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विकास की कीमत चुका रहा उत्तराखंड! वाहनों की बढ़ती संख्या बिगाड़ रही पर्यावरण की सेहत


बढ़ते वाहनों से समस्या! (फोटो- ETV Bharat GFX)

रोहित कुमार सोनी

देहरादून: देश और दुनिया में लगातार हो रही क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. जिसके चलते केंद्र और राज्य सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों को तवज्जो दे रही है. ताकि, लगातार हो रहे क्लाइमेट चेंज को कंट्रोल किया जा सके. हर साल 26 नवंबर को सुरक्षित, सस्ती और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन को बढ़ावा देने को लेकर विश्व सतत परिवहन दिवस मनाया जाता है.

इसका मकसद वाहनों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम से कम करना है. यही वजह है कि उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और पर्यावरण के लिहाज से महत्वपूर्ण प्रदेश में पर्यावरण के अनुकूल परिवहन को बढ़ावा देने की बात हमेशा से ही उठती रही है.

उत्तराखंड में लगातार बढ़ते वाहनों ने बढ़ाई चिंता (वीडियो- ETV Bharat)

बता दें कि दुनियाभर में लगातार बढ़ रही प्रदूषण एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. जिसे न सिर्फ लोग बीमार हो रहे हैं, बल्कि पर्यावरण को भी इससे काफी ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है. जिसके चलते संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 26 नवंबर को विश्व सतत परिवहन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी.

इसका मुख्य उद्देश्य यही था कि परिवहन को ज्यादा सुरक्षित, सस्ती, सुलभ के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल परिवहन को बनाने की दिशा में विचार किया जा सके. हर साल विश्व सतत परिवहन दिवस को मनाने के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है. ऐसे में साल 2025 में ये दिवस मनाने के लिए ‘कार्बन से स्वच्छ तक: कल के लिए परिवहन में परिवर्तन‘ थीम रखी गई है.

Uttarakhand Vehicle Pressure

देहरादून की सड़कों पर वाहनों का रेला (फाइल फोटो- ETV Bharat)

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार बढ़ रहा वाहनों का दबाव: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार बढ़ रहे वाहनों के दबाव की वजह से न सिर्फ प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, बल्कि ये पर्यावरणीय पारिस्थितिकी के लिए भी काफी खतरनाक साबित हो रही है. यही वजह है कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में साझेदारी परिवहन के साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है.

Uttarakhand Vehicle Pressure

चारधाम यात्राकाल में वाहन (फाइल फोटो- ETV Bharat)

इसके अलावा श्रद्धालुओं को बेहतर परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराए जाने को लेकर पर्वतीय क्षेत्रों में रोपवे के निर्माण पर भी जोर दिया जा रहा है. शहरी क्षेत्रों में लगातार बढ़ रही वाहनों की तादाद भी प्रदेश के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है. इतना ही नहीं हर साल चारधाम के दौरान भी लाखों की संख्या में वाहन उच्च हिमालय क्षेत्रों तक पहुंच जाते हैं, जो पर्यावरण और ग्लेशियर के लिए काफी नुकसानदायक माना जाता है.

उत्तराखंड में अब तक 43,66,775 वाहनों का रजिस्ट्रेशन: उत्तराखंड में वाहनों के रजिस्ट्रेशन की बात करें तो प्रदेश में अभी तक सभी तरह के 43,66,775 वाहनों का रजिस्ट्रेशन हुआ है. खास बात ये कि उत्तराखंड में साल दर साल वाहनों के रजिस्ट्रेशन की संख्या भी बढ़ती जा रही है.

VEHICLE PRESSURE IN UTTARAKHAND

उत्तराखंड में बढ़ रही वाहनों की संख्या (फोटो- ETV Bharat GFX)

उत्तराखंड में लगातार बढ़ रही वाहनों की संख्या

उत्तराखंड में साल 2021 में 1,96,027 वाहन, साल 2022 में 2,31,039 वाहन, साल 2023 में 2,56,913 वाहन, साल 2024 में 2,81,782 वाहन के साथ ही साल 2025 में अभी तक 2,69,272 वाहनों का रजिस्ट्रेशन हुआ है.

पर्यावरण को नुकसान तो ट्रैफिक की बढ़ी समस्या: यह आंकड़े परिवहन विभाग के मुताबिक है. उत्तराखंड में लगातार बढ़ रही वाहनों की संख्या की वजह है, न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि खासकर शहरी क्षेत्रों में ट्रैफिक भी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. वहीं, पूरे देश भर में सभी तरह के 41,05,07,995 वाहनों का अभी तक रजिस्ट्रेशन हुआ है.

Uttarakhand Vehicle Pressure

देहरादून में वाहनों से जाम (फोटो- ETV Bharat)

बाहरी राज्यों से लाखों की संख्या में आने वाले वाहन भी बड़ी चुनौती: उत्तराखंड के लिए सिर्फ एक चुनौती यही नहीं है कि प्रदेश में लगातार वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है, बल्कि हर साल लाखों की संख्या में अन्य राज्यों से भी वाहन उत्तराखंड आते हैं. वो भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं. क्योंकि, लाखों की संख्या में अन्य राज्यों से उत्तराखंड आने वाले वाहनों से भी पर्यावरण पर काफी ज्यादा असर पड़ता है.

Uttarakhand Vehicle Pressure

पहाड़ों में वाहन (फाइल फोटो- ETV Bharat)

साल 2025 की चारधाम यात्रा में पहुंचे इतने वाहन: इससे भी बड़ी एक चुनौती ये है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी वाहनों का संचालन बढ़ता जाता है. साल 2025 में चारधाम यात्रा के दौरान 5,13,207 वाहन धामों में पहुंचे. जिसमें बदरीनाथ में 2,18,500 वाहन, केदारनाथ में 1,38,954 वाहन, गंगोत्री में 91,578 वाहन और यमुनोत्री धाम में 64,175 वाहनों की आवाजाही हुई है.

VEHICLE PRESSURE IN UTTARAKHAND

चारधाम यात्रा 2025 के दौरान आए वाहनों की संख्या (फोटो- ETV Bharat GFX)

उत्तराखंड में लगातार बढ़ रहे वाहनों के दबाव और वाहनों की वजह से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को देखते हुए राज्य सरकार प्रदेश में इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रमोट कर रही है. साथ ही शहरी क्षेत्र में चलने वाले सिटी बसों को भी पीएम ई बस सेवा के तहत ई-बसों में तब्दील करने की कवायद की जा रही है. ताकि, प्रदेश के शहरी क्षेत्र में सुरक्षित, सस्ती और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन की सुविधा जनता को उपलब्ध कराई जा सके.

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हरिद्वार रोड पर भीषण जाम (फाइल फोटो- ETV Bharat)

इसके साथ ही प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में परिवहन का एक बेहतर विकल्प उपलब्ध कराने को लेकर रोपवे का निर्माण कराया जा रहा है. जिससे न सिर्फ यात्री प्राकृतिक सौंदर्य का लुफ्त उठाते हुए एक जगह से दूसरे जगह आसानी से पहुंच सकेंगे, बल्कि जाम के झंझट से भी मुक्ति मिलेगी. रोपवे परियोजना पर्यावरण के लिहाज से भी काफी बेहतर माना जा रहा है.

परिवहन विभाग का रोडमैप यही है कि किस तरह से सस्ता, सुलभ और पर्यावरण के अनुकूल रोडवेज बस बेड़े को तैयार किया जाए. जिसके तहत देहरादून और हरिद्वार के शहरी क्षेत्र में पीएम ई-बस सेवा के तहत इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जाएगा.“- रीना जोशी, अपर सचिव, परिवहन विभाग

उत्तराखंड के बड़े शहरों को ईवी बसों से जोड़ने का प्रयास: उन्होंने कहा कि इसके अलावा परिवहन विभाग प्रयास कर रहा है कि उत्तराखंड के बड़े शहरों को ईवी बसों के जरिए दिल्ली और अन्य शहरों को जोड़ा जाए, इस दिशा में काम किया जा रहा है. साथ ही कहा कि चारधाम में बड़ी संख्या में वाहन पहुंचते हैं, जिसको देखते हुए परिवहन निगम ने मिनी बस सेवा का संचालन शुरू किया था.

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देहरादून की आबोहवा (फोटो- ETV Bharat)

इसका उद्देश्य यही था कि लोग मिनी बसों को बुक करके चारधाम यात्रा रूट पर ले जाएं. इसके साथ ही शीतकाल यात्रा के दौरान के लिए भी टेंपो ट्रैवलर भी संचालित की जा रही है, जिसे बुकिंग पर यात्री ले जा सकते हैं. इतना ही नहीं चारधाम यात्रा मार्ग पर डेडीकेटेड 100 बसों को संचालित किया जाता है.

Uttarakhand Vehicle Pressure

इन दिनों ऐसे नजर आ रहे पिथौरागढ़ के पहाड़ (फोटो- ETV Bharat)

दिल्ली की तरह न हो जाए हालात: वहीं, पर्यावरणविद डॉ. त्रिलोक चंद्र सोनी ने कहा कि वर्तमान समय में जिस स्तर पर परिवहन के साधन सड़कों पर दौड़ रहे हैं. इसका सीधा प्रभाव जनमानस पर पड़ रहा है. इसके साथ ही वाहनों से जो कार्बन डाइऑक्साइड निकल रहा है, उससे पर्यावरण दूषित हो रहा है और वातावरण पर कुप्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में समय रहते हुए इस पर ध्यान नहीं दिया तो पर्वतीय अंचलों का वातावरण भी दिल्ली की तरह हो जाएगा.

उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के दौरान काफी संख्या में वाहन धामों में पहुंचते हैं. ऐसे में उच्च हिमालयी क्षेत्रों पर वाहनों से निकलने वाला धुआं पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है. अगर ऐसे ही उच्च हिमालय क्षेत्र में वाहनों के आने का सिलसिला जारी रहा तो उसका असर ग्लेशियर पर पड़ेगा. जिससे ग्लेशियर पिघलेंगे और ग्लेशियर झीलों का निर्माण होगा. जिनके टूटने से आपदा जैसे हालात बनेंगे. ऐसे में इस दिशा में सरकार को ध्यान देने की जरूरत है कि अब इलेक्ट्रिक वाहनों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाए.“- डॉ. त्रिलोक चंद्र सोनी, पर्यावरणविद

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