ड और स्ट्रक्चर ही अच्छा फॉस्फोरेसेंस प्रॉड्यूस नहीं करते बल्कि हेटरोएटम्स जैसे बोरोन और नाइट्रोजन भी ऐसा कर सकते हैं.
चैलेंजेस और कॉलेबरेशन्स
इस प्रोजेक्ट के दौरान वैज्ञानिकों को कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा. सबसे पहले तो मॉलिक्यूल का सटीक स्ट्रक्चर पता करना एक मुश्किल टास्क था, क्योंकि अच्छी क्वालिटी के क्रिस्टल्स नहीं बन पा रहे थे. वैज्ञानिकों की टीम ने पहले तो इन-हाउन एक्स-रे डिफ्रैक्शन फैसिलिटी से अच्छे क्रिस्टल्स बनाने की कोशिश की लेकिन जब वो संभव नहीं हो पाया तो उन्होंने इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रिएस्टे के प्रोफेसर नील हिकी की टीम के साथ मिलकर हाई क्वालिटी वाले क्रिस्टल्स बनाएं. इसी तरह से सर्कुलरली पोलराइज्ड ल्यूमिनेसेंस का टेस्ट करने में IISER तिरुपति में प्रोफेसर जतिश कुमार की टीम ने मदद की.
इन सभी मुश्किलों के अलावा यह खास ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल बनाने वाली वैज्ञानिकों की टीम को सबसे बड़ी मुश्किल का सामना फॉस्फोरेसेंट इंक से सिक्योरिटी राइटिंग तैयार करने के दौरान करना पड़ा था. इसके बारे में जुसैना ने बताया कि इस इंक को बानने के लिए उन्होंने PMMA नाम के एक काफी पोपुलर पॉलिमर के साथ मिलकर मॉलिक्यूल तैयार किया, लेकिन फिर भी उसका सही रेशियो का पता करना काफी मुश्किल था. जुसैना ने बताया कि को-ऑथर सुभाजीत घोष की मदद और प्रोफेसर थिलागर की गाइडेंस से इस मुश्किल को काम को पूरा करने में सफलता मिल पाई.
इस ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल को बनाने वाली टीम का मानना है कि यह नया मॉलिक्यूल एनर्जी-एफिसिएंट इलेक्ट्रोलूमिनेसेंट डिस्प्ले जैसे OLEDs बनाने के लिए काफी कारगार साबित हो सकता है. इस मॉलिक्यूल ने सिक्योरिटी राइटिंग के मामले में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन ब्राइटनेस अभी भी एक ऐसा पहलू है, जिसे और बेहतर करने की जरूरत है.
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