उत्तरकाशी:उत्तरकाशी में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को बचाने की पूरी कोशिश की जा रही है. हादसे के 9 दिन बाद मजदूरों को खिचड़ी और दलिया भेजा गया है. इसके साथ-साथ उन्हें मल्टीविटामिन और सूखे मेवे के साथ-साथ एंटी डिप्रेशन की दवाएं भी दी जा रही है.
उत्तरकाशी में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिल्क्यारा टनल के एक हिस्से के ढह जाने से पिछले लगभग एक सप्ताह से 41 मजदूर फंसे हुए हैं. फंसे मजदूरों का निकालने का काम जारी है. हादसे के 9 दिन बाद सोमवार शाम को टनल के भीतर फंसे मजदूरों को 6 इंच की नई पाइपलाइन के जरिए खिचड़ी, दलिया और कुछ फ्रुट्स भेजा गया. अभी तक फंसे हुए मजदूरों को ड्राइ फूड्स ही भेजे जा रहे थे, लेकिन 9 दिन बाद उन तक खाना पहुंचाना रेस्क्यू टीम की बड़ी सफलता मानी जा रही है
टनल में उनके जीवन को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें मल्टीविटामिन और सूखे मेवे के साथ-साथ एंटी डिप्रेशन की दवाएं भी दी जा रही हैं. दो दिन पहले कुछ मजदूरों ने उल्टी होने की जानकारी दी थी, जिसके बाद उन्हें कुछ दवाइयां भेजी गई थी.उत्तराखंड सरकार ने कहा कि सरकार की ओर से सुरंग के अंदर फंसे 41 निर्माण श्रमिकों को अवसाद रोधी गोलियां दी जा रही हैं. सुरंग के बाहर कुल 10 एंबुलेंस के साथ-साथ डॉक्टर एवं स्वास्थ्य कर्मियों तैनाती की गई है.
मल्टी विटामिन सहित दी जा रही हैं कई दवाएं
उत्तरकाशी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. आरसीएस पंवार ने कहा, “हम मजदूरों पोषण का भी ख्याल रख रहे हैं और उन्हें चना, मुरमुरे जैसी चीजें भी भेजी जा रही है. स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि बचाव अभियान निलंबित होने के कारण उनके डॉक्टर इसके पहले एक दिन तक फंसे हुए श्रमिकों से बात नहीं कर पाए थे.
सुरंग निर्माण कंपनी के एक सहकर्मी ने कहा कि यह बहुत ही कठिन समय है. जो लोग अंदर फंसे हुए हैं. वह और उनके परिवार की मानसिक स्थिति का अंदाज लगाया जा सकता है. सरकार को उनके बचाव की त्वरित व्यवस्था करनी चाहिए. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि लोग किस चीज का इंतजार कर रहे हैं. उत्तरकाशी जिला अस्पताल में कार्यरत चिकित्सक डॉ. बीएस पोखरियाल ने कहा कि कुछ हल्के सिरदर्द की शिकायत की थी. उन्हें मेडिसीन के साथ-साथ मल्टीविटामिन की आपूर्ति कर रहे हैं.
मजदूरों में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का खतरा
एम्स ऋषिकेश में मनोचिकित्सा के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. अनिंद्य दास ने कहा कि सुरंग में फंसे रहने की स्थिति मजदूरों के लिए बेहद दर्दनाक और तनावपूर्ण हो सकती है. उनमें भय और चिंता की भावना होगी. कई लोगों को पैनिक अटैक की आशंका भी है. उन्होंने कहा कि क्लौस्ट्रफोबिया जैसी स्थितियां कुछ लोगों में गंभीर हो सकती हैं और एक बार बचाए जाने के बाद, कुछ मजदूरों में पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) के लक्षण विकसित हो सकते हैं.
उनका कहना है कि मजदूरों कोमनोवैज्ञानिक रूप से मूल्यांकन और परामर्श देने की आवश्यकता होगी. मूल्यांकन आवश्यक है क्योंकि उनमें से कई दोबारा उसी माहौल में काम करने की मानसिक स्थिति में नहीं हो सकते हैं.