देहरादून (नवीन उनियाल): उत्तराखंड के वनों और आरक्षित क्षेत्रों में अभिशाप बने लैंटाना पौधे इको सिस्टम को नुकसान पहुंचा रहे हैं. जिसके उन्मूलन के लिए समय-समय पर अभियान चलाया जाता है. वहीं तेजी से दोबारा पनपने वाले लैंटाना पौधे को खत्म करना चुनौती से कम नहीं है. उत्तराखंड में सबसे ज्यादा चिंता कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व में दिखाई दे रही है. यहां लैंटाना आरक्षित क्षेत्रों के ग्रासलैंड और वन्यजीवों के लिए खतरा बना हुआ है.
वन्यजीवों की जिंदगी के लिए भी खतरा बनी झाड़ियां: लैंटाना नाम की ये झाड़ी वन्यजीवों की जिंदगी के लिए भी खतरा बन रही हैं. वनस्पतियों या घास फूस को खाने वाले हिरण प्रजाति समेत दूसरे वन्यजीवों को इससे खतरा बना हुआ है, ऐसा इसलिए क्योंकि लैंटाना की कांटेदार पत्तियां और तने वन्यजीवों को स्क्रीन रोग दे रहे हैं, यही नहीं इसे खाने से वन्य जीवों की किडनी भी खराब हो सकती हैं, जिससे इन वन्य जीवों की मौत भी हो सकती है.
उत्तराखंड में वनस्पतियां ही नहीं वन्यजीवों के लिए मुसीबत बनी ये झाड़ी (ETV Bharat)
लैंटाना झाड़ी वन्यजीवों के लिए बेहद बड़ी परेशानी है और इसके कारण वन्यजीवों की मौत भी हो जाती है. घरेलू पशुओं को समय से इलाज मिलने के कारण बचाया जा सकता है, लेकिन वन्यजीवों के जंगलों में रहने के कारण इनके लिए यह झाड़ी जानलेवा साबित हो सकती है.
डॉ. राकेश नौटियाल, पशु चिकित्सक
शिकारी वन्यजीवों पर भी पड़ रहा है इसका प्रतिकूल असर: ना केवल शिकारी वन्यजीवों का जंगल में भोजन बनने वाले वन्यजीव बल्कि खुद शिकारी वन्य जीव भी इससे प्रभावित हो रहे हैं.कटीली झाड़ियां शिकारी वन्यजीवों को भी स्किन रोग से ग्रसित कर सकती है. उधर इस झाड़ी के कारण खत्म हो रहे ग्रास के चलते शिकारी वन्य जीवों को शिकार करने के लिए पर्याप्त छिपने का स्थान भी नहीं मिल पाता.
उपजाऊ जमीन को कर देता है बंजर (Photo-ETV Bharat Graphic)
वन्यजीवों के लिए के पैदा करता है परेशानी: जिसका सीधा असर शिकारी वन्यजीवों के शिकार पर भी पड़ता है. जंगलों में हिरण प्रजाति के वन्य जीवों को ग्रासलैंड खत्म होने के कारण भोजन की भी दिक्कत हो सकती है, ऐसी स्थिति में जब इन प्रजाति को भोजन की उपलब्धता नहीं होगी तो जाहिर तौर पर शिकारी वन्य जीवों के लिए भी परेशानी पैदा होगी.

पेड़ पौधों और घास को पहुंचाता है नुकसान (Photo-ETV Bharat Graphic)
संरक्षित क्षेत्र में तेजी से लैंटाना बढ़ रहा है, जिसके कारण इससे नई मुसीबत खड़ी हो गई हैं. हालांकि वन विभाग जंगलों में इस झाड़ी को हटाने के लिए प्रयास कर रहा है. लेकिन लैंटाना का सर्वाइवल बेहद ज्यादा होने के कारण इसे जंगलों से खत्म करना इतना आसान नहीं है.
आरके मिश्रा पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ उत्तराखंड वन विभाग
लैंटाना के कारण वनस्पतियां भी हो रही विलुप्त: लैंटाना झाड़ी की यह खासियत है कि जिस जगह पर यह उगता है, वहां पर बाकी वनस्पतियां सरवाइव नहीं कर पाती हैं. इस तरह वनस्पतियां और घास भी धीरे-धीरे वहां से कम हो जाती है और इसी झाड़ी का पूरे इलाके में साम्राज्य फैल जाता है. इस स्थिति के कारण शाकाहारी वन्यजीवों के लिए भोजन की कमी होने लगती है और यह स्थिति जंगल में जैव विविधता के लिए खतरा बन जाती है.

राजजी टाइगर में वन्यजीवों के लिए बना खतरा (Photo-ETV Bharat Graphic)
लैंटाना उन्मूलन के लिए प्रयास: उत्तराखंड में फिलहाल सबसे ज्यादा चिंता कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व में दिखाई दे रही है जहां तेजी से लैंटाना फैल रहा है, इस इलाके में टाइगर और एलीफेंट के अलावा बाकी वन्य जीवों की बड़ी संख्या में मौजूदगी के चलते वन विभाग की भी इसको लेकर चिंता बढ़ गई है.

विदेश से आकर भारत में पसारे पैर (Photo-ETV Bharat Graphic)
3 सालों तक लैंटाना उन्मूलन के लिए कार्य: जंगलों से इस झाड़ी को हटाना आसान काम नहीं है क्योंकि यदि इसे उखाड़ कर हटा भी लिया जाता है तो भी यह वापस उसी जगह पर उगने लगते हैं। ऐसे में लैंटाना को हटाने के लिए 3 साल का एक पूरा कार्यक्रम चलाया जाता है, जिसके बाद ही इसकी जगह लोकल वनस्पति यहां सर्वाइव कर पाती है, इन तीन सालों में इस झाड़ी को हटाने से लेकर स्थानीय वनस्पति या घास को लगाने का काम भी किया जाता है.

कॉर्बेट पार्क में लैंटाना उन्मूलन को लेकर प्रयास (Photo-ETV Bharat Graphic)
साल 2021-22 से लेकर 2023-24 तक के आंकड़ा: लैंटाना उन्मूलन को लेकर चलाए गए अभियान को आंकड़ों के रूप में देखें तो वन्य जीव संरक्षित क्षेत्र में इसे बड़ी संख्या में हटाया गया है. राजाजी टाइगर रिजर्व में 3 साल के भीतर 4986 हेक्टेयर क्षेत्र में झाड़ियों को हटाया गया. साल 2021-22 में 1771 हेक्टेयर, साल 2022-23 में 1466 हेक्टेयर और साल 2023 24 में 1748 हेक्टेयर क्षेत्र से झाड़ियां हटाई गई.
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में की गई झाड़ियां नष्ट: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व 3 साल के भीतर 5994 हेक्टेयर क्षेत्रफल में झाड़ी को हटाया गया. इसमें साल 2021-22 में 1096 हेक्टेयर, साल 2022-23 में 2147 हेक्टेयर और साल 2023 24 में 200750 हेक्टेयर क्षेत्रफल में झाड़ियां हटाई गई.

वन्य जीवों और पेड़ पौधों के लिए खतरा बना लैंटाना (Photo-ETV Bharat)
कालागढ़ टाइगर रिजर्व में से हटाई गई झाड़ियां: कालागढ़ टाइगर रिजर्व में 3 साल के भीतर 4404 हेक्टेयर क्षेत्रफल में झाड़ियां हटाई गई. इसमें साल 2021-22 में 1840 हैकटेयर, साल 2022-23 में 1376 हेक्टेयर और साल 2023 24 में 1187 हेक्टेयर क्षेत्रफल में झाड़ी हटाई गई.
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