जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से ग्लेशियरों के पिघलने की दर तेज़ हो गई है, जिसके चलते हिमालयी क्षेत्रों में स्थित ग्लेशियर झीलों का आकार निरंतर बढ़ रहा है। विशेष रूप से उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में ग्लेशियर झीलों का दायरा बेहद चिंताजनक स्तर तक बढ़ चुका है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इन झीलों का आकार 40 प्रतिशत तक बढ़ चुका है, जो स्थानीय निवासियों और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरे की घंटी है।
डीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
केंद्रीय जल आयोग (डीडब्ल्यूसी) की ताजा रिपोर्ट में ग्लेशियर झीलों के आकार में हो रहे बदलाव के बारे में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। डीडब्ल्यूसी ने हिमालयी क्षेत्र में स्थित ग्लेशियर झीलों के क्षेत्रफल का आकलन करने के लिए 2011 से लेकर सितंबर 2024 तक के डेटा का अध्ययन किया। रिपोर्ट में पाया गया कि भारत में इन झीलों का कुल क्षेत्रफल 1,962 हेक्टेयर था, जो अब बढ़कर 2,623 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। इस बढ़ोतरी को 33.7 प्रतिशत के रूप में आंकलित किया गया है।
नई रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेशियर झीलों का दायरा बढ़ने के साथ-साथ अन्य जल निकायों में भी पानी की मात्रा बढ़ रही है, जो गंभीर पर्यावरणीय और आपदा जोखिमों को जन्म दे रहा है। केंद्रीय जल आयोग (डीडब्ल्यूसी) की ताजा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि वर्ष 2011 में ग्लेशियर झीलों और अन्य जल निकायों का कुल क्षेत्रफल 4.33 लाख हेक्टेयर था, जो अब 10.81 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ बढ़कर 5.91 लाख हेक्टेयर तक पहुंच चुका है।
इस बढ़ोतरी के साथ, इन जल निकायों से निचले क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा भी बढ़ गया है। विशेष रूप से, हिमालयी क्षेत्रों में स्थित उच्च जोखिम वाली ग्लेशियर झीलों से यह खतरा सबसे अधिक है। अगर इन झीलों का बांध टूटता है या जलस्तर अत्यधिक बढ़ता है, तो अचानक बाढ़ आ सकती है, जिससे न केवल भारतीय क्षेत्रों में भारी तबाही हो सकती है, बल्कि इससे सीमापार के देशों में भी बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।