कैबिनेट ने एक मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाने का फैसला किया है। कैग की ओर से सरकार को सिफारिश पर कार्रवाई करने के संबंध में बार-बार कहा जा रहा है। करोड़ों रुपये की वसूली पर क्या निर्णय लिया जाए, यह प्रश्न पिछले दिनों हुई प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में भी उठा।
प्रदेश सरकार के सामने सरकारी एजेंसियों को बिना रवन्ना खनन की आपूर्ति करने वाले ठेकेदारों से 315 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूलने का बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। कैग ने इस धांधली को पकड़ा था और सरकार से उत्तराखंड खनन नियमावली के प्रावधान के अनुसार रायल्टी का पांच गुना जुर्माना वसूलने की सिफारिश की थी।
वसूली के संबंध में कैग की ओर से सरकार को सिफारिश पर कार्रवाई करने के संबंध में बार-बार कहा जा रहा है। करोड़ों रुपये की वसूली पर क्या निर्णय लिया जाए, यह प्रश्न पिछले दिनों हुई प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में भी उठा। निर्णय लेने के लिए कैबिनेट ने एक मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाने का फैसला किया है। उधर, वित्त विभाग इतनी बड़ी राशि माफ करने के कतई पक्ष में नहीं है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की 31 मार्च 2020 और 2021 की रिपोर्ट में इस धांधली का विस्तार से जिक्र है। रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 से 2021 के दौरान खनन का कारोबार करने वालों ने अकेले देहरादून में लोनिवि, सिंचाई व अन्य सरकारी एजेंसियों को 37.17 लाख मीट्रिक टन खनन सामग्री की आपूर्ति की।
पांच गुना जुर्माना वसूलने की सिफारिश
ठेकेदारों के पास अभिवहन पास (रवन्ना) नहीं थे या उन्हें फर्जी रवन्ना के जरिये खनन का कारोबार किया। इस आपूर्ति के एवज में उन्होंने पूरी रायल्टी जमा की, लेकिन कैग ने बिना ई-प्रपत्र खनन का उपयोग करने को उत्तराखंड खनन (अवैध खनन परिवहन भंडारण) नियमावली के प्रावधानों का उल्लंघन माना और रायल्टी पर पांच गुना जुर्माना वसूलने की सिफारिश की।
यह राशि करीब 315 करोड़ रुपये है। नियमानुसार बिना रवन्ना अवैध खनन सामग्री का उपयोग करने वाली सरकारी एजेंसियों को उन्हें आपूर्ति करने वाले ठेकेदारों से जुर्माना वसूलना है, लेकिन बड़ी चुनौती यह है कि वे उन ठेकेदारों को कहां खोजेंगे।
जुर्माना माफ के पक्ष में नहीं वित्त विभाग
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, बेशक अभी इस मसले पर निर्णय होना है, लेकिन एक पक्ष 315 करोड़ की जुर्माने की राशि माफ करने का भी विकल्प सुझा रहा है। इस पक्ष का कहना है कि रायल्टी के रूप में सरकारी खजाने में 63 करोड़ रुपये की धनराशि जमा हो गई है। सरकार को कोई नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन वित्त विभाग इसके पक्ष में नहीं हैं। कैबिनेट की बैठक में वित्त विभाग की ओर से यही बात रखी गई है कि जुर्माना माफ करने का कोई औचित्य नहीं बनता।
प्रदेश मंत्रिमंडल के समक्ष यह प्रस्ताव रखा गया कि कैग ने जो सवाल उठाया है, उसके तहत 315 करोड़ जुर्माना वसूली पर क्या निर्णय लिया जाना चाहिए। कैबिनेट ने मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाने का फैसला किया है।
प्रदेश सरकार के लिए 315 करोड़ रुपये बहुत बड़ी धनराशि है। इसलिए इस पर सोच-विचार हो रहा है। अब मंत्रिमंडलीय उपसमिति के पास यह मामला है। उपसमिति की रिपोर्ट आने के बाद आगे की दिशा तय हो पाएगी।