नई दिल्ली, 26 नवंबर (आईएएनएस)। सैन फ्रांसिस्को के सिटी हॉल में उस सुबह सब कुछ सामान्य लग रहा था, लेकिन कुछ घंटों बाद शहर एक ऐसे सदमे में डूबने वाला था जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। मेयर जॉर्ज मोस्कोन और सुपरवाइजर हार्वे मिल्क—दोनों अपनी-अपनी बैठकों और दिनचर्या में लगे थे, बिना यह जाने कि कुछ ही देर में उनकी जिंदगी खत्म कर दी जाएगी।
हार्वे मिल्क उस दौर के लिए बेहद असामान्य नेता थे। वे अमेरिका के पहले खुले तौर पर समलैंगिक राजनेताओं में शामिल थे और यही कारण था कि उनकी आवाज लाखों लोगों के लिए उम्मीद बन चुकी थी। समुदाय के अधिकार, उनकी बराबरी और उनकी पहचान इन सभी मुद्दों को उन्होंने बिना झिझक उठाया। उनकी सादगी और सीधी बात लोगों को उनसे जोड़ देती थी।
दूसरी ओर, जॉर्ज मोस्कोन एक आधुनिक, प्रगतिशील और समावेशी सोच वाले मेयर थे। शहर में अवसरों और अधिकारों की बराबरी सुनिश्चित करने के लिए वे लगातार कदम उठा रहे थे।
लेकिन इन्हीं बदलावों ने कुछ लोगों में असंतोष भी पैदा किया—सबसे ज्यादा शहर के पूर्व सुपरवाइजर डैन व्हाइट में, जो धीरे-धीरे राजनीतिक कड़वाहट, निजी नाराजगी और अस्वीकार किए जाने की चुभन से भर चुका था।
27 नवंबर 1978 को, व्हाइट गुस्से और हताशा से भरा सिटी हॉल पहुंचा। पहले उसने मेयर मोस्कोन को गोली मारी, फिर हार्वे मिल्क को भी निशाना बनाया। कुछ ही मिनटों में शहर के दो ऐसे नेता खत्म कर दिए गए, जो सैन फ्रांसिस्को को अधिक खुला, न्यायपूर्ण और प्रगतिशील बनाने की राह पर थे।
खबर फैलते ही पूरा शहर सदमे में था। लोग सड़कों पर उतर आए—कुछ रोते हुए, कुछ मोमबत्तियां लेकर, और कुछ बस चुप खड़े। रात होते-होते एक विशाल ‘कैंडललाइट मार्च’ शहर की गलियों में निकाला गया, जो गुस्से से ज्यादा दर्द और श्रद्धांजलि का प्रतीक था। उस दिन किसी ने नारे नहीं लगाए—सिर्फ मौन था, और उस मौन में दो नेताओं की विरासत गूंज रही थी।
इस घटना ने न केवल सैन फ्रांसिस्को बल्कि पूरे अमेरिका में एक बहस को जन्म दिया। नागरिक अधिकारों, पहचान की राजनीति, और उन सामाजिक बदलावों की बात होने लगी जिसने आखिरकार आंदोलन को और मजबूत बना दिया। हार्वे मिल्क का संदेश—कि “आवाज उठाना ही आजादी की पहली सीढ़ी है”—उनकी मृत्यु के बाद और जोर से सुना गया।
जॉर्ज मोस्कोन का सपना भी वहीं खत्म नहीं हुआ। उनकी नीतियां, उनके समर्थक और एक न्यायपूर्ण शहर की उनकी सोच आगे के वर्षों में और ठोस रूप में दिखी। घटना चाहे क्रूर थी, लेकिन यह एक मोड़ भी थी—जहां हिंसा ने बदलाव को रोकने की जगह, उसे और तेज कर दिया।
–आईएएनएस
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