रामनगर (कैलाश सुयाल): उत्तराखंड के तराई पश्चिमी वन प्रभाग और जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के डॉक्टरों द्वारा वन्य जीव संरक्षण की एक अनोखी कहानी सामने आई है. शिकार करने में लाचार एक घायल बाघिन के रेस्क्यू से शुरू हुई कहानी, उसके इलाज और फिर उसकी घर वापसी पर जाकर खत्म हुई. अपने दो शावकों के पास जंगल में लौटकर बाघिन अब बहुत खुश है.
तराई पश्चिमी वन प्रभाग में मिली थी घायल बाघिन: ये कहानी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के नैनीताल और उधम सिंह नगर जिलों में फैले तराई पश्चिमी वन प्रभाग से शुरू हुई. यहां के फाटो टूरिज्म जोन में एक दिन वन कर्मियों ने एक बाघिन को लंगड़ाकर चलते देखा. बाघिन के साथ उसके दो शावक भी थे.
बाघिन के रेस्क्यू, इलाज और घर वापसी की कहानी (Video- ETV Bharat)
बाघिन लंगड़ाकर चल रही थी तो जाहिर था कि इस हालत में वो शिकार करने में सक्षम नहीं थी. ऐसे में इस घायल बाघिन और उसके दोनों शावकों का जीवन खतरे में था. या तो ये भूख से मर जाते. या फिर कोई अन्य हिंसक जीव इन्हें अपना शिकार बना लेता.
वन कर्मियों को घायल बाघिन मिली (Photo- ETV Bharat)
घायल बाघिन का हुआ रेस्क्यू: ऐसे में तराई पश्चिमी वन प्रभाग के अधिकारियों ने इस घायल बाघिन को रेस्क्यू करके उपचार करने का प्लान बनाया. इसके बाद शुरू हुआ बाघिन के रेस्क्यू का अभियान. इस अभियान में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के स्टाफ की मदद ली गई.

घायल बाघिन को रेस्क्यू किया गया (Photo- ETV Bharat)
सीटीआर के सीनियर वेटनरी ऑफिसर डॉक्टर दुष्यंत शर्मा ने रेस्क्यू ऑपरेशन को लीड किया. बाघिन को कड़ी मशक्कत के बाद ट्रेंकुलाइज किया गया. इसके बाद उसे ढेला रेस्क्यू सेंटर लाया गया.

ट्रेंकुलाइज करके बाघिन को इलाज के लिए ढेला रेंज ले जाया गया (Photo- ETV Bharat)
तराई पश्चिमी वन प्रभाग के डीएफओ ने इस दौरान के पूरे अनुभव को शेयर किया-
हमारे सामने घायल बाघिन को जल्द से जल्द स्वस्थ करने की चुनौती थी. राहत की बात ये थी कि उसके पैर में फ्रैक्चर नहीं था. सिर्फ मसल टियर था. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के सीनियर वेटनरी ऑफिसर डॉ दुष्यंत शर्मा ने क्वालिटी ट्रीटमेंट कर बाघिन को जल्द ठीक कर दिया.
-प्रकाश चंद्र आर्या, डीएफओ, तराई पश्चिमी वन प्रभाग-
बाघिन के इलाज के दौरान उसके दो शावकों का रखा गया ध्यान: इधर बाघिन के दो शावकों की सुरक्षा और खानपान का ध्यान भी रखना था. इसके लिए तराई पश्चिमी वन प्रभाग के कर्मचारियों ने विशेष व्यवस्था की. उनकी सुरक्षा के लिए जिस क्षेत्र में वो रह रहे थे वहां बाड़ लगाई गई. उन्हें रोजाना भोजन दिया गया. पूरा प्रयास किया गया कि इस दौरान इन शावकों को अन्य जंगली जानवरों से कोई खतरा न हो. साथ ही वो अपनी मां के लौटने तक स्वस्थ रहें.

7 दिन के इलाज के बाद बाघिन स्वस्थ्य हो गई (Photo- ETV Bharat)
7 दिन के इलाज के बाद बाघिन की हुई जंगल वापसी: आखिरकार 7 दिन के इलाज के बाद घायल बाघिन स्वस्थ्य हो गई. अब ढेला रेस्क्यू सेंटर से उसे वापस जंगल में छोड़ने की प्लानिंग हुई. स्वस्थ्य हो चुकी बाघिन को 8वें दिन पिंजरे में ले जाकर उसके प्राकृतिक वास स्थल जंगल में छोड़ दिया गया.

8वें दिन बाघिन को जंगल में वापस छोड़ा गया (Photo- ETV Bharat)
पिंजरे से बाहर निकलते ही जब बाघिन ने जंगल में कदम रखा, तो उसकी खुशी महसूस करने लायक थी. बाघिन वहां से सीधे अपने शावकों के पास चली गई. शावक भी मां को देखकर बहुत खुश नजर आए.
हमारे वनकर्मी वन्य जीवों का पूरा ख्याल रखते हैं. जैसे ही हमें कोई बीमार या घायल वन्य जीव दिखता है तो हम उसका तत्काल रेस्क्यू करके इलाज करते हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भी हम इस चीज का विशेष ध्यान रखते हैं. हमारे पास पूरी मेडिकल सुविधा है.
-डॉ दुष्यंत शर्मा, सीनियर वेटनरी ऑफिसर, सीटीआर-
खुश नजर आई रेस्क्यू और इलाज करने वाली टीम: डॉ. दुष्यंत शर्मा ने कहा कि हमारे लिए सबसे बड़ी संतुष्टि यही थी कि बाघिन स्वस्थ होकर अपने प्राकृतिक आवास में लौट सकी. जब वह अपने बच्चों के पास पहुंची, तो वो दृश्य हमारी पूरी टीम के लिए बेहद भावनात्मक था. वन्यजीवों की ये दुनिया न केवल रोमांच से भरी है, बल्कि उसमें ममता, संघर्ष और उम्मीद की कहानियां भी छिपी हैं. इस घायल बाघिन की अपने बच्चों तक वापसी, सिर्फ एक रेस्क्यू मिशन नहीं बल्कि एक मां की ममता और वन विभाग की जिम्मेदारी का जीवंत उदाहरण है.

पिंजरे से छूटते ही बाघिन ने अपने बच्चों की तरफ दौड़ लगाई (Photo- ETV Bharat)
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